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मन की सुन्दरंता

9 फरवरी 2019

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एक राजा की दो पत्नियां थी। प्रथम पत्नि सांवली थी वह राजा को बिल्कुल पंसद नहीं थी वहीं दूसरी पत्नि बहुत सुंदर देह व आकर्षक थी। राजा हमेशा दूसरी पत्नि को अपने साथ रखता था। वह उसकी अचूक एवं आकर्षक सुन्दरता में डूबा रहता था प्रथम पत्नि सुशील एवं बहुत गुण थी लेकिन उसका रंग सावंला होने के कारण राजा उसे पसंद नहीं करता था , उसे महत्व व पत्नि का दर्जा भी नहीं देता था रानी होते हुए भी वह एक दासी की तरह रहती थी। धीरे धीरे समय गुजरता गया राजा बूढा होने लगा और बीमार भी।


एक दिन पता चला की राजा को कोई छूत की बीमारी हो गई है जिसका पता दूसरी सुंदर पत्नि को हुआ तो वह राजा से दूर दूर रहने लगी एवं पुत्र - पुत्रियां भी उससे कटे कटे रहने लगे। अब राजा ने अपना राज्य तो पहले से ही अपनी सुंदर पत्नि के पुत्र को दे दिया था पुत्र के राजा होने पर सुन्दर पत्नि राजा से दूर चली गई, राजा तो केवल नाम का राजा रह गया था क्योंकि प्रेम के वश मेंं उसने सुन्दर पत्नि के पुत्र को अपना सारा राज्य और खजाना सौंप दिया था।


राजा की बीमारी की बात सब जगह फैल गयी । जब कोड़ स्पष्ट रूप से दिखने लगा तो सुन्दर पत्नि अपने बच्चों को लेकर राजा से अलग रहने लगी। धीरे धीरे राज्य के लागे व उसके मित्रगण भी राजा से दूर रहने लगे। कोई भी उसके पास नहीं भटकता था। सभी ने राजा से नाता तोड़ दिया था। अब तो राजा बिल्कुल अकेला पड़ गया था एवं कोठी में रहने लगा था। अब राजा बहुत मायूस एवं दुखी रहने लगा था।


जब दूसरी पत्नि को यह बात पता चला कि राजा अलग कोठी में अपनी बीमारी के कारण अकेला रहता है तो उसे दुख हुआ और वह राजा के पास गई। जिस पत्नि को राजा ने कुरूप एवं सांवली मान कर दूर कर दिया था केवल वही कुरूप और सांवली दिखने वाली पत्नि ने राजा की देखभाल की। उस समय राजा इतना हतास और अपने पर शंर्मिंदा हुआ की वह अपने गुनाहों की माफी भी अपनी सच्ची धर्मपत्नि, सच्ची जीवन संगिनी से मांगने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाया। राजा को यह एहसास हुआ की सच्ची सुन्दरता मन की सुन्दरता होती है।

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