आखिर teenage की समझ को कैसे समझा जाये.
कैसे छोटी उम्र के बच्चों को नाराज़ होने से बचाया जाये .
हम कई बार अख़बारों और टीवी चैनल में पड़ते एवं देखते हैं कि १५-१६ के छोटे बच्चे ने फांसी लगा ली और एक लेटर लिख कर अपने माँ-बाप को पड़ने के लिए छोड़ जाता है. जिसमे लिखा होता है कि माँ-डैड मुझे मॉफ करना, SORRY.
आखिर ये नादान बच्चे क्यों इतने जल्दी स्ट्रेस और डिप्रेशन कि स्थिति में आ जाते हैं. ये जानना हर माँ-बाप के लिए जरूरी है.
बच्चों की नादानी में दोष किसका
- हम, हमारे माता-पिता, हमारे बच्चे सभी की अपनी-अपनी सोच है. आपस में सभी की एक सोच हो ये हो नहीं सकता. तो फिर कैसे एक-दूसरे से सामंजस्य बैठाएं. कैसे माता-पिता अपने बच्चों से और बच्चे अपने माता-पिता से एडजस्टमेंट करें.
- मेरे हिसाब से इसके लिए दोनों को एक-दूसरे को समझना जरुरी होता है. सर्वप्रथम माँ-बाप को ये निश्चय कर लेना चाहिए की बच्चों का अपना दृष्टिकोण है और उनका अपना.
- माँ-बाप को अपने फैसले जबरदस्ती और अचानक अपने बच्चों पर नहीं थोपना चाहिए.
- यदि माँ-बाप अचानक या एकाएक अपना कोई भी फैसला अपने बच्चों पर थोप दें तो बच्चा सही और गलत में अन्तर नहीं कर पायेगा और उसकी नज़र में आपका फैसला उसके लिए गलत ही लगेगा.
- बच्चों की मर्जी, उसकी इच्छा को जानना-समझना जरुरी होता है. क्यूंकि उसकी अपनी दुनिया है उसकी अपनी ख्वाहिशें है.
- उसकी ख्वाहिशें को यदि समझा नहीं गया तो वो खुद को असहाय और अकेला समझेगा जो उसके लिए काफी नुकसानदायक होगा.
छोटे बच्चे खूबसूरत फूल की तरह होते है.
- छोटे बच्चे एक खूबसूरत फूल की तरह होते है. उनकी इस खूबसूरती बनाये रखने के लिए अच्छा बागवान और माली चाहिए होता है.
- जिस तरह फूलों को बड़े नाजुकता से संभाला जाता है उसी तरह छोटे बच्चों को उनकी छोटी-छोटी बातों को गंभीरता से लेना चाहिए.
- हमेशा न सही मगर कभी-कभी उसके जज्बातों को समझें, उसकी समझ और सोचा को एकदम से झूठलायें न.
- उसको सही और गलत में अंतर करना सिखाएं.
- बच्चों को उनकी लाइफस्टाइल में परिवर्तन करने का न कहें. बल्कि उनकी लाइफस्टाइल में संस्कार को भरने की कोशिश करें.
- किशोरों और माँ-बाप के रिश्ते बड़े नाजुक होते हैं जरा सी ठेस से ही ये नाजुक रिश्ते टूट सकते हैं. इनको बड़े सहज और सरलता से संभालना पड़ता है.
टीनएज बच्चों के साथ कैसे घुले-मिलें माँ-बाप
- साथ में थोड़ा समय बिताएं.
- ज्यादा से ज्यादा बच्चों की बातों को सुने
कम से कम बोले - छोटे से छोटे काम की तारीफ करें
- सही काम के लिए उत्साह और हौंसल बढ़ाएं.
- बच्चों को लेक्चर देने से बचें.
- बेशक बच्चों पर निगरानी रखें मगर उनकी आज़ादी का भी ख्याल रखें.
- छोटी-छोटी बातों पर बार-बार न टोके
- अपनी ज़िंदगी का उदहारण न दें.
- ताना देने से बचें
- उनके गलत फैसले पर एक दम से प्रतिक्रिया न दें. आराम से समझाएं
Teenage age के बच्चें और नाजुक फूल दोनों का ख्याल एक ही तरीके से रखा जाता है. इसलिए अपने आप को एक बेहतरीन माली बनने की सोंचे न की बॉस या टीचर बनने की