जिस प्रकार पौधा लगाने से पहले बीज आरोपित किया जाता है उसी प्रकार के युवा लड़के-लड़कियों के मन में दाम्पत्य जीवन के संबंधों के भावों को पैदा करने के लिए विवाह पूर्व ही अनेक संस्कार आरोपित किए जाते हैं। यद्यपि वे सारे के सारे विवाह के ही अंग माने जाते हैं। जैसे-हल्दी चढ़ाना, तैल चढ़ाना, कन्या पूजन, गाना बजाना, सुहाग गीतों का होना आदि। परिवार और समाज को इन कार्यक्रमों की शुरूआत से ही विवाह के अंत तक का सफर लगता है की कार्यक्रम अब पूरे हुये परंतु वर-वधु के लिए यह एक नए जीवन की शुरूआत होती है। जो दाम्पत्य जीवन के लिए बहुत जरूरी होता है।
बड़े से बड़े भवन की नींव भी एक र्इंट से रखी जाती है। दाम्पत्य संबंधों की स्थापना भी इस सत्य से परे नहीं है। युवा मन में भावी जीवन साथी की कल्पनाएं आयु के अनुसार स्वत: ही साकार होने लगती है। परस्पर आकर्षण का यह भाव यद्यपि विपरीत सेक्स के प्रति एक स्वाभाविक आकर्षण से अधिक कुछ नहीं होता, लेकिन युवा हृदय एक-दूसरे का प्रोत्साहन पाकर अपनी भावनाओं को साकार करने लगते हैं युवा मन की कल्पनाएं ही विवाह के लिए युवा मन की तैयारी या पूर्व पीठिका कही जा सकती है।
युवा अवस्था में लड़के-लड़कियों की कल्पनाएं रंगीन होने लगते हैं, उनमें अनेक प्रकाश के शारीरिक और मानसिक परिवर्तन आने लगते हैं। शरीर के अंग हृष्ट-पुष्ट होने लगते हैं। चेहरे की कमनीयता में एक विशेष प्रकार की लालीमा आ जाती है। लड़के मन में कुछ रोमांचकारी कल्पनाएं करने लगते हैं। उनमें कुछ अनोखा और साहसिक कार्य करने की इच्छा पैदा होने लगती है। विपरीत सेक्स को अपनी और आकर्षित करने, उसे रिााने के लिए वे सजने-संवरने लगते हैं।
अभिभावकों द्वारा जब प्राभमिक स्तर पर लड़के-लड़की के विवाह की बात हो जाती है, तो लड़के-लड़की को देखने-दिखाने में आसक्ति का भाव जागृत होता है, जो उन्हें एक-दूसरे से भावनात्मक रूप से जोड़ता है। परस्पर पसंदगी का यह आधार ही दोनों को विवाह, लगाव और बंधनों के लिए प्रेरित करता है। इसके बाद होती है विवाह की औपचारिकता ।
ये सब बातें जो कई लोगों को आडम्बर और ढकिया नूसी लगती हैं परंतु सही मायने में यही होती हैं जो कि दो इंसान एक-दूसरे से घुल-मिल जाते हैं और जीवन पर्यन्त एक दूसरे से एक प्यार और विश्वास के बंधन में बंधे रहते हैं। यही होता है असली दाम्पत्य जीवन ।