आधुनिक शिक्षा पद्धति मूल्यहीन है। साथ ही रोजगारन्मुख न होने के कारण हर साल देश में पढ़े-लिखे होनहार बेरोजगार पैदा हो रहे है। साल दर साल इनकी तादाद में वृद्धि ही देखी जा रही है। अब न तो शिक्षा प्रणाली में वे जीवन पोषक तत्व है जिनकी बुनियाद पर एक सुदृढ़ व सक्षम राष्ट्र के नागरिकों का सुव्यवस्थित निर्माण किया जा सकें। कठिनाईयों व हर विषम घड़ी में लड़ने-भीड़ने की शक्ति प्रदान करने वाले शिक्षा प्रणाली का निरंतर ह्यस ही होता जा रहा है। आज शिक्षा के नाम पर केवल और केवल पश्चिमी दार्शनिकों, विचारधाराओं व विदेशी इतिहास को रटाया जा रहा है। जिसको पढ़कर हमारे शिक्षार्थी रट्टू तोते बन रहे है। जिसके परिणामस्वरुप जीवन में थोड़ी-सी तकलीफ पडने पर ये तोते फांसी के फंदे को चूम कर कई सवालों को जन्म दे रहे है। क्या आज की शिक्षा प्रणाली हमारे विद्यार्थियों में नकारात्मकता और तनाव का क्षेत्र व्यापक नहीं कर रही है ? क्या हम ऐसे ज्ञान के बदौलत स्वामी विवेकानंद और सुभाष चंद्र बोस जैसे तीक्षण व कुशाग्र विद्वान व विदूषियों का निर्माण कर पायेंगे ? शायद, आपका जबाव ‘ना’ ही होगा ! तो क्या शिक्षा विभाग व देश के प्रधान को शिक्षा में परिवर्तन के लिए नियोजित योजनाओं का निर्माण नहीं करना चाहिए ! इससे बड़ा दुर्भाग्य और हमारी वर्तमान शिक्षा पद्धति पर सवालिया निशान क्या होंगा कि कोटा जैसे शहर का नाम ही आज आईआईटी प्रशिक्षु छात्रों के निरंतर व्यापक होते आत्महत्या के आंकडों के कारण “सुसाइड सिटी” हो गया है। हर दूसरे व तीसरे दिन एक छात्र अपनी इहलीला को खत्म कर रहा है। इन छात्रों की आत्महत्या कारण तनाव, माता-पिता की अधिक अपेक्षाएं, गलाकाट प्रतिस्पर्धा के साथ ही हमारे वर्तमान दिशाहीन शिक्षा प्रणाली भी है। जो शिक्षा आदिमानव को मानव बनाने वाले रही हो वो आज किसी की आत्महत्या का कारण भी बन सकती है ? यह सोचनीय विषय है। जरुरत है आज राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसे पाठ्यक्रम को बनाने की जिसमें बाल, किशोर व युवा होते विद्यार्थियों के लिए उम्मीद, आदर्शता, भविष्य व जीवन निर्माण, नैतिक मूल्य के साथ ही राष्ट्रभक्ति व स्वाभिमान का भाव अंतर्निहित हो।