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शिक्षक समाज की धुरी व देश निर्माता

3 सितम्बर 2017

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समाज की नवचेतना को आकार एवं दिशा देने में शिक्षक की अहम् भूमिका होती है। शिक्षक समाज का दर्पण व निर्माण वाहक है। नवशिशु नामक नवकोपले जब इस संसार जगत में प्रवेश करती है, तो उस समय वह परिवार की पाठशाला में मां नामक शिक्षक से संस्कारों व व्यवहार की तालीम ग्रहण करती है। यह कहे तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि सीखाने वाला व सीख देने वाला हर प्राणी शिक्षक है। शिक्षक वह पुंज है जो अ ज्ञान के तमस को मिटाकर ज्ञान की ज्योति प्रज्जवलित करता है। वह आफताब है जिसके पास ज्ञान का प्रकाश है। वह समंदर है जिसके पास ज्ञान रुपी अमृत का अथाह जल है। जिसका कभी क्षय मुमकिन नहीं है। शिक्षक को समाज में सदैव ही सर्वश्रेष्ठ पद पर रखकर उसकी बुद्धिमता का सम्मान किया गया है। बड़े-बड़े राजाओं के मस्तक शिक्षक के चरणों में नतमस्तक हुए है। यदि प्राचीन समय की बात की जाये तो शिक्षक के आश्रम में रहकर ही राजकुमार अपना जीवन विकसाते थे। आश्रम में ही उनकी शिक्षा-दीक्षा संपंन होती थी। हमारे वेद-ग्रंथों में शिक्षक को साक्षात् ब्रह्मा, विष्णु व महेश की संज्ञा दी गई है। शिक्षक समाज की धुरी है जिसके मार्गदर्शन में देश का निर्माण करने वाला भविष्य सुशिक्षित व प्रशिक्षित होता है। नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बनाने वाले व शिवा (शंभू) को छत्रपति शिवाजी बनाने वाले शिक्षक स्वामी रामकृष्ण परमहंस व समर्थ गुरु रामदास ही थे। चाणक्य जैसे शिक्षक के आक्रोश ने चन्द्रगुप्त मौर्य का निर्माण कर घनानंद के अहंकार का मर्दन कर दिया था। शिक्षक की प्रेरणा और ज्ञान से पत्थर पारस बने है। शिक्षक केवल किताबी शिक्षा ही नहीं देता अपितु जिंदगी जीने की कला भी सीखाने का काम करता है।


अपना भारत देश सदैव से ही शिक्षकों की खान रहा है। इस देश में कई शिक्षक ऐसे हुए जिन्होंने अपनी शिक्षण कला के माध्यम से नगीने तैयार कर अपना गौरव बढ़ाया है। भले वो शिक्षक के रुप में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम हो जिनकी मृत्यु भी युवाओं को संबोधित करते हुई। भारत में शिक्षक दिवस मनाने की भूमिका कुछ इस तरह बंधी कि स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति जब 1962 में राष्ट्रपति बने तब कुछ शिष्यों एवं प्रशंसकों ने उनसे निवेदन किया कि वे उनका जनमदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। तब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने कहा कि मेरे जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने से मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस करूंगा। तभी से 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। भारत ही नहीं बल्कि विश्व में भी अलग-अलग दिन शिक्षक दिवस मनाया जाता है। मसलन चीन में 1931 में शिक्षक दिवस की शुरूआत की गई थी और बाद में 1939 में कन्फ्यूशियस के जन्म दिन, 27 अगस्त को शिक्षक दिवस घोषित किया गया लेकिन 1951 में इसे रद्द कर दिया गया। फिर 1985 में 10 सितम्बर को शिक्षक दिवस घोषित किया गया लेकिन वर्तमान समय में ज्यादातर चीनी नागरिक चाहते हैं कि कन्फ्यूशियस का जन्मदिन ही शिक्षक दिवस हो। इसी तरह रूस में 1965 से 1994 तक अक्टूबर महीने के पहले रविवार के दिन शिक्षक दिवस मनाया जाता था। जब साल 1994 से विश्व शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को मनाया जाना शुरू हुआ तब इसके साथ समन्वय बिठाने के लिये इसे इसी दिन मनाया जाने लगा।


बदलते दौर में शिक्षक के रंग-रुप, रहन-सहन व वेशभूषा में काफी बदलाव देखने को मिला है। पहले शिक्षक आश्रम में वैदिक शिक्षा देते थे, तो अब शिक्षक आधुनिक शिक्षा कक्षाकक्ष में देने लगे है। गुरु-दक्षिणा की जगह हर महीने फीस दी जाने लगी है। शिक्षकों के नाम भी अब टीचर व सर हो गये है। काफी कुछ बदलाव शिक्षक के आचरण में देखने को मिल रहा है। बाजारवाद के प्रलोभन ने शिक्षक की छवि को भी चोटिल करने का प्रयास किया है। धनलोलुपता और चकाचौंध ने शिक्षक को सम्मोहित किया है। कुटिया में दी जाने वाली शिक्षा अब बड़े-बड़े बिल्डिंग के वतानुकूलित कमरों में दी जाने लगी है। शिक्षक के रुप में शिक्षा का सौदा करने वाले सौदागर पनपने लग गये है। स्कूल सीखने की जगह न होकर मोल भाव के किराणा स्टोर में परिवर्तित हो चुके है। पैसे देकर मनचाही डिग्री खरीदी जा सकती है। ऐसे संक्रमण काल में शिक्षक की सही पहचान धूमिल होती जा रही है। लोगों की गलत अवधारणा यह कहते पायी गई कि शिक्षक कौन बनता है ? शिक्षक जैसे महत्वपूर्ण इकाई को काल का ग्रास लग गया है। विगत सालों में घटित कई घटनाओं ने शिक्षक के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगाये है। बिहार टॉपर्स घोटाले ने शिक्षक की बदलती मानसिकता का परिचय दिया है। दरअसल, ऐसे लोगों को शिक्षक कहना शिक्षक का अपमान करना ही होगा। यह कथित शिक्षक के वेश में वे दलाल है जो शिक्षा का करोबार करके गुनाह को अंजाम देते है। ऐसे लोग शिक्षक कहलाने के कथ्य ही हकदार नही है।


बिलकुल ऐसी बात भी नहीं है कि अच्छे शिक्षक खत्म हो गये है। आज भी कई ऐसे शिक्षक है जो सेवानिवृत्ति के बाद भी स्कूलों में निःशुल्क शिक्षा दे रहे है। सुदूर इलाकों में जाकर बालपीढ़ी को शिक्षित करने का बीड़ा उठाये हुए है। ऐसे शिक्षकों में पहला नाम आता है केरल के मल्लापुरम् के पडिजट्टुमारी के मुस्लिम लोअर प्राइमरी स्कूल के गणित के 42 वर्षीय अध्यापक अब्दुल मलिक का। बीते 20 वर्षों से वे स्कूल तैर कर जाते और आते हैं। एक और तरीका है उनके पास स्कूल पहुंचने का। सड़क मार्ग। पर सड़क मार्ग से 24 किलोमीटर लंबी यात्रा में खराब होने वाले समय को बचाने के लिए अब्दुल मलिक प्रतिदिन अपने घर से स्कूल और स्कूल से वापस घर तैरकर जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने आज तक अपने स्कूल से एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली है। इसके अलावा अब्दुल एक बड़े पर्यावरण प्रेमी भी है।


इसी तरह एक ओर शिक्षक है जिनका नाम आलोक सागर है, जो आदिवासियों की जीवनशैली बदल रहे। इनका जन्म 20 जनवरी 1950 को दिल्ली में हुआ था उन्होंने 1966-71 मतक आईआईटी दिल्ली से बी.टेक किया और फिर वही से 1971-73 में एम.टेक की डिग्री पूरी करी उसके बाद वो पी.एचडी करने के लिए राइज यूनिवर्सिटी ह्यूस्टन चले गए। पी.एचडी करने के बाद करीब डेढ़ साल तक यूएस में जॉब करी पर आखिर देश की मिट्टी की खुशबू इन्हें वापिस भारत ले आई वहां से आने के बाद एक साल तक आईआईटी दिल्ली में पढाया उसी दौरान इन्होंने पूर्व आर बी आई गवर्नर रघुराम राजन को भी पढाया था। करीब 90 के दशक में आदिवासी श्रमिक संघठन के अपने साथियों के साथ मध्य प्रदेश आ गए थे, आलोक जी फिलहाल कोचामू नामक गाँव जो की मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 165 किलोमीटर दूरी पर स्थित है, यही इनका ठिकाना है। उन्होंने यहाँ करीब 50000 से ज्यादा पौधे लगाए है, साथ ही फलदार पौधे लगाकर गान में लोगो को गरीबी से लड़ने में मदद कर रहे है। गाँव में लोगो की मदद करना और बच्चो को शिक्षा प्रदान करना इनकी दिनचर्या में शामिल है।


भारत में ऐसे आदर्श व प्रेरणादायी शिक्षकों की सूची काफी लंबी है। यह सब वे शिक्षा के कुलदीपक है जो जग को अपनी रोशनी से रोशन कर रहे है। ऐसे शिक्षक ही वास्तविक मायनों में सम्मान के असल हकदार है। इनके लिए शिक्षक होने का अर्थ जीवन की अंतिम सांस तक ज्ञान की ज्योति जलाये रखना है। ऐसे महान शिक्षकों को याद करने का 5 सितंबर खास दिन है।



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सुबह-सुबह नाथूलाल दौड़े-दौड़े घर आ धमके और बोले - भईया ! हमें तो नेता बनना है। मैंने कहा - भाई ! आज सूरज किस दिशा में उगा है ! सीधे-साधे नाथूलालजी को आज अचानक ये नेता बनने की बीमारी कहां से और क्यों लगी है ? नाथूलाल बोले - यह मत पूछो ! बस ! हमें नेता बनने का गुरुमंत्र सिखा दो। जिससे हम शीघ्रातिशीघ्र न

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तलाक को तलाक‚ तलाक‚ तलाक

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देश के सर्वोच्च न्यायलय ने आखिरकार तीन तलाक को अमानवीय एवं असंवैधानिक करार देकर एक अभूतपूर्व कदम बढाते हुए ऐतिहासिक निर्णय सुनाई ही दिया। बेशक‚ इस फैसले का मुस्लिम महिलाओं को बेस्रबी से इंतजार था। आखिर वह इंतजार उनके हक में आये फैसले ने खत्म कर ही दिया। निश्चित ही मंगलवार‚ 22 अगस्त का दिन मुस्लिम मह

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बाल संहार

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रो पड़ा था गोरखपुररोया सारा हिन्दुस्तान थाबेरहम व्यवस्था ने छिनाजब बच्चों का आसमां थाबिखल पड़ी मां की ममतापिता के अश्रु रुक न पाये थेजब बच्चों के मुर्दा शवसधे हाथों में आये थेटूटा आसुंओं का सैलाबधरती ने मातम गाया थामां के आंचल में दूध नहींअब रक्त उतर आया थास्वप्न हुए सारे धूमिलआशाओं की अर्थी उठी थीशमश

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न्यू इंडिया

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आजकल न्यू इंडिया के चर्चे हर जुबां पर है। मोदीजी के मन की उपज है इंडिया को 2022 यानि कि आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर न्यू इंडिया बनना। लेकिन, हुजूर ! आपका शासनकाल तो 2019 तक ही है फिर कैसे न्यू इंडिया का स्वप्न पूरा हो पायेगा। यानि की जनता यदि इंडिया को न्यू इंडिया बनते देखना चाहती है तो 2022 तक मोदीज

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बच्चों की खेल से दूरी आखिर क्या मजबूरी

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नोटबंदी, नवपरिवर्तन और नौटंकी

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आठ नवंबर, 2016 की वो रात कौन भूल सकता है ! जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अकस्मात ही पांच सौ और एक हजार रुपये के जारी नोटों पर रोक लगा दी थी। जिन पांच सौ और एक हजार रुपये को जेब में सुरक्षित पाकर आम आदमी अपने को धनवान समझता था, अब मोदी जी की बात सुनकर उसी आदमी के पैरों तले जमीन खिसक गई थी। ल

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जानलेवा अंध भक्तों का खतरा

30 अगस्त 2017
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आज अंध भक्त युग चल रहा है। श्रद्धा, विश्वास और आस्था का मर्दन हो चुका है। भक्त के स्थान पर अंध भक्त काबिज हो गये है। इन अंध भक्तों के सिर पर मौत का जुनून संवार है। यह किसी भी हद तक जा सकते है। कुछ भी कर सकते है। ऐसी दीवानगी आजतक इससे पहले कभी भी नही देखी गयी। अक्ल के अंधे और दिमाग से पैदल इन अंध भक्

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30 अगस्त 2017
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सभा को संबोधित करते हुए नेताजी ने कहा - हमें न्यू इंडिया बनना। स्वच्छ भारत निर्माण हमारा ध्येय है। किसी भी प्रकार की गंदगी हम नहीं फैलने देंगे। कूडा-करकट का नामोनिशान नहीं रहने देंगे। भारत को सुंदर बनाने के लिए हम जान तक दे देंगे। नेताजी की बात सुनकर मंत्रमुग्ध हुई जनता ने तालियों का पहाड़ खड़ा कर ल

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गरीब की जिंदगी

1 सितम्बर 2017
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सचमुचगरीब की जिंदगीएक पान के बीडे की तरहसर्वत्र सुलभ हैउसे जब चाहोतब खरीद लोऔर जब चाहोतब थूक दोपर हमयह भूल जाते है किहमारा मुख उस की बदौलत ही लाल हैं।

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शिक्षक समाज की धुरी व देश निर्माता

3 सितम्बर 2017
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न्यू इंडिया बनाने में शिक्षा और शिक्षकों का योगदान

6 सितम्बर 2017
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वर्तमान में देश में शिक्षा की दुर्गति देख यह यकीन कर पाना मुश्किल है कि ये वही भारत है जहां तक्षशिला व नालंदा जैसे विश्वविद्यालय विश्व के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में से एक माने जाते थे। जो देश चाणक्य और रामकृष्ण परमहंस जैसे महान शिक्षकों का आदर्श रहा हो और जिन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य और स्वामी व

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मूल्यहीन शिक्षा पद्धति हमें कहाँ ले जायेंगी ?

6 सितम्बर 2017
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आधुनिक शिक्षा पद्धति मूल्यहीन है। साथ ही रोजगारन्मुख न होने के कारण हर साल देश में पढ़े-लिखे होनहार बेरोजगार पैदा हो रहे है। साल दर साल इनकी तादाद में वृद्धि ही देखी जा रही है। अब न तो शिक्षा प्रणाली में वे जीवन पोषक तत्व है जिनकी बुनियाद पर एक सुदृढ़ व सक्षम राष्ट्र के नागरिकों का सुव्यवस्थित निर्माण

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प्रेस की आजादी पर गहराता संकट

8 सितम्बर 2017
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प्रेस की आजादी को लेकर आज कई सवाल उठ रहे है। पत्रकार और पत्रकारिता के बारे में आज आमजन की राय क्या है ? क्या भारत में पत्रकारिता एक नया मोड़ ले रही है ? क्या सरकार प्रेस की आजादी पर पहरा लगाने का प्रयास कर रही है ? क्या बेखौफ होकर सच की आवाज को उठाना लोकतंत्र में “आ बैल मुझे मार” अर्थात् खुद की मौत क

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बूंद-बूंद दूध बह गया देखा जो लहू लाल का

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छाती से सारा बूंद-बूंद दूध बह गया देखा जो लहू लाल का, मन माँ का ढह गया। अब उम्र भर न सोएंगे उस माँ के दोनों नैन, सब चैन लूट ले गया इस दिल का था जो चैन...। कवियित्री अंकिता चतुर्वेदी की ये उक्त पंक्तियां गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में सात साल के दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले प्रद्युम्न की हत्या प

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भारत एक गड्ढा प्रधान देश

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देश में विकास सड़क के गड्ढों की तरह फैलता जा रहा है। दरअसल ये छोटे-छोटे गड्ढे भारत मां पर जख्म है। ये जख्म आजादी के सत्तर साल बाद सोने वाली चिड़िया की हाल-ए-दास्तां है। हर पांच साल बाद कोई न कोई महापुरुष जीतता है और इन जख्मों को भरने की बजाय सहलाता है और नमक छिड़क कर चला जाता है। वैसे भारत एक गड्ढा प्र

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जननेता गिरोड़ीमल का भाषण

12 सितम्बर 2017
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चौदह सितंबर यानि हिन्दी का दिन है। यह दिवस आज गांव के गांधी मैदान में बड़ी धूमधाम से मनाया जाना है। जाने-माने प्रसिद्ध जननेता गिरोड़ीमल का संबोधन जो होने वाला है। लोग अपने नेता गिरोड़ीमल को सुनने के लिए बेताब है। कार्यक्रम का आगाज जननेता गिरोड़ीमल के भव्य स्वागत के साथ हुआ। गिरोड़ीमल मंच पर हिन्दी दिवस प

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हिन्दी कर्क रोग से पीड़ित क्यों ?

13 सितम्बर 2017
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भाषा संवाद संप्रेषण का सशक्त माध्यम है। मनुष्य को इसलिए भी परमात्मा की श्रेष्ठ कृति या श्रेष्ठ सृजन कहा जाता है कि वह भाषा का उपयोग कर अपने भावों को अभिव्यक्त करने में सक्षम है। यहीं विशेषता है जो मनुष्य को अन्य प्राणियों से भिन्न करती है। आज संसार में 6809 से अधिक भा

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मच्छर भगाओ अभियान

18 सितम्बर 2017
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भाईसाहब ! आजकल मच्छरों ने तंग कर रखा है। शाम ढलते जैसे ही ट्यूबलाइट जलायी और मच्छरों का पूरा कुनबा टूट पडता है। मच्छर और मौसम दोनों का गणित समझ से परे है। आधा सितंबर बीत गया है। लेकिन, मौसम का रूख समझ नहीं पाया। दिन में गर्मी पड़ रही है और सुबह ठंड। जुकाम ने नाक में दम करके रखा है। नथुनों से गंगा और

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जिस्म के सौदागर

18 सितम्बर 2017
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तुम देखते हो एक औरत में आंखों की लंबाई होठों की चिकनाईस्तनों का आकार नितंबों की मोटाई तुम निहायतीजिस्म के सौदागर हो !तुम चूक कर देते हो !एक औरत के दिल में देखने मेंप्रेम और ममता की अथाह गहराई आंखों में लाज का काजलहोठों पर रहनुमाईदूध से

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सृष्टि के वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा

18 सितम्बर 2017
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शिल्प, वास्तुकला, चित्रकला, काष्ठकला, मूर्तिकला और न जाने कितनी कलाओं के जनक भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का आर्किटेक्ट व देवशिल्पी कहा जाता है। हम उन्हें दुनिया के प्रथम आर्किटेक्ट और इंजीनियर भी कह सकते है। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार देवताओं के लिए भवनों, महलों, रथो

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तुलसीदास ओ तुलसीदास

18 सितम्बर 2017
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तुलसीदास ओ तुलसीदास तुम भी प्रेम पाश में सारी हदें लांघ गये थेरजनी के तम में जली जो विरह अगन उर मेंतुम लाश को नाव और सर्प को रस्सी समझ बैठे थेतुलसीदास ओ तुलसीदासतुम भी प्रिये की आस मेंभटके थे वन वन किसी की तलाश मेंसच सच बतलाना रत्नावली के दमक से तुम भी कुछ देर जले थे तुलसीदास ओ तुलसीदासपाकर अपनी मूर

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मेहनत से बढ़कर किस्मत बदलने का कोई दूसरा औजार नहीं

22 सितम्बर 2017
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यदि मैं भारत को एक बाबा प्रधान देश कहूं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी ! ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है कि हाल में घटित फर्जी बाबाओं के जो काले कारनामे देखने को मिले उससे निश्चित ही हमारी आस्था और विश्वास को गहरी चोट पहुंची हैं। क्या यह कम विडंबना का विषय नहीं है कि आज हमारे देश में जो सर्वे बेरोजगारों की गिनत

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इच्छाधारी हनीप्रीत की तलाश

27 सितम्बर 2017
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टी. वी. में अखबारों में नेताओं के नारों में गाँव-गली-गलियारों में सब जगह डेरा सच्चा सौदा प्रमुख फर्जी बाबा राम रहीम गुरमीत सिंह की शिष्या उर्फ दत्तक बेटी हनीप्रीत का ही जिक्र है। मोहल्ले के पांच वर्ष के बच्चे से लेकर अस्सी वर्षीय बुजुर्ग रामू काका जिनके दांत नहीं, पेट में आंत नहीं फिर भी मुंह पर सवा

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सपने में रावण से वार्तालाप

29 सितम्बर 2017
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मैें स्वप्नदर्शी हूं। इसलिए मैं रोज सपने देखता हूं। मेरे सपने में रोज-ब-रोज कोई न कोई सुंदर नवयुवती दस्तक देती है। मेरी रात अच्छे से कट जाती है। वैसे भी आज का नवयुवक बेरोजगारी में सपनों पर ही तो जिंदा है। कभी कभी डर लगता है कि कई सरकार सपने देखने पर भी टैक्स न लगा दे। खैर ! बात सपनों की चल ही पड़ी है

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गांधी जी का चौथा बंदर

1 अक्टूबर 2017
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माने तो जाते है गांधी जी के तीन बंदर लेकिन आजकल चौथे बंदर का फोग चल रहा है। या यूं कहे तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इस चौथे बंदर के आगे तीनों बंदरों का वर्चस्व डाउन हो गया है। यह चौथा बंदर कमाल और धमाल है। इसकी आदतें और हरकतें बाकि के तीन बंदरों से बिलकुल ही भिन्न है। यह तो बुरा कई हो रहा हो तो आं

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टॉयलेट से ताजमहल तक

5 अक्टूबर 2017
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हमारी सरकार टॉयलेट बनाने पर आमादा है। यूं कहे कि सरकार ने टॉयलेट बनाने का ठेका ले रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां जाते है, वहां शुरू हो जाते है - भाईयों और बहनों और मित्रों ! टॉयलेट बनाया कि नहीं ? ”शौच है वहां सोच है“ सरकार का जब ध्येय होगा तो एक दिन पूरा देश शौचालय में तब्दील होते देर नहीं

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वड़ापाव वाला

7 अक्टूबर 2017
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वड़ापाव वालाएक पाव को बीचोबीचछुरी से चीरता हैवड़े को दबाकर धंसा देता हैफिर लाल-हरी-पीलीचटनी छिड़कता हैतली हुई हरी मिर्च और प्यास के चंद कटे टुकड़ों के साथहाथ में थमा देता हैदरअसल वड़ापाव वाला पाव को ही नही चीरता हैवो चीरता है जिंदगी के तमा

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भक्त, अंधभक्त और पागलपंत

8 अक्टूबर 2017
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कल शर्मा जी गली के नुक्कड़ पर मिले। हमसे कहने लगे हमारी तो आस्था भगवान-वगवान में बिलकुल भी नहीं है। मैं तो बिलकुल ही घोर नास्तिक हूं। मैंने कहा - चलो, भाई ! जिसकी जैसी सोच। फिर अगले दिन शर्मा जी को मंदिर में अपनी धर्मपत्नी के साथ हवन कराते हुए देखकर मेरी आंखें फटी की फटी रह गयी। मैं शर्मा जी केे पास

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मिट्टी के दीये

8 अक्टूबर 2017
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हर अंगना हर द्वार - द्वार हर हिये !ज्योर्तिमय हो जग में मिट्टी के दीये !अमावस्या के श्यामपट्ट पर फैलायें !ज्योतिकलश बन जो सारा तम पियें !आशाओं के अगनित स्वरों को लियें !हर दिशा में प्रकाशमान मिट्टी के दीये !वायु के विप्लव वेग से न भयभीत हो !प्रखर प्रज्वलित ज्योति बन जो जलें !निर्भीक निडर नि:छल कितने

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विकास का मतलब मूर्ति खड़ी करना

12 अक्टूबर 2017
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भारत एक विकासशील देश है। और भारत एक विकासशील देश ही रहेगा ! क्योंकि भारत में नेताओं की अक्ल भैंस चराने गयी है। अब देखते है अक्ल की घर वापसी कब होती है ? बरहाल, मूर्ति सरीकी सरकार को मूर्तियों से इत्ता मोह है कि मूर्तियों के निर्माण के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है। वैसे भी भारत में लोग ही पागल नही

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कब बूझेंगी भूखे पेट की आग ?

18 अक्टूबर 2017
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रोज कहर के बादल फटते है टूटी झोपड़ियों पर, संसद कोई बहस नहीे करती भूखी अंतड़ियों पर‘ कवि की ये पंक्तियां वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सही साकार होती है। जिस देश में हर वर्ष दस लाख बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती है। जहां फसल खराब होने के कारण कृषक आत्महत्या करने पर विवश है। व्यापारी वर्ग कर्ज की मार झेल

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लोकतंत्र को चूहों से खतरा

18 अक्टूबर 2017
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बेशक, हमें आजादी तो मिली। लेकिन हमें चूहा प्रथा आजादी की मुंह दिखाई में मिली। लोकतंत्र जैसे-जैसे विकास करता गया चूहों का खानदान भी बढ़ता गया। यूं कहिए कि चूहों की हालत मस्त और बेचारी जनता पस्त होती गई। ऐसे भी समझ लीजिए कि लोकतंत्र का हारामखोर इन चूहों ने पूरा का पूरा बलात्कार कर डाला है। कभी भी बाबा,

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अपुन के पास टाइम नहीं है

18 अक्टूबर 2017
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मैंने बस स्टैंड पर खड़े एक भाईसाहब से पूछा - क्या टाइम हुआ है ? मोबाईल पर व्यस्त और मुंह में दबाये हुए पान मसाला मस्त बोले - भीडू ! अपुन के पास फोकट का टाइम नहीं है। जबाव के बाद मैं समझ गया भाईसाहब बड़े व्यस्त किस्म के प्राणी है। खैर ! बस आई और मैं बस में बैठकर पहुंच गया एक अजनबी शहर की हवा खाने। मैं

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किसी राजा या रानी के डमरू नहीं हैं हम

18 अक्टूबर 2017
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“किसी राजा या रानी के डमरू नहीं हैं हम, दरबारों की नर्तकी के घूँघरू नहीं हैं हम” वीररस के सुप्रसिद्ध कवि डॉ. हरिओम पंवार की उक्त पंक्तियां लोकतंत्र में राजशाही के रंग के प्रति तीक्ष्ण प्रहार है। इन पंक्तियों ने एक बार फिर अपनी प्रासंगिकता दर्ज की है। जिस तरह श्रृंगार के अत्यंत लोकप्रिय कवि और आम आदम

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दिवाली के मतलब हजार

18 अक्टूबर 2017
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भाईसाहब ! दिवाली सिर पर है। हर जगह हर्ष और उल्लास का माहौल है। लेकिन, देश की राजधानी दिल्ली की गलियां सुनसान है। दिल्ली वालों के दिलों पर निराशा के बादल छाये हुए है। क्योंकि कोर्ट ने पटाखे फोड़ने पर सख्त पाबंदी लगा दी है। कोर्ट का मानना है कि पटाखों से प्रदूषण फैलता है। जो कि सही मानना है। लेकिन, इसक

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मिट्टी के दीये !

18 अक्टूबर 2017
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हर अंगना हर देहरी हर हिये !ज्योर्तिमय हो जग में मिट्टी के दीये !अमावस्या के श्यामपट्ट पर फैलायें प्रकाश !ज्योतिकलश बन जो सारा तम पियें !आशाओं के अगनित स्वरों को लियें !हर दिशा में प्रकाशमान हो मिट्टी के दीये !वायु के विप्लव वेग से न भयभीत हो !प्रखर प्रज्वलित ज्योति बन जो जलें !निर्भीक निडर निःछलकितन

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आस्था की दुकान

29 अक्टूबर 2017
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भारत के गली-गली में आस्था की दुकान चल रही है। आस्था के नाम पर कोई न कोई किसी न किसी को ठग रहा है। आजकल टेलीविजन पर राधे मां के ढिंचैक डांस की चर्चा परवान पर है। गांव में चौपाल पर बैठे बुजुर्ग जिनके पांव कब्र में लेटे है, वे भी राधे मां के ढिंचैक डांस पर जमकर बहस कर रहे है। क्या नाचती है राधे मां ! उ

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पर्यावरण संरक्षण सबकी जिम्मेदारी

29 अक्टूबर 2017
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मानव जीवन के निर्माण में पंचतत्व जल, वायु, आकाश, पृथ्वी और अग्नि की महत्वपूर्ण भूमिका है। जब तक इन पांच तत्व का समन्वय, संतुलन और संगठन निर्धारित परिमाण में संयोजित रहता है तो हम कहते पर्यावरण सही है और जब इनके मध्य का तालमेल बिगड़ने लगता है तो हम कहते पर्यावरण दूषित हो रहा है। प्रकृति और मानव आदिकाल

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डेंगू का डंक

22 नवम्बर 2017
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भगवान भले ही मरीज बनाएं पर डेंगू का मरीज किसे को ना बनाएं ! डेंगू के इलाज में जिंदगी की सारी जमापूंजी निकल जाती है। यहां तक की देह से जान भी निकल जाती है। लेकिन, डेंगू है कि ससुरा निकलना का नाम ही नहीं लेता। डेंगू है कि भ्रष्टाचार जो हठधर्मी को होकर सिर पर मौत का ताडंव करता है। ऐसे में तथाकथित भगवान

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जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़

26 नवम्बर 2017
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विडंबना है कि आजादी के सात दशक बाद भी हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं हो सका है। सरकारी अस्पतालों का तो भगवान ही मालिक है ! ऐसे हालातों में निजी अस्पतालों का खुलाव तो कुकरमुत्ते की भांति सर्वत्र देखने को मिल रहा हैं। इन अस्पतालों का उद्देश्य लोगों की सेवा कर

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सर्दी का सितम

30 नवम्बर 2017
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सर्दी का प्रकोप दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। दिन भी ठंडा है और रात भी ठंडी है। इस ठिठुरन से लोकतंत्र ठिठुर रहा है। नेता ठिठुर रहे है, जनता ठिठुर रही है, जानवर ठिठुर रहे है। ठिठुरन के मारे रजाई से बाहर निकलने का मन ही नहीं कर रहा है। सुबह उठते ही सीधी दोपहर हो रही है। द

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ढोंगी बाबाओं का फैलता मकड़जाल

24 दिसम्बर 2017
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आस्था के नाम पर पाखंड, ढोंग और आडंबर का खेल भारत में जारी हैं। एक ऐसा ही ढोंग का खेल रचने वाला तथाकथित बाबा फिर सुर्खियों में हैं। दिल्ली के रोहिणी में आध्यात्मिक विश्वविद्याालय चलाने वाले तथाकथित बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित पर उसी की शिष्या ने दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है। कहा तो यहां तक जा रहा है

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बाघ संरक्षण की चुनौतियां और समाधान

4 जनवरी 2018
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देश में बाघों की लगातार कम होती संख्या सरकार और पशुप्रेमियों के लिए चिंता का विषय है। कभी लोगों के बीच अपनी दहाड़ से दहशत पैदा कर देने वाले बाघ आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। आज केवल बाघों की आठ में से पांच प्रजाति ही बची है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ नानक संस्था का कहना माने तो 2022 तक बाघ जंगल से वि

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युवा पीढ़ी संभल करके विवेकानंद हो जाए !

11 जनवरी 2018
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युगपुरुष, वेदांत दर्शन के पुरोधा, मातृभूमि के उपासक, विरले कर्मयोगी, दरिद्र नारायण मानव सेवक, तूफानी हिन्दू साधु, करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्त्रोत व प्रेरणापुंज स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता आधुनिक नाम कोलकता में पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी के घर हुआ था। दरअसल यह

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मकर संक्रांति : अनेकता में एकता का पर्व

13 जनवरी 2018
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हमारी भारतीय संस्कृति में त्योहारों, मेलों, उत्सवों व पर्वो का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां साल में दिन कम और त्योहार अधिक है। ऐसे में यह कहे तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यहां हर दिन होली और हर रात दिवाली होती है। दरअसल ये त्योहार और मेले ही है जो हमारे जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार करने के साथ ही परस

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'बागों में बहार है, कलियों पे निखार है'

21 जनवरी 2018
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बसंत मतलब कवियों और साहित्यकारों के लिए थोक में रचनाएं लिखने का सीजन। बसंत मतलब तितलियों का फूलों पर मंडराने, भौंरे के गुनगुनाने, कामदेव का प्रेमबाण चलाने, खेत में सरसों के चमकने और आम के साथ आम आदमी के बौरा जाने का दिन। बसंत मतलब कवियों व शायरों के लिए सरस्वती पूजन के नाम पर कवि सम्मेलन व मुशायरों

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आजादी के अमर नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

22 जनवरी 2018
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भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सेनानी, भारत रत्न सम्मानित, 'दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा' जैसे घोषवाक्यों से स्वाधीनता संग्राम में नवीन प्राण फूंकने वाले सर्वकालिक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म पिता जानकी नाथ बोस व माता प्रभा देवी के घर 23 जनवरी सन् 1897 को उड़ीसा के कटक म

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‘गणतंत्र’ होता ‘गनतंत्र’ में तब्दील !

25 जनवरी 2018
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हमारे देश को गणतंत्र की राहों पर चलने से पहले स्वतंत्र होना पड़ा। और यह स्वतंत्रता हमें इतनी भी आसानी से नहीं मिली जितनी की हम फेसबुक की प्रोफाइल पिक्चर को तीन रंगों में रंगकर अपनी राष्ट्रभक्ति साल में दो दिन छब्बीस जनवरी और पन्द्रह अगस्त पर सार्वजनिक कर देते हैं। आज़ादी के लिए न जाने कितने ही मां के

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सृष्टि के वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा

28 जनवरी 2018
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शिल्प, वास्तुकला, चित्रकला, काष्ठकला, मूर्तिकला और न जाने कितनी कलाओं के जनक भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का आर्किटेक्ट व देवशिल्पी कहा जाता है। हम उन्हें दुनिया के प्रथम आर्किटेक्ट और इंजीनियर भी कह सकते है। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार देवताओं के लिए भवनों, महलों, रथों व बहुमूल्य आभूषण इत्यादि का नि

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