सचमुच
गरीब की जिंदगी
एक पान के बीडे की तरह
सर्वत्र सुलभ है
उसे जब चाहो
तब खरीद लो
और जब चाहो
तब थूक दो
पर हम
यह भूल जाते है कि
हमारा मुख उस की बदौलत ही लाल हैं।
1 सितम्बर 2017
सचमुच
गरीब की जिंदगी
एक पान के बीडे की तरह
सर्वत्र सुलभ है
उसे जब चाहो
तब खरीद लो
और जब चाहो
तब थूक दो
पर हम
यह भूल जाते है कि
हमारा मुख उस की बदौलत ही लाल हैं।
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पत्रकार, लेखक, व कवि देवेंद्रराज सुथार नन्हीं उम्र से ही लेखन में कार्यरत है। ये मूलत: राजस्थान के जालौर जिले के बागरा कस्बे के रहने वाले है। इनके लेख व कविताएं आये दिन विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में पढने को मिलती है। फिलहाल, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर में कला संकाय तृतीय वर्ष में अध्ययनरत है।
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