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पर्यावरण संरक्षण सबकी जिम्मेदारी

29 अक्टूबर 2017

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मानव जीवन के निर्माण में पंचतत्व जल, वायु, आकाश, पृथ्वी और अग्नि की महत्वपूर्ण भूमिका है। जब तक इन पांच तत्व का समन्वय, संतुलन और संगठन निर्धारित परिमाण में संयोजित रहता है तो हम कहते पर्यावरण सही है और जब इनके मध्य का तालमेल बिगड़ने लगता है तो हम कहते पर्यावरण दूषित हो रहा है। प्रकृति और मानव आदिकाल से ही परस्पर निर्भर रहे है। यदि हम पर्यावरण के घटकों की बात करे तो हमारी सभ्यताओं का विकास प्राचीन समय में नदियों के किनारे हुआ और हमने प्रकृति प्रदत्त वृक्षों के फल को आहार व सूखी लकड़ियों का ईधन के रुप में उपयोग करके अपना जीवन विकसाया। लेकिन, आज हालात यह हो चुके है कि जीवनकवच पर्यावरण का स्वास्थ्य दिनोंदिन हमारी लापरवाही और स्वार्थी सोच के कारण बिगड़ता जा रहा है। यह कहे तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हमने पर्यावरण के सीने में खंजर घोंपने का काम किया है।


जिस प्रकृति के तत्वों की वैदिक वाग्ङ्मय, रामचरितमानस तथा भगवत् गीता में विभिन्न ऋचाओं द्वारा स्तुति एवं उपासना की गई है, आज अत्याधुनिकता के कारण वहीं प्रकृति दर्द से कराह रही है। इस बात को दुनिया के सबसे विश्वसनीय मेडिकल जर्नल लेंसेट की ताजा रिपोर्ट पुख्ता करती है। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015 में प्रदूषण की वजह से दुनिया भर में 90 लाख लोगों की मौत हुई, जबकि 2015 में प्रदूषण की वजह से भारत में 25 लाख लोगों की मौत हुई। वहीं, दूसरी ओर आतंकवाद की वजह से पूरी दुनिया में साल 2015 में 28,328 लोगों की मौत हो गई। अकेले भारत में सिर्फ आतंकवाद की वजह से 2015 में 722 लोगों की जान चली गई। पर्यावरण प्रदूषण के कारण होने वाली मौतोे का ये आंकड़ा किसी भी युद्ध, आतंकवाद और भुखमरी से होने वाली मौतों से बहुत ज्यादा है। ये आश्चर्यजनक है कि दुनिया में प्रदूषण से होने वाली मौत के मामले में भारत पहले नंबर पर है। प्रदूषण की वजह से दुनिया को हर साल 293 लाख करोड़ का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है, जो विश्व की अर्थव्यवस्था का 6.2 फीसदी होता है।


हाल की रिपोर्ट हमारे देश व समाज में होने वाले पर्यावरण संरक्षण के कार्यक्रम, गोष्ठियां व बैठकों की पोल खोल देती है। साथ ही हमारा पर्यावरण एवं प्रकृति प्रेमी होने का दावा झूठा साबित कर देती है। सच तो यह है कि हम प्रकृति के हित की बात भी एयरकंडिशनर चैंबर्स में बैठकर करना उचित समझते है। परिणामस्वरूप आज धरती बंजर होती जा रही है। प्राणवायु में जहर घुलता जा रहा है। पानी की पवित्रता पर संकट के बादल मंडरा रहे है। गंगा और यमुना जैसी नदियां अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। हरितिमा की हरी चटाएं विलुप्त होने की कगार पर है। कोयल के कंठ से निकलने वाली मधुर आवाज कारखानों के कर्कश में गुम होती जा रही है। वर्षा का क्रम बिगड़ रहा है। कहीं कम कहीं अधिक तो कहीं बादल बरस ही नहीं रहे है। धरती का सुहाग लुटता जा रहा है। ग्लेशियर पिघलते जा रहे है। ओजोन परत का क्षय हमारे समक्ष चुनौती बन रहा है। चहुंओर मानवीय जीवन को संकट का भय सताने लग गया है।


बेशक, प्रकृति सर्वोत्तम और शक्तिशाली है। इसके साथ मित्रता का रिश्ता रखकर ही जीया जा सकता है। लेकिन, हमारी मिथ्यावादी सोच और हठधर्मिता ने प्रकृति को अपनी दासी बनाने की जब जब निरर्थक और नाकामियाब कोशिश की तब तब मुंह की खायी और फलस्वरूप केदारनाथ की भीषण बाढ़ जैसे महाप्रलय का सामना करना पड़ा। प्रकृति के विशालकाय रूप के समक्ष मानव का कद बौना था और बौना है- यह हमें समझना होगा। पर्यावरण के इशारों पर चलने में ही मानव की बुद्धिमत्ता है।


आखिर बिगड़ते पर्यावरण का समाधान क्या है ? क्या जरूरत इस बात की नहीं है कि हमें पर्यावरण की प्रदूषित होती स्थिति के लिए सर्वप्रथम अपनी दूषित एवं दकियानूसी मानसिकता को बदले। क्या पर्यावरण के प्रति हमें अब सचेत और हद से ज्यादा जागरूक होने की आवश्यकता जान नहीं पड़ती ? निरंतर कटते जंगल पृथ्वी के मंगल के लिए अमंगलकारी बन रहे है। बिना वृक्ष के जीवन की कल्पना कैसी की जा सकती है ?


हमें समझना होंगा पर्यावरण प्रदूषण एक अहम् समस्या है। इसे मिटाने हेतु सबको प्रयास करने होंगे। केवल दंड संहिता व कठोर कानून से ही सुधार संभव नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात के 20वें संस्करण में वर्तमान जल समस्या के लिए जन भागीदारी का आह्वान किया है। प्रकृति के प्रत्येक कार्य व्यवस्थित और स्वचालित मानते हुए उसे निर्दोष माना है। अपनी अविवेकी बुद्धि के कारण मनुष्य ही अपने आपको प्रकृति का अधिष्ठाता मानने की भूल करने लगा जिससे प्रकृति के कार्यो में बाधाएँ उत्पन्न होने लगी। म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट (नगरीय ठोस अपशिष्ठ) कानून में भी कठोर दंड के बावजूद महानगरों में गंदे कचरों के पहाड़ प्रकट हो गए किन्तु सफलतापूर्वक प्रदूषण नियंत्रित किया जा सके इस हेतु कोई ठोस कदम नहीं दिखाई पड़ता। प्रदूषणों के लिए जिम्मेदार हमारी नीयत रही है। नीति की बातें सभी ने की हैं, व्यवहार में किसी ने नहीं उतारा। रूसो का कथन है कि हमें आदत न डालने की आदत डालनी चाहिए। रूसो ने भी प्रकृति की ओर लौटने का आह्वान आज से 300 वर्ष पूर्व किया था। पर्यावरण संरक्षण के लिए देश में 200 से भी ज्यादा कानून हैं। यह एक कानूनी मुद्दा अवश्य है, किन्तु इसे सर्वाधिक रूप से शुद्ध एवं संरक्षित रखने के लिए समाज के सभी अंगों के मध्य आवश्यक समझ एवं सामंजस्य स्थापित होना आवश्यक है। इसके लिए सामाजिक जागरूकता की जरूरत है ताकि सुन्दर परिवार के साथ सुन्दर पर्यावरण बन सकें।


अंततः पर्यावरण संरक्षण के लिए सामूहिक भागीदारी आवश्यक है, परिणामस्वरूप पर्यावरण का बिगड़ना सहज प्रक्रिया हो गई हैं। हमारे पूर्वजों ने वन्य जीवों को देवी-देवताओं की सवारी मानकर तथा पेड़-पौधों को भी देवतुल्य समझकर उनकी पूजा की इस हेतु उन्हें संरक्षण भी प्रदान किया। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम प्रकृति और पर्यावरण के लिए हर उस काम से परहेज करे जिससे उसे हानि का सामना करना पड़े। व्यापक पैमाने पर वृक्षारोपण करने हेतु अभियान चलाने, जन-जागृति लाने जैसी मुहिम इस दिशा में सार्थक पहल होगी।


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भाषा संवाद संप्रेषण का सशक्त माध्यम है। मनुष्य को इसलिए भी परमात्मा की श्रेष्ठ कृति या श्रेष्ठ सृजन कहा जाता है कि वह भाषा का उपयोग कर अपने भावों को अभिव्यक्त करने में सक्षम है। यहीं विशेषता है जो मनुष्य को अन्य प्राणियों से भिन्न करती है। आज संसार में 6809 से अधिक भा

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शिल्प, वास्तुकला, चित्रकला, काष्ठकला, मूर्तिकला और न जाने कितनी कलाओं के जनक भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का आर्किटेक्ट व देवशिल्पी कहा जाता है। हम उन्हें दुनिया के प्रथम आर्किटेक्ट और इंजीनियर भी कह सकते है। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार देवताओं के लिए भवनों, महलों, रथो

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तुलसीदास ओ तुलसीदास

18 सितम्बर 2017
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तुलसीदास ओ तुलसीदास तुम भी प्रेम पाश में सारी हदें लांघ गये थेरजनी के तम में जली जो विरह अगन उर मेंतुम लाश को नाव और सर्प को रस्सी समझ बैठे थेतुलसीदास ओ तुलसीदासतुम भी प्रिये की आस मेंभटके थे वन वन किसी की तलाश मेंसच सच बतलाना रत्नावली के दमक से तुम भी कुछ देर जले थे तुलसीदास ओ तुलसीदासपाकर अपनी मूर

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मेहनत से बढ़कर किस्मत बदलने का कोई दूसरा औजार नहीं

22 सितम्बर 2017
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यदि मैं भारत को एक बाबा प्रधान देश कहूं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी ! ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है कि हाल में घटित फर्जी बाबाओं के जो काले कारनामे देखने को मिले उससे निश्चित ही हमारी आस्था और विश्वास को गहरी चोट पहुंची हैं। क्या यह कम विडंबना का विषय नहीं है कि आज हमारे देश में जो सर्वे बेरोजगारों की गिनत

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इच्छाधारी हनीप्रीत की तलाश

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टी. वी. में अखबारों में नेताओं के नारों में गाँव-गली-गलियारों में सब जगह डेरा सच्चा सौदा प्रमुख फर्जी बाबा राम रहीम गुरमीत सिंह की शिष्या उर्फ दत्तक बेटी हनीप्रीत का ही जिक्र है। मोहल्ले के पांच वर्ष के बच्चे से लेकर अस्सी वर्षीय बुजुर्ग रामू काका जिनके दांत नहीं, पेट में आंत नहीं फिर भी मुंह पर सवा

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सपने में रावण से वार्तालाप

29 सितम्बर 2017
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मैें स्वप्नदर्शी हूं। इसलिए मैं रोज सपने देखता हूं। मेरे सपने में रोज-ब-रोज कोई न कोई सुंदर नवयुवती दस्तक देती है। मेरी रात अच्छे से कट जाती है। वैसे भी आज का नवयुवक बेरोजगारी में सपनों पर ही तो जिंदा है। कभी कभी डर लगता है कि कई सरकार सपने देखने पर भी टैक्स न लगा दे। खैर ! बात सपनों की चल ही पड़ी है

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1 अक्टूबर 2017
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माने तो जाते है गांधी जी के तीन बंदर लेकिन आजकल चौथे बंदर का फोग चल रहा है। या यूं कहे तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इस चौथे बंदर के आगे तीनों बंदरों का वर्चस्व डाउन हो गया है। यह चौथा बंदर कमाल और धमाल है। इसकी आदतें और हरकतें बाकि के तीन बंदरों से बिलकुल ही भिन्न है। यह तो बुरा कई हो रहा हो तो आं

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टॉयलेट से ताजमहल तक

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हमारी सरकार टॉयलेट बनाने पर आमादा है। यूं कहे कि सरकार ने टॉयलेट बनाने का ठेका ले रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां जाते है, वहां शुरू हो जाते है - भाईयों और बहनों और मित्रों ! टॉयलेट बनाया कि नहीं ? ”शौच है वहां सोच है“ सरकार का जब ध्येय होगा तो एक दिन पूरा देश शौचालय में तब्दील होते देर नहीं

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7 अक्टूबर 2017
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वड़ापाव वालाएक पाव को बीचोबीचछुरी से चीरता हैवड़े को दबाकर धंसा देता हैफिर लाल-हरी-पीलीचटनी छिड़कता हैतली हुई हरी मिर्च और प्यास के चंद कटे टुकड़ों के साथहाथ में थमा देता हैदरअसल वड़ापाव वाला पाव को ही नही चीरता हैवो चीरता है जिंदगी के तमा

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भक्त, अंधभक्त और पागलपंत

8 अक्टूबर 2017
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कल शर्मा जी गली के नुक्कड़ पर मिले। हमसे कहने लगे हमारी तो आस्था भगवान-वगवान में बिलकुल भी नहीं है। मैं तो बिलकुल ही घोर नास्तिक हूं। मैंने कहा - चलो, भाई ! जिसकी जैसी सोच। फिर अगले दिन शर्मा जी को मंदिर में अपनी धर्मपत्नी के साथ हवन कराते हुए देखकर मेरी आंखें फटी की फटी रह गयी। मैं शर्मा जी केे पास

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मिट्टी के दीये

8 अक्टूबर 2017
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हर अंगना हर द्वार - द्वार हर हिये !ज्योर्तिमय हो जग में मिट्टी के दीये !अमावस्या के श्यामपट्ट पर फैलायें !ज्योतिकलश बन जो सारा तम पियें !आशाओं के अगनित स्वरों को लियें !हर दिशा में प्रकाशमान मिट्टी के दीये !वायु के विप्लव वेग से न भयभीत हो !प्रखर प्रज्वलित ज्योति बन जो जलें !निर्भीक निडर नि:छल कितने

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विकास का मतलब मूर्ति खड़ी करना

12 अक्टूबर 2017
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भारत एक विकासशील देश है। और भारत एक विकासशील देश ही रहेगा ! क्योंकि भारत में नेताओं की अक्ल भैंस चराने गयी है। अब देखते है अक्ल की घर वापसी कब होती है ? बरहाल, मूर्ति सरीकी सरकार को मूर्तियों से इत्ता मोह है कि मूर्तियों के निर्माण के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है। वैसे भी भारत में लोग ही पागल नही

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कब बूझेंगी भूखे पेट की आग ?

18 अक्टूबर 2017
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रोज कहर के बादल फटते है टूटी झोपड़ियों पर, संसद कोई बहस नहीे करती भूखी अंतड़ियों पर‘ कवि की ये पंक्तियां वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सही साकार होती है। जिस देश में हर वर्ष दस लाख बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती है। जहां फसल खराब होने के कारण कृषक आत्महत्या करने पर विवश है। व्यापारी वर्ग कर्ज की मार झेल

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18 अक्टूबर 2017
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बेशक, हमें आजादी तो मिली। लेकिन हमें चूहा प्रथा आजादी की मुंह दिखाई में मिली। लोकतंत्र जैसे-जैसे विकास करता गया चूहों का खानदान भी बढ़ता गया। यूं कहिए कि चूहों की हालत मस्त और बेचारी जनता पस्त होती गई। ऐसे भी समझ लीजिए कि लोकतंत्र का हारामखोर इन चूहों ने पूरा का पूरा बलात्कार कर डाला है। कभी भी बाबा,

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अपुन के पास टाइम नहीं है

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किसी राजा या रानी के डमरू नहीं हैं हम

18 अक्टूबर 2017
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भाईसाहब ! दिवाली सिर पर है। हर जगह हर्ष और उल्लास का माहौल है। लेकिन, देश की राजधानी दिल्ली की गलियां सुनसान है। दिल्ली वालों के दिलों पर निराशा के बादल छाये हुए है। क्योंकि कोर्ट ने पटाखे फोड़ने पर सख्त पाबंदी लगा दी है। कोर्ट का मानना है कि पटाखों से प्रदूषण फैलता है। जो कि सही मानना है। लेकिन, इसक

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मिट्टी के दीये !

18 अक्टूबर 2017
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हर अंगना हर देहरी हर हिये !ज्योर्तिमय हो जग में मिट्टी के दीये !अमावस्या के श्यामपट्ट पर फैलायें प्रकाश !ज्योतिकलश बन जो सारा तम पियें !आशाओं के अगनित स्वरों को लियें !हर दिशा में प्रकाशमान हो मिट्टी के दीये !वायु के विप्लव वेग से न भयभीत हो !प्रखर प्रज्वलित ज्योति बन जो जलें !निर्भीक निडर निःछलकितन

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आस्था की दुकान

29 अक्टूबर 2017
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भारत के गली-गली में आस्था की दुकान चल रही है। आस्था के नाम पर कोई न कोई किसी न किसी को ठग रहा है। आजकल टेलीविजन पर राधे मां के ढिंचैक डांस की चर्चा परवान पर है। गांव में चौपाल पर बैठे बुजुर्ग जिनके पांव कब्र में लेटे है, वे भी राधे मां के ढिंचैक डांस पर जमकर बहस कर रहे है। क्या नाचती है राधे मां ! उ

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पर्यावरण संरक्षण सबकी जिम्मेदारी

29 अक्टूबर 2017
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मानव जीवन के निर्माण में पंचतत्व जल, वायु, आकाश, पृथ्वी और अग्नि की महत्वपूर्ण भूमिका है। जब तक इन पांच तत्व का समन्वय, संतुलन और संगठन निर्धारित परिमाण में संयोजित रहता है तो हम कहते पर्यावरण सही है और जब इनके मध्य का तालमेल बिगड़ने लगता है तो हम कहते पर्यावरण दूषित हो रहा है। प्रकृति और मानव आदिकाल

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डेंगू का डंक

22 नवम्बर 2017
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भगवान भले ही मरीज बनाएं पर डेंगू का मरीज किसे को ना बनाएं ! डेंगू के इलाज में जिंदगी की सारी जमापूंजी निकल जाती है। यहां तक की देह से जान भी निकल जाती है। लेकिन, डेंगू है कि ससुरा निकलना का नाम ही नहीं लेता। डेंगू है कि भ्रष्टाचार जो हठधर्मी को होकर सिर पर मौत का ताडंव करता है। ऐसे में तथाकथित भगवान

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जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़

26 नवम्बर 2017
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विडंबना है कि आजादी के सात दशक बाद भी हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं हो सका है। सरकारी अस्पतालों का तो भगवान ही मालिक है ! ऐसे हालातों में निजी अस्पतालों का खुलाव तो कुकरमुत्ते की भांति सर्वत्र देखने को मिल रहा हैं। इन अस्पतालों का उद्देश्य लोगों की सेवा कर

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सर्दी का सितम

30 नवम्बर 2017
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सर्दी का प्रकोप दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। दिन भी ठंडा है और रात भी ठंडी है। इस ठिठुरन से लोकतंत्र ठिठुर रहा है। नेता ठिठुर रहे है, जनता ठिठुर रही है, जानवर ठिठुर रहे है। ठिठुरन के मारे रजाई से बाहर निकलने का मन ही नहीं कर रहा है। सुबह उठते ही सीधी दोपहर हो रही है। द

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ढोंगी बाबाओं का फैलता मकड़जाल

24 दिसम्बर 2017
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आस्था के नाम पर पाखंड, ढोंग और आडंबर का खेल भारत में जारी हैं। एक ऐसा ही ढोंग का खेल रचने वाला तथाकथित बाबा फिर सुर्खियों में हैं। दिल्ली के रोहिणी में आध्यात्मिक विश्वविद्याालय चलाने वाले तथाकथित बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित पर उसी की शिष्या ने दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है। कहा तो यहां तक जा रहा है

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बाघ संरक्षण की चुनौतियां और समाधान

4 जनवरी 2018
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देश में बाघों की लगातार कम होती संख्या सरकार और पशुप्रेमियों के लिए चिंता का विषय है। कभी लोगों के बीच अपनी दहाड़ से दहशत पैदा कर देने वाले बाघ आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। आज केवल बाघों की आठ में से पांच प्रजाति ही बची है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ नानक संस्था का कहना माने तो 2022 तक बाघ जंगल से वि

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युवा पीढ़ी संभल करके विवेकानंद हो जाए !

11 जनवरी 2018
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युगपुरुष, वेदांत दर्शन के पुरोधा, मातृभूमि के उपासक, विरले कर्मयोगी, दरिद्र नारायण मानव सेवक, तूफानी हिन्दू साधु, करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्त्रोत व प्रेरणापुंज स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता आधुनिक नाम कोलकता में पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी के घर हुआ था। दरअसल यह

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मकर संक्रांति : अनेकता में एकता का पर्व

13 जनवरी 2018
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हमारी भारतीय संस्कृति में त्योहारों, मेलों, उत्सवों व पर्वो का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां साल में दिन कम और त्योहार अधिक है। ऐसे में यह कहे तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यहां हर दिन होली और हर रात दिवाली होती है। दरअसल ये त्योहार और मेले ही है जो हमारे जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार करने के साथ ही परस

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'बागों में बहार है, कलियों पे निखार है'

21 जनवरी 2018
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बसंत मतलब कवियों और साहित्यकारों के लिए थोक में रचनाएं लिखने का सीजन। बसंत मतलब तितलियों का फूलों पर मंडराने, भौंरे के गुनगुनाने, कामदेव का प्रेमबाण चलाने, खेत में सरसों के चमकने और आम के साथ आम आदमी के बौरा जाने का दिन। बसंत मतलब कवियों व शायरों के लिए सरस्वती पूजन के नाम पर कवि सम्मेलन व मुशायरों

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आजादी के अमर नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

22 जनवरी 2018
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भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सेनानी, भारत रत्न सम्मानित, 'दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा' जैसे घोषवाक्यों से स्वाधीनता संग्राम में नवीन प्राण फूंकने वाले सर्वकालिक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म पिता जानकी नाथ बोस व माता प्रभा देवी के घर 23 जनवरी सन् 1897 को उड़ीसा के कटक म

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‘गणतंत्र’ होता ‘गनतंत्र’ में तब्दील !

25 जनवरी 2018
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हमारे देश को गणतंत्र की राहों पर चलने से पहले स्वतंत्र होना पड़ा। और यह स्वतंत्रता हमें इतनी भी आसानी से नहीं मिली जितनी की हम फेसबुक की प्रोफाइल पिक्चर को तीन रंगों में रंगकर अपनी राष्ट्रभक्ति साल में दो दिन छब्बीस जनवरी और पन्द्रह अगस्त पर सार्वजनिक कर देते हैं। आज़ादी के लिए न जाने कितने ही मां के

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सृष्टि के वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा

28 जनवरी 2018
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शिल्प, वास्तुकला, चित्रकला, काष्ठकला, मूर्तिकला और न जाने कितनी कलाओं के जनक भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का आर्किटेक्ट व देवशिल्पी कहा जाता है। हम उन्हें दुनिया के प्रथम आर्किटेक्ट और इंजीनियर भी कह सकते है। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार देवताओं के लिए भवनों, महलों, रथों व बहुमूल्य आभूषण इत्यादि का नि

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