आठ नवंबर, 2016 की वो रात कौन भूल सकता है ! जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अकस्मात ही पांच सौ और एक हजार रुपये के जारी नोटों पर रोक लगा दी थी। जिन पांच सौ और एक हजार रुपये को जेब में सुरक्षित पाकर आम आदमी अपने को धनवान समझता था, अब मोदी जी की बात सुनकर उसी आदमी के पैरों तले जमीन खिसक गई थी। लेकिन, जब थोड़ी देर बाद माननीय प्रधानमंत्री जी ने बंद हुई मुद्रा को निश्चित तिथि तक बदलने की बात कही तो लोगों की सांस में सांस आई। आठ नवंबर से इकतीस दिसंबर तक बैंकों में पांच सौ और एक हजार रुपये के बंद नोटों को परिवर्तित किया गया। इन सब के पीछे माननीय प्रधानमंत्री ने जो तर्क दिये थे - कालाधन जब्त होगा, भ्रष्टाचार मिटेगा, महंगाई पर रोक लगेगी, आतंकवाद व नक्सलवाद थमेगा इत्यादि। लोगों ने मोदी जी की बातें मानकर नवपरिवर्तन के लिए हामी भर दी थी। कुछेक पल के लिए विपक्ष को भी सांप सूंघ गया था।
जनता इस बदलाव के लिए दिन और रात भर बैंकों की कतार में अपना बदन तोडती रही। मजदूर, व्यापार ी और किसानों का नोटबंदी के कारण समूचा व्यवसाय ही ठप्प पड गया। न जाने कितनों की भूख के कारण और कितनों की कतार की भीड़ ने सांस छिन ली ! कितनों को शादी में आये बारातियों को खाना खिलाने के लिए सोचना पड़ा तो कितनों को बिना पैसों के सरकारी तो सरकारी ही सही इलाज से महरूम होकर जान गंवानी पड़ी। लेकिन, इन सब के बाद भी मोदी जी ने जब यह कहा कि भारत के लोगों को तो सालों से कतार में खड़े रहने की आदत है। वे खड़े रह लेंगे। यह बयान नोटबंदी का अर्थ समझाने के लिए काफी था। जनता किसी पार्टी को सरकार में खुद को कतार में खड़ा करवाने के लिए ही तो लाती है ! लेकिन, इसके बावजूद थोड़े कष्ट और बलिदान के बाद जिंदगी संवर जायेगी कहकर लोग शांत रहे।
आज नोटबंदी को लेकर एक साल पूरे होने को आया है। नोटबंदी के बाद विगत महीनों में कितना कालाधन जब्त हुआ यह आंकड़ा अभी भी अधिकारिक तौर पर स्पष्ट नही हुआ है। कितना भ्रष्टाचार मिटा है और कितना आतंकवाद व नक्सलवाद पर नकेल लगी है यह सब देश के आंतरिक और बाह्य समस्याओं को देखकर कहा जा सकता है। इन सब के बीच जिस गरीब को नोटबंदी के लिए अनेक चुपड़ी-चुपड़ी बातें कहकर जाल में फंसाया था। उस गरीब का कितना हित हुआ है ? कितनी महंगाई खत्म हुई है ? क्या दाल और चावल के भाव में कमी आई है ? क्या बिजली और पानी के बिलों में न्यूनता आंकी गई है ? क्या आपके बैंक खाते में मोदी जी ने पन्द्रह लाख ट्रांसफर किये है ? क्या नोटबंदी के कारण कोई उद्योगपति कंगाल होकर पागलखाने में भर्ती हुआ है ? अब कालाधन की बातें बाबा रामदेव क्यों नही कह रहे है ? अन्ना हजारे का लोकपाल बिल कहां अय्याशी कर रहा है ? इन सब के बारे में जनता को सोचना चाहिए।
हाल ही में देश में दो सौ रुपये का नया नोट आया और थोड़े दिनों में एक हजार रुपये का नोट आ जायेगा जिसकी तैयारी परवान पर है। आखिर फिर से बड़े नोटों को प्रचलन में लाने की क्या आवश्यकता है ? सोचनीय यह भी है कि आखिर सरकार के क्या मंसूबे है। हिन्दुस्तान आजादी के बाद कभी नसबंदी तो कभी नोटबंदी के आपातकालों से ही तो गुजरता आ रहा है। सरकारे सुधार करने के लिए चुनी जाती है लेकिन, अफसोस है कि सरकारे स्वार्थ का पर्याय बनती जाती है। दरअसल, नोटबंदी के आज के समय में मयाने नौटंकी से कम नहीं रह गये है। गरीब और गरीबीयत का मुजरा करवाकर मजा कोई तीसरा ही ले रहा है। जनता को खबरदार रहने की आवश्यकता है।