सुबह-सुबह नाथूलाल दौड़े-दौड़े घर आ धमके और बोले - भईया ! हमें तो नेता बनना है। मैंने कहा - भाई ! आज सूरज किस दिशा में उगा है ! सीधे-साधे नाथूलालजी को आज अचानक ये नेता बनने की बीमारी कहां से और क्यों लगी है ? नाथूलाल बोले - यह मत पूछो ! बस ! हमें नेता बनने का गुरुमंत्र सिखा दो। जिससे हम शीघ्रातिशीघ्र नेता बन जाये। मैंने कहा - नाथूलाल नेता बनना कोई दाये हाथ का खेल थोड़ी न है कि तुम्हारे सिर पर हाथ घुमाते ही तुम्हें नेता बना दे। नेता बनने के लिए रात-दिन एक करना पड़ता है। फिर आदमी के अंदर नेता बनने के लक्षण भी तो होने चाहिए।
मसलन, तुम्हारे पास पर्याप्त धन होना चाहिए। पर्याप्त का मतलब है जितने से तुम चुनाव जीतने के लिए हर किसी को बाटली पकड़ाकर बाटली में ले सको। फिर तुम्हारे पास एक न्यू मॉडल की महंगी एवं इम्पोटेंट लगजरी कार होनी चाहिए। ताकि जिससे तुम्हारा नेता बनने का वर्चस्व कायम हो सके। साथ ही तुम्हे पेंट-शर्ट को संयास देकर सफेद कुर्ता और नाडे वाला प्जामा धारण करना होगा। बनावटी एवं कृत्रिम तरीके से कैसे हंसा जाता है इसकी भी कोचिंग लेनी पडेगी। कोचिंग से याद आया कि तुम एक काम क्यों नही करते ! नाथूलाल - क्या ? तुम मुंबई क्यूं नहीं चले जाते। नाथूलाल - वहां क्या है ? अरे ! भाई सबकुछ उधर ही तो है। हमने आज के ही अखबार में एक विज्ञापन देखा है जिसमें मुंबई में अभी-अभी खुले नेता बनाने वाली संस्था का उल् लेख किया गया है। यह संस्था तुम्हें नौ माह के अंदर राजनीति के पैंतरें सिखाकर पक्का नेता बना देगी। तुम्हारे अंदर नेतृत्व क्षमता विकसित करेगी। सीटें सीमित है। पहले आओ और पहले पाओ का नियम जारी है। तुम चाहो तो एडमिशन ले सकते हो !
नाथूलाल - भाईसाहब ! मैंने तो पहली बार नेता बनने के कोर्स और संस्था का यह गुणगान आपके मुंह से सुना है। कई आप मजाक तो नही कर रहे है। मैंने कहा - भाई ! नेता वाली बात में मैं मजाक नहीं करता। गंभीरतापूर्वक कह रहा हूं। दुनिया में पैसे कमाने के लिए कुछ लोग नेता बनते है तो कुछ लोग नेता बनाते है। चुनाव और कुर्सी की मृगतृष्णा इतनी भयंकर है कि पानी न मिलने पर लोग खून भी पीते देर नहीं करते। अब बोलो - तुम्हारे अंदर खून पीने का जिगर है। तुम तो पानी भी ठीक से नही पी पाते तो खून पीने का तो सवाल ही तुम्हारे विषय में बेईमानी है। दरअसल, नेता बनने की ये तुम्हारी नादानी है।