यदि मैं भारत को एक बाबा प्रधान देश कहूं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी ! ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है कि हाल में घटित फर्जी बाबाओं के जो काले कारनामे देखने को मिले उससे निश्चित ही हमारी आस्था और विश्वास को गहरी चोट पहुंची हैं। क्या यह कम विडंबना का विषय नहीं है कि आज हमारे देश में जो सर्वे बेरोजगारों की गिनती करवाने के लिए होना चाहिए था, आज वह सर्वे फर्जी बाबाओं की गिनती को लेकर करवाने पर हमें मजबूर होना पड़ रहा हैं। जब कोई व्यक्ति सरकारी धन को लेकर गबन करता है तो उसे अपराधी घोषित कर दिया जाता है। तो क्या ये बाबा और मौलाना व तथाकथित धर्मगुरु जो करोड़ो की संपत्ति आस्था के नाम पर लुट रहे है इनको देशद्रोही घोषित नहीं किया जाना चाहिए ! सर्वाधिक पाठक संख्या वाले एक विश्सनीय अखबार भास्कर के सर्वे के मुताबिक विवादों के बाद 23 प्रतिशत लोगों की आस्था बाबाओं से कम हुई है। 95 प्रतिशत ने बाबाओं की संपत्ति की जांच की बात कही है और 30 प्रतिशत लोग बाबाओं के चत्मकार से आकर्षित हैं।
एक ओर माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में बुलेट ट्रेन चलवाने के लिए भरसक प्रत्यन्न कर रहे है। तो वहीं दूसरी ओर फर्जी बाबाओं की ये खबरें आसमान से गिराकर हमें खजूर में लटका देने जैसी है। क्या कारण है कि आज भी हमारे देश का पढ़ा-लिखा वै ज्ञान िक कार में नींबू-मिर्ची लगाता है ? क्या कारण है कि आज भी डॉक्टर बिल्ली के रास्ता काटने पर उल्टे पांव मुड़ जाता है ? कुकरमुत्ते की भांति यत्र-अत्र-सर्वत्र उग आये ये तथाकथित बाबा कभी लाल व हरी चटनियों में समस्याओं का निदान बताते है तो कभी गले में ताबीज व विभिन्न रंग के वस्त्र पहनने को प्रोब्लम का उपाय बताते है। इनके दरबार में लोगों की संख्या कम होने की बजाय दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। साथ ही सच्चे व नेक संत व साधक-साध्वी एवं धर्म श्रद्धालु फिजूल में बदनाम हो रहे है। कई बाबाओं के तार सियासी दलों से जुड़े हुई है जिनका भरपूर उपयोग राजनीति चमकाने के लिए नेता लोग करते हैं।
आज भारत के समक्ष विकसित राष्ट्र बनने की चुनौती है। ऐसे में हमें फर्जी बाबाओं के चंगुल से खुद को आजाद करवाना होंगा। अपने भाग्य को इन बाबाओं के हाथों न चमकाते हुए कर्म व पुरुषार्थ पर यकीन करना होंगा। मेहनत से बढ़कर किस्मत बदलने का कोई दूसरा औजार नहीं है। युवाओं को अपनी काबिलियत पर भरोसा करना चाहिए। मेहनत ही हाथों की लकीरें बदल सकती है। साथ ही मीड़िया को समझना होगा कि फर्जी बाबाओं को टेलीविजन स्क्रीन पर बैठाकर दर्शकों से अपनी समस्या को लेकर लाइव कॉल करके सवाल पूछने जैसे कार्यक्रम तुरंत बंद कर देने चाहिए। देश में सर्वव्यापी जागरूकता आंदोलन के लिए वैचारिक पृष्ठभूमि तैयार करनी की जरूरत है। अंतत: हमें अपने ज्ञान को केवल किताबों तक सीमित न रखते हुए उसको व्यवहार में भी लाना होगा।