वड़ापाव वाला
एक पाव को
बीचोबीच
छुरी से चीरता है
वड़े को दबाकर
धंसा देता है
फिर लाल-हरी-पीली
चटनी छिड़कता है
तली हुई हरी मिर्च और
प्यास के चंद
कटे टुकड़ों के साथ
हाथ में थमा देता है
दरअसल वड़ापाव वाला
पाव को ही नही चीरता है
वो चीरता है
जिंदगी के तमाम झंझावतों को
और वो जानता है
पाव के बीच फंसी-दबी
वडे-सी जिंदगी की भी कद्र
खालिस सच है
गरीब की जिंदगी वड़ापाव-सी है
सस्ती भी
टिकाऊ भी
मजबूत भी
और तो और पेट भराऊं भी...!