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किसी राजा या रानी के डमरू नहीं हैं हम

18 अक्टूबर 2017

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“किसी राजा या रानी के डमरू नहीं हैं हम, दरबारों की नर्तकी के घूँघरू नहीं हैं हम” वीररस के सुप्रसिद्ध कवि डॉ. हरिओम पंवार की उक्त पंक्तियां लोकतंत्र में राजशाही के रंग के प्रति तीक्ष्ण प्रहार है। इन पंक्तियों ने एक बार फिर अपनी प्रासंगिकता दर्ज की है। जिस तरह श्रृंगार के अत्यंत लोकप्रिय कवि और आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास को राजस्थान की यशस्वी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के आदेश पर डूंगरपुर के कवि सम्मेलन से हटाया गया जो कि नितांत ही निंदनीय कृत्य है। हालांकि, इस विषय को लेकर कवि कुमार विश्वास ने अपनी फेसबुक पर लाइव वीडियो के जरिये बताया कि वे राजस्थान के डूंगरपुर का कवि सम्मेलन आयोजक नगर निगम के निवेदन पर नियत मानदेय से आधे मानदेय पर कर रहे थे। लेकिन, जैसे ही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया का काफिला डूंगरपुर के समीप से गुजरा और उन्होंने होर्डिंग पर कुमार विश्वास के पोस्टर देखे तो तुरंत ही कुमार विश्वास के आने पर रोक लगा दी। मुख्यमंत्री के आदेश और राजनैतिक दबाव के बाद आयोजक को स्वयं शर्मिंदगीवश कुमार विश्वास को आने से मना करना पड़ा। इसे सत्ता का अहंकार कहा जाये या सत्ताधीशों की संकीर्ण सोच ? कवि पर अनुचित अंकुश लगाने वाली सत्ताएं यह भूल जाती है कि सत्ता की उम्र कविता की उम्र के आगे बेहद ही छोटी है। यह लोकतंत्र है और यहां कविताएं सत्ता के खिलाफ बगावत का भैरव नाद करती है, न कि किसी राजा और रानी की प्रशंसा में प्रयाग प्रशस्ति का सृजन करती हुई पायी जाती है।


लोकतंत्र में कवि स्वयं अपनी निष्पक्षता की अग्निपरीक्षा देते हुए कहता है - मैं वो कलम नहीं हूँ जो बिक जाती हो दरबारों में, मैं शब्दों की दीपशिखा हूँ अंधियारे चैबारों में, मैं वाणी का राजदूत हूँ सच पर मरने वाला हूँ, डाकू को डाकू कहने की हिम्मत करने वाला हूँ। और सत्ता के ठेकेदारों को यह कहते हुए खबरदार भी करती है - सत्ताधीशों की तुला के बट्टे भी नहीं हैं हम, कोठों की तवायफों के दुपट्टे भी नहीं हैं हम, अग्निवंश की परम्परा की हम मशाल हैं, हम श्रमिक के हाथ मे उठी हुई कुदाल हैं। कुछ लोग यह नहीं समझते है कि गुब्बारे की उडान और पक्षी की उडान में बडा अंतर होता है। क्योंकि बुलंदी का नशा संतों के जादू तोड़ देती है, हवा उड़ते हुए पंछी के बाजू तोड़ देती है ! सियासी भेड़ियों थोड़ी बहुत गैरत जरूरी है, तवायफ तक किसी मौके पे घुंघरू तोड़ देती है !


सत्ता की शराब में मदहोश राजनेता मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के उच्च पदों पर आसीन हो जाने के बाद भी खुद को पार्टी की चारदीवारी तक सीमित रखना पसंद करते है। ऐसे लोगों को इतिहास न माफ करेगा याद रहे, पीढियां तुम्हारी करनी पर पछतायेगी और बांध बांधने से पहले जल सूख गया, तो धरती की छाती पर दरार पड जायेगी।


इसे लोकतंत्र का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि जहां हमारे सुने हुए जनप्रतिनिधि जनता की भावनाओं को दरकिनार करके अहंकार का आलिंगन कर अपने को जनता का प्रतिनिधि न मानकर मालिक या भगवान मनाने का भम्र पाल लेते है। भोली जनता हर बार वायदों की मार से छली जाती है। हर बार कोई न कोई खाद्दीधारी गुंडा जीतकर लोकतंत्र का चीरहरण करता जाता है। और गरीब हर पांच साल बाद यह ही कहता हुआ मिलता है - हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था, मेरी कश्ती वहां डूबी, जहां पानी कम था।


बड़े लोगों की इसी घटिया सोच को लेकर कवि ने कहा - मैं कई बड़े लोगों की निचाई से वाकिफ हूँ, बहुत मुश्किल है दुनिया में बड़े होकर बड़ा होना ! बड़ों की निचाई का नमूना इससे ज्यादा ओर क्या होगा, जहां सदी के महानायक कहे जाने अमिताभ बच्चन अपने पिता हरिवंशराय बच्चन की कविताओं पर एकाधिकार जमातेे हुए उनकी कविताओं के वाचन पर कॉपीराइट का मुकदमा चला देते है। तो कभी कोई महारानी कवि के बाल में पार्टी की खाल तलाशती नजर आती है। बरहाल, कितने ही पहरी बैठा दो मेरी क्रुध निगाहों पर, दिल्ली से बात करूंगा भीड़ भरे चैहारों पर की अपनी कविता में हुंकार भरने वाले रचनाधर्मी हर समय और काल में अपने कलम की धार से घमंडी सत्ताधीशों को सच का दर्पण दिखलाते ही मिलेंगे।


जरूरत इस बात की है कि सरकारे हर फैसले से पहले थोडा मनन-मंथन और चिंतन करे। क्योंकि अब आप किसी पार्टी से भी ऊपर होकर जनमत से जीती हुई सरकार है। आपको केवल पार्टी का नहीं बल्कि हर एक जन का ख्याल रखना है।


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शिक्षक समाज की धुरी व देश निर्माता

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न्यू इंडिया बनाने में शिक्षा और शिक्षकों का योगदान

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आधुनिक शिक्षा पद्धति मूल्यहीन है। साथ ही रोजगारन्मुख न होने के कारण हर साल देश में पढ़े-लिखे होनहार बेरोजगार पैदा हो रहे है। साल दर साल इनकी तादाद में वृद्धि ही देखी जा रही है। अब न तो शिक्षा प्रणाली में वे जीवन पोषक तत्व है जिनकी बुनियाद पर एक सुदृढ़ व सक्षम राष्ट्र के नागरिकों का सुव्यवस्थित निर्माण

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प्रेस की आजादी को लेकर आज कई सवाल उठ रहे है। पत्रकार और पत्रकारिता के बारे में आज आमजन की राय क्या है ? क्या भारत में पत्रकारिता एक नया मोड़ ले रही है ? क्या सरकार प्रेस की आजादी पर पहरा लगाने का प्रयास कर रही है ? क्या बेखौफ होकर सच की आवाज को उठाना लोकतंत्र में “आ बैल मुझे मार” अर्थात् खुद की मौत क

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बूंद-बूंद दूध बह गया देखा जो लहू लाल का

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हिन्दी कर्क रोग से पीड़ित क्यों ?

13 सितम्बर 2017
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भाषा संवाद संप्रेषण का सशक्त माध्यम है। मनुष्य को इसलिए भी परमात्मा की श्रेष्ठ कृति या श्रेष्ठ सृजन कहा जाता है कि वह भाषा का उपयोग कर अपने भावों को अभिव्यक्त करने में सक्षम है। यहीं विशेषता है जो मनुष्य को अन्य प्राणियों से भिन्न करती है। आज संसार में 6809 से अधिक भा

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मच्छर भगाओ अभियान

18 सितम्बर 2017
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भाईसाहब ! आजकल मच्छरों ने तंग कर रखा है। शाम ढलते जैसे ही ट्यूबलाइट जलायी और मच्छरों का पूरा कुनबा टूट पडता है। मच्छर और मौसम दोनों का गणित समझ से परे है। आधा सितंबर बीत गया है। लेकिन, मौसम का रूख समझ नहीं पाया। दिन में गर्मी पड़ रही है और सुबह ठंड। जुकाम ने नाक में दम करके रखा है। नथुनों से गंगा और

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जिस्म के सौदागर

18 सितम्बर 2017
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तुम देखते हो एक औरत में आंखों की लंबाई होठों की चिकनाईस्तनों का आकार नितंबों की मोटाई तुम निहायतीजिस्म के सौदागर हो !तुम चूक कर देते हो !एक औरत के दिल में देखने मेंप्रेम और ममता की अथाह गहराई आंखों में लाज का काजलहोठों पर रहनुमाईदूध से

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सृष्टि के वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा

18 सितम्बर 2017
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शिल्प, वास्तुकला, चित्रकला, काष्ठकला, मूर्तिकला और न जाने कितनी कलाओं के जनक भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का आर्किटेक्ट व देवशिल्पी कहा जाता है। हम उन्हें दुनिया के प्रथम आर्किटेक्ट और इंजीनियर भी कह सकते है। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार देवताओं के लिए भवनों, महलों, रथो

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तुलसीदास ओ तुलसीदास

18 सितम्बर 2017
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तुलसीदास ओ तुलसीदास तुम भी प्रेम पाश में सारी हदें लांघ गये थेरजनी के तम में जली जो विरह अगन उर मेंतुम लाश को नाव और सर्प को रस्सी समझ बैठे थेतुलसीदास ओ तुलसीदासतुम भी प्रिये की आस मेंभटके थे वन वन किसी की तलाश मेंसच सच बतलाना रत्नावली के दमक से तुम भी कुछ देर जले थे तुलसीदास ओ तुलसीदासपाकर अपनी मूर

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मेहनत से बढ़कर किस्मत बदलने का कोई दूसरा औजार नहीं

22 सितम्बर 2017
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यदि मैं भारत को एक बाबा प्रधान देश कहूं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी ! ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है कि हाल में घटित फर्जी बाबाओं के जो काले कारनामे देखने को मिले उससे निश्चित ही हमारी आस्था और विश्वास को गहरी चोट पहुंची हैं। क्या यह कम विडंबना का विषय नहीं है कि आज हमारे देश में जो सर्वे बेरोजगारों की गिनत

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इच्छाधारी हनीप्रीत की तलाश

27 सितम्बर 2017
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टी. वी. में अखबारों में नेताओं के नारों में गाँव-गली-गलियारों में सब जगह डेरा सच्चा सौदा प्रमुख फर्जी बाबा राम रहीम गुरमीत सिंह की शिष्या उर्फ दत्तक बेटी हनीप्रीत का ही जिक्र है। मोहल्ले के पांच वर्ष के बच्चे से लेकर अस्सी वर्षीय बुजुर्ग रामू काका जिनके दांत नहीं, पेट में आंत नहीं फिर भी मुंह पर सवा

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सपने में रावण से वार्तालाप

29 सितम्बर 2017
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मैें स्वप्नदर्शी हूं। इसलिए मैं रोज सपने देखता हूं। मेरे सपने में रोज-ब-रोज कोई न कोई सुंदर नवयुवती दस्तक देती है। मेरी रात अच्छे से कट जाती है। वैसे भी आज का नवयुवक बेरोजगारी में सपनों पर ही तो जिंदा है। कभी कभी डर लगता है कि कई सरकार सपने देखने पर भी टैक्स न लगा दे। खैर ! बात सपनों की चल ही पड़ी है

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गांधी जी का चौथा बंदर

1 अक्टूबर 2017
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माने तो जाते है गांधी जी के तीन बंदर लेकिन आजकल चौथे बंदर का फोग चल रहा है। या यूं कहे तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इस चौथे बंदर के आगे तीनों बंदरों का वर्चस्व डाउन हो गया है। यह चौथा बंदर कमाल और धमाल है। इसकी आदतें और हरकतें बाकि के तीन बंदरों से बिलकुल ही भिन्न है। यह तो बुरा कई हो रहा हो तो आं

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टॉयलेट से ताजमहल तक

5 अक्टूबर 2017
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हमारी सरकार टॉयलेट बनाने पर आमादा है। यूं कहे कि सरकार ने टॉयलेट बनाने का ठेका ले रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां जाते है, वहां शुरू हो जाते है - भाईयों और बहनों और मित्रों ! टॉयलेट बनाया कि नहीं ? ”शौच है वहां सोच है“ सरकार का जब ध्येय होगा तो एक दिन पूरा देश शौचालय में तब्दील होते देर नहीं

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वड़ापाव वाला

7 अक्टूबर 2017
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वड़ापाव वालाएक पाव को बीचोबीचछुरी से चीरता हैवड़े को दबाकर धंसा देता हैफिर लाल-हरी-पीलीचटनी छिड़कता हैतली हुई हरी मिर्च और प्यास के चंद कटे टुकड़ों के साथहाथ में थमा देता हैदरअसल वड़ापाव वाला पाव को ही नही चीरता हैवो चीरता है जिंदगी के तमा

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भक्त, अंधभक्त और पागलपंत

8 अक्टूबर 2017
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कल शर्मा जी गली के नुक्कड़ पर मिले। हमसे कहने लगे हमारी तो आस्था भगवान-वगवान में बिलकुल भी नहीं है। मैं तो बिलकुल ही घोर नास्तिक हूं। मैंने कहा - चलो, भाई ! जिसकी जैसी सोच। फिर अगले दिन शर्मा जी को मंदिर में अपनी धर्मपत्नी के साथ हवन कराते हुए देखकर मेरी आंखें फटी की फटी रह गयी। मैं शर्मा जी केे पास

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मिट्टी के दीये

8 अक्टूबर 2017
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हर अंगना हर द्वार - द्वार हर हिये !ज्योर्तिमय हो जग में मिट्टी के दीये !अमावस्या के श्यामपट्ट पर फैलायें !ज्योतिकलश बन जो सारा तम पियें !आशाओं के अगनित स्वरों को लियें !हर दिशा में प्रकाशमान मिट्टी के दीये !वायु के विप्लव वेग से न भयभीत हो !प्रखर प्रज्वलित ज्योति बन जो जलें !निर्भीक निडर नि:छल कितने

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विकास का मतलब मूर्ति खड़ी करना

12 अक्टूबर 2017
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भारत एक विकासशील देश है। और भारत एक विकासशील देश ही रहेगा ! क्योंकि भारत में नेताओं की अक्ल भैंस चराने गयी है। अब देखते है अक्ल की घर वापसी कब होती है ? बरहाल, मूर्ति सरीकी सरकार को मूर्तियों से इत्ता मोह है कि मूर्तियों के निर्माण के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है। वैसे भी भारत में लोग ही पागल नही

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कब बूझेंगी भूखे पेट की आग ?

18 अक्टूबर 2017
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रोज कहर के बादल फटते है टूटी झोपड़ियों पर, संसद कोई बहस नहीे करती भूखी अंतड़ियों पर‘ कवि की ये पंक्तियां वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सही साकार होती है। जिस देश में हर वर्ष दस लाख बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती है। जहां फसल खराब होने के कारण कृषक आत्महत्या करने पर विवश है। व्यापारी वर्ग कर्ज की मार झेल

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लोकतंत्र को चूहों से खतरा

18 अक्टूबर 2017
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बेशक, हमें आजादी तो मिली। लेकिन हमें चूहा प्रथा आजादी की मुंह दिखाई में मिली। लोकतंत्र जैसे-जैसे विकास करता गया चूहों का खानदान भी बढ़ता गया। यूं कहिए कि चूहों की हालत मस्त और बेचारी जनता पस्त होती गई। ऐसे भी समझ लीजिए कि लोकतंत्र का हारामखोर इन चूहों ने पूरा का पूरा बलात्कार कर डाला है। कभी भी बाबा,

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अपुन के पास टाइम नहीं है

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मैंने बस स्टैंड पर खड़े एक भाईसाहब से पूछा - क्या टाइम हुआ है ? मोबाईल पर व्यस्त और मुंह में दबाये हुए पान मसाला मस्त बोले - भीडू ! अपुन के पास फोकट का टाइम नहीं है। जबाव के बाद मैं समझ गया भाईसाहब बड़े व्यस्त किस्म के प्राणी है। खैर ! बस आई और मैं बस में बैठकर पहुंच गया एक अजनबी शहर की हवा खाने। मैं

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किसी राजा या रानी के डमरू नहीं हैं हम

18 अक्टूबर 2017
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दिवाली के मतलब हजार

18 अक्टूबर 2017
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भाईसाहब ! दिवाली सिर पर है। हर जगह हर्ष और उल्लास का माहौल है। लेकिन, देश की राजधानी दिल्ली की गलियां सुनसान है। दिल्ली वालों के दिलों पर निराशा के बादल छाये हुए है। क्योंकि कोर्ट ने पटाखे फोड़ने पर सख्त पाबंदी लगा दी है। कोर्ट का मानना है कि पटाखों से प्रदूषण फैलता है। जो कि सही मानना है। लेकिन, इसक

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मिट्टी के दीये !

18 अक्टूबर 2017
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हर अंगना हर देहरी हर हिये !ज्योर्तिमय हो जग में मिट्टी के दीये !अमावस्या के श्यामपट्ट पर फैलायें प्रकाश !ज्योतिकलश बन जो सारा तम पियें !आशाओं के अगनित स्वरों को लियें !हर दिशा में प्रकाशमान हो मिट्टी के दीये !वायु के विप्लव वेग से न भयभीत हो !प्रखर प्रज्वलित ज्योति बन जो जलें !निर्भीक निडर निःछलकितन

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आस्था की दुकान

29 अक्टूबर 2017
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भारत के गली-गली में आस्था की दुकान चल रही है। आस्था के नाम पर कोई न कोई किसी न किसी को ठग रहा है। आजकल टेलीविजन पर राधे मां के ढिंचैक डांस की चर्चा परवान पर है। गांव में चौपाल पर बैठे बुजुर्ग जिनके पांव कब्र में लेटे है, वे भी राधे मां के ढिंचैक डांस पर जमकर बहस कर रहे है। क्या नाचती है राधे मां ! उ

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पर्यावरण संरक्षण सबकी जिम्मेदारी

29 अक्टूबर 2017
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मानव जीवन के निर्माण में पंचतत्व जल, वायु, आकाश, पृथ्वी और अग्नि की महत्वपूर्ण भूमिका है। जब तक इन पांच तत्व का समन्वय, संतुलन और संगठन निर्धारित परिमाण में संयोजित रहता है तो हम कहते पर्यावरण सही है और जब इनके मध्य का तालमेल बिगड़ने लगता है तो हम कहते पर्यावरण दूषित हो रहा है। प्रकृति और मानव आदिकाल

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डेंगू का डंक

22 नवम्बर 2017
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भगवान भले ही मरीज बनाएं पर डेंगू का मरीज किसे को ना बनाएं ! डेंगू के इलाज में जिंदगी की सारी जमापूंजी निकल जाती है। यहां तक की देह से जान भी निकल जाती है। लेकिन, डेंगू है कि ससुरा निकलना का नाम ही नहीं लेता। डेंगू है कि भ्रष्टाचार जो हठधर्मी को होकर सिर पर मौत का ताडंव करता है। ऐसे में तथाकथित भगवान

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जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़

26 नवम्बर 2017
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विडंबना है कि आजादी के सात दशक बाद भी हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं हो सका है। सरकारी अस्पतालों का तो भगवान ही मालिक है ! ऐसे हालातों में निजी अस्पतालों का खुलाव तो कुकरमुत्ते की भांति सर्वत्र देखने को मिल रहा हैं। इन अस्पतालों का उद्देश्य लोगों की सेवा कर

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सर्दी का सितम

30 नवम्बर 2017
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सर्दी का प्रकोप दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। दिन भी ठंडा है और रात भी ठंडी है। इस ठिठुरन से लोकतंत्र ठिठुर रहा है। नेता ठिठुर रहे है, जनता ठिठुर रही है, जानवर ठिठुर रहे है। ठिठुरन के मारे रजाई से बाहर निकलने का मन ही नहीं कर रहा है। सुबह उठते ही सीधी दोपहर हो रही है। द

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ढोंगी बाबाओं का फैलता मकड़जाल

24 दिसम्बर 2017
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आस्था के नाम पर पाखंड, ढोंग और आडंबर का खेल भारत में जारी हैं। एक ऐसा ही ढोंग का खेल रचने वाला तथाकथित बाबा फिर सुर्खियों में हैं। दिल्ली के रोहिणी में आध्यात्मिक विश्वविद्याालय चलाने वाले तथाकथित बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित पर उसी की शिष्या ने दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है। कहा तो यहां तक जा रहा है

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बाघ संरक्षण की चुनौतियां और समाधान

4 जनवरी 2018
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देश में बाघों की लगातार कम होती संख्या सरकार और पशुप्रेमियों के लिए चिंता का विषय है। कभी लोगों के बीच अपनी दहाड़ से दहशत पैदा कर देने वाले बाघ आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। आज केवल बाघों की आठ में से पांच प्रजाति ही बची है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ नानक संस्था का कहना माने तो 2022 तक बाघ जंगल से वि

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युवा पीढ़ी संभल करके विवेकानंद हो जाए !

11 जनवरी 2018
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युगपुरुष, वेदांत दर्शन के पुरोधा, मातृभूमि के उपासक, विरले कर्मयोगी, दरिद्र नारायण मानव सेवक, तूफानी हिन्दू साधु, करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्त्रोत व प्रेरणापुंज स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता आधुनिक नाम कोलकता में पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी के घर हुआ था। दरअसल यह

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मकर संक्रांति : अनेकता में एकता का पर्व

13 जनवरी 2018
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हमारी भारतीय संस्कृति में त्योहारों, मेलों, उत्सवों व पर्वो का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां साल में दिन कम और त्योहार अधिक है। ऐसे में यह कहे तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यहां हर दिन होली और हर रात दिवाली होती है। दरअसल ये त्योहार और मेले ही है जो हमारे जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार करने के साथ ही परस

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'बागों में बहार है, कलियों पे निखार है'

21 जनवरी 2018
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बसंत मतलब कवियों और साहित्यकारों के लिए थोक में रचनाएं लिखने का सीजन। बसंत मतलब तितलियों का फूलों पर मंडराने, भौंरे के गुनगुनाने, कामदेव का प्रेमबाण चलाने, खेत में सरसों के चमकने और आम के साथ आम आदमी के बौरा जाने का दिन। बसंत मतलब कवियों व शायरों के लिए सरस्वती पूजन के नाम पर कवि सम्मेलन व मुशायरों

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आजादी के अमर नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

22 जनवरी 2018
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भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सेनानी, भारत रत्न सम्मानित, 'दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा' जैसे घोषवाक्यों से स्वाधीनता संग्राम में नवीन प्राण फूंकने वाले सर्वकालिक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म पिता जानकी नाथ बोस व माता प्रभा देवी के घर 23 जनवरी सन् 1897 को उड़ीसा के कटक म

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‘गणतंत्र’ होता ‘गनतंत्र’ में तब्दील !

25 जनवरी 2018
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हमारे देश को गणतंत्र की राहों पर चलने से पहले स्वतंत्र होना पड़ा। और यह स्वतंत्रता हमें इतनी भी आसानी से नहीं मिली जितनी की हम फेसबुक की प्रोफाइल पिक्चर को तीन रंगों में रंगकर अपनी राष्ट्रभक्ति साल में दो दिन छब्बीस जनवरी और पन्द्रह अगस्त पर सार्वजनिक कर देते हैं। आज़ादी के लिए न जाने कितने ही मां के

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सृष्टि के वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा

28 जनवरी 2018
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शिल्प, वास्तुकला, चित्रकला, काष्ठकला, मूर्तिकला और न जाने कितनी कलाओं के जनक भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का आर्किटेक्ट व देवशिल्पी कहा जाता है। हम उन्हें दुनिया के प्रथम आर्किटेक्ट और इंजीनियर भी कह सकते है। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार देवताओं के लिए भवनों, महलों, रथों व बहुमूल्य आभूषण इत्यादि का नि

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