3 नवम्बर 2015
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एक साधारण मनुष्य. विज्ञापन क्षेत्र में लेखन और अनुवाद के छोटे-मोटे हुनर से जीविकोपार्जन. गीत-संगीत सुनने और रचने की रुचि. पेशेवर बनने की तड़प क़ायम. D
किन्तु भाष मिल जाएँ तो रख दो विश्व हिलाकर पहल मेरी पहचान हमारी खुद से फिर हूँ कहता................100% सही बात कही है ।...bus यही हमारी चूक है जो भारतीय और राजनेता नहीं समझ रहे है ।.....jub तक भाषा एक नहीं होगी सुर कैसे मिलेंगे ।..........sab अपना अपना राग अलाप रहे है ।....yahi भारतीय ।.....germany जाते है तो जर्मन सीख लेते है ।...lakin यहाँ तेलुगु नहीं समझ पाते ।.......to उनकी बात कैसे समझेंगे ।…।.....isliye बेसुरा राग अलाप रहे है ।…।
4 नवम्बर 2015