वक़्त लगता है जितना किसी घर में घर बनाने में
उतना कहाँ लगता है घर से निकाले जाने में!
किसी के रोने पर आपकी मुस्कान नागवार गुज़री
बाक़ी मुझे तो कोई एतराज़ नही यूँ मुस्कुराने में!
एक वक़्त था जिसमें जान लिया गहराई से तुमको
मगर तुमने तो ज़ाया कर दिया मुझे आज़माने में!
आ ही गया हूँ आखिरकार इस शहर से बाहर
संलिप्त तो थे चौराहे भी मुझे रस्ता भटकाने में!
व्यथा में मुसलसल सदी भी तो गुजारी है मैंने
ये तो दशक ही है क्या वक़्त लेगा गुज़र जाने में!
गली में,किसी की सिसकियाँ सुन गया है अभिषेक
आप बैठिये उसे तो वक़्त लगेगा अभी आने में
~अभिषेक नायक