इस मकान में अब बाक़ी बचा भी क्या है।
साझी तमन्नाएँ जल गई धुँआ ही धुँआ है!
मेरे बालों ने तेरे काँपते हाथ महसूस किये
लगता है आज फिर तुमने तस्वीर को छुआ है!
दीया तो यूँ ही बदनाम हो गया बुझ कर
ये अँधेरा तो तेरे चले जाने से हुआ है!
~अभिषेक नायक
19 अप्रैल 2022
इस मकान में अब बाक़ी बचा भी क्या है।
साझी तमन्नाएँ जल गई धुँआ ही धुँआ है!
मेरे बालों ने तेरे काँपते हाथ महसूस किये
लगता है आज फिर तुमने तस्वीर को छुआ है!
दीया तो यूँ ही बदनाम हो गया बुझ कर
ये अँधेरा तो तेरे चले जाने से हुआ है!
~अभिषेक नायक