रिश्ते पक्के हुआ करते थे कच्चे आशियानों में!
अब ये टूट जाते हैं संगमरमर लगे मकानों में!
दौलत तो यहाँ से वहाँ एक रोज उड़ जाएगी
उड़ती है रेत जैसे भयंकर तूफानों में!
ये चमकते बदन राख के ढेर से ज्यादा तो नही
ऐसे कई बदनों की राख देखी है श्मशानों में!
~ अभिषेक नायक