स्वदेशी पत्रिका
Page Liked · 3 hrs ·
·
प्रथम मै कहना चाहुंगा के विज्ञान को छोड कर फिल्म, क्रिकेट, फालतु टी.व्ही कार्यक्रम, रीयालीटी शो और टाईमपास मे ज्यादा व्यस्त रहने वाले हमारे भारतिय नागरीकों मे तर्क शक्ति का बिलकुल अभाव है । 40 साल पहले भारत ने SLV नामक स्वदेशी रॉकॅट बनाने के लिये 20 करोड का बजॅट पास किया तब कई लोगों ने शिकायत की और भारत सरकार को उपालंभ दीया के भारत जैसे गरीब देश को इतनी फिजूल खर्ची नही करनी चाहीये । ISRO के युवान इंजीनियरों ने बनाये बहोत से रॉकेट विफल रहे और अंतरीक्ष तक उड न सके इस पर कुछ लोग और गुस्सा हुए और इस फिजूल खर्ची पर सरकार को आडे हाथों लिया । Failure is a pillar of success यह मूलमंत्र वे भुल गये या तो उनको इसके बारे मे पता ही नही था । अब देखने की बात यह है के satellite launching के प्राथमीक चरण मे अमेरीका और रूस जैसे देशों की कितनी फजेती हुई है (और आज भी हो रही है) इसके मुकाबले भारत के विज्ञानीयों का Report Card और Marks Sheet को देखोगे तो आपको First Class देखने मिलेगा । और है भी । (कोई भी देश अमेरीका, चीन या रूस से अपना सॅटेलाईट लोन्च करवाने से पहले उसका Insurance करवाना नही भुलता पर आज भी भारत बीना Insurance करवाये सारे सॅटेलाईट्स यशस्वी रूप से लॉन्च करता है और यह विश्व विक्रम भी है। ) भारत के मुकाबले अमेरीका चीन और सोवीयत संघ के कुछ हास्यास्पद ब्लंडर के बारे मे मै जानकारी देना चाहता हु ।
• अमेरीका की रॉकेटशास्त्री टीम ने 1956 मे ‘स्नार्क’ नामक रॉकेट पूर्व दिशा मे एटलांटीक महासागर की ओर छोडा लेकीन उसने मार्ग पकडा दक्षिण मे ब्राझील का! रॉकेट मिस् फायर हुआ तब उसे भर आकाश मे नष्ट कर देने के लिये एक रिमोट कन्ट्रोल बॉम्ब उसमे रखा जाता है । अमेरीका ने बॉम्ब के रिमोट का बटन अपने स्टॅशन मे दबाया पर पता चला के वह काम नही कर रहा था! प्रमुख आईझनहोवर को वाकीफ किया गया और उन्होने तुरंत ब्राझिल सरकार का सम्पर्क किया और हादसे के बारे मे जानकारी दी और साथ मे होने वाले नुकसान को भरपाई कर देने का वादा भी किया । सद् - भाग्य से रॉकेट एमेझोन के जंगल मे पडा और मानव संहार की बडी दुर्घटना टल गई ।
• 1959 मे अमेरीका के ही “जुनो - २” नामक रॉकेट को जब दागा गया तब आकाश मे चढने के बजाय वह रॉकेट वहां खडे प्रेक्षकों की ओर धस गया !! लॉन्चींग को देखने खडे दर्शक भागे पर फीर भी कुछ लोगों को छोटी मोटी या गंभीर चोटें आयी और अमरीकी सरकार को उस का हरजाना देना पडा !
• उसी वर्ष दुसरा अमेरीकी रॉकेट उसके लॉन्चींग पॅड पर ही बडे धमाके के साथ फटा और वहां खडे कई दर्शकों को गंभीर रूप से जलाकर घायल कर दीया !!
• थोडे दीनों बाद कॅप कॅनेडी लॉन्चींग मथक से दागा गया पॉलारीस नामक 30 फीट लंबा और 12.8 टन वजनी मिसाईल समुद्र की ओर जाने की बजाय बिलकुल दक्षिन के फ्लॉरीडा राज्य की बनाना नामक नदी मे जा गीरा !! इस वक्त भी बडी दुर्घटना होने से टल गयी ।
• इस तरह के हास्यास्पद काम हमारे ISRO के ईन्जीनियरों ने कभी किये है भला ? अमेरीका, चिन और रूस जैसे विकसीत देश अब तो लॉन्चींग तकनीक मे विस्तृत अनुभव प्राप्त कर चुके है पर इतने वर्षों के दौरान लॉन्चींग के साथ साथ लोचे मारने मे भी बडी प्रगती की है । अगस्त 1985 के बाद के मात्र 20 महीनों मे अमेरीका को जबरदस्त निष्फलता का सामना करना पडा । “टायटन” नामक 2 रॉकेट उनको लॉन्च करते ही छिन्नभिन्न हो गय और उसके साथ अत्यंत मुल्यवान अमेरीकी जासूसी उपग्रह भी नष्ट हो गये । इस के बाद 1986 मे नासा ने जनता के टॅक्स के 2 अरब डॉलर का “चॅलेन्जर” रॉकेट (अपने बहुमुल्य उपग्रह के साथ) खो दीया । वातावरण और हवामान का अभ्यास करने के लिये छोडे गये 580 लाख डॉलर के बेशकीमती उपग्रह के साथ “डॅल्टा” रॉकेट हवा मे ही फट गया । 1260 लाख डॉलर कीमत के संदेशाव्यवहार के उपग्रह को ले जाने वाला “ऍटलास” रॉकेट भी हवा मे मशाल की तरह जल कर नष्ट हो गया । इतनी सारी दुर्घटनाओं के बाद अमेरीकन सरकार ने अपना सॅटेलाईट लॉन्चींग का पुरा कार्यक्रम ही बंद कर दीया और नासा मे प्रशासनीक सुधार लाने के कार्यक्रम को शुरू करना पडा !!!
• डिसेम्बर, 23, 1992 के रोज चीन का “लॉन्ग मार्च – 2” रॉकेट 13.8 करोड डॉलर के ओस्ट्रेलियन सॅटेलाईट को अपनी योग्य भ्रमणकक्षा तक नही पहुचा पाया उपग्रह सिर्फ 200 किलोमीटर उपर गया और देखते ही देखते अग्निदाह मे नष्ट हो गया ! (यह याद रखना के एक साथ 11 अलग अलग देशों के अलग अलग सॅटेलाईट्स को एक ही रॉकेट से लॉन्च करके 11 अलग अलग भ्रमणकक्षाओं मे पहुचानेका भगीरथ रॅकोर्ड भारत के ISRO के नाम दर्ज है। )
• 12 अगस्त 1998, : लिफ्टओफ के बाद नासा का “टायटन” नामका रॉकेट 40 वीं सॅकंड मे धमाके के साथ एक फटाके की तरह फुट गया । परीणामः सारे बहुमूल्य उपग्रहों का कबाडा और जनता के 68.4 करोड डॉलर का दीवाला !!!
• 1998 में ही अमेरीकी सैन्य के 88 करोड डॉलर मूल्य के जासूसी उपग्रह को अगनगोले मे लपेटने वाला रॉकेट उसे अंतरीक्ष तक पहुंचा नही पाया और तुरंत बाद बॉईंग कंपनी को एसी ही एक हास्यास्पद दुर्घटना की वजह से अपने 44.6 करोड डॉलर के उपग्रह को हमेशा के लिये खोना पडा ।
• 9 एप्रिल 1999 – के रोज “टायटन” रॉकेट ने अमेरीका के 160 करोड डॉलर के एक और सैन्य सॅटेलाईट को गलत भ्रमणकक्षा में धकेल दीया जिसकी वजह से वह हमेशा के लिये नाकाम हो गया ।
ISRO के भारतीय ईजीनीयरों ने अपने छोटे से कार्यकाल मे कई देशों के सॅटेलाईट्स यशस्वी रूप से लॉन्च कर के दीखाये है और कई नये विक्रम स्थापीत किये है और 20 करॉड रूपये के Investment के सामने कीतना मुनाफा कमा कर तीजोरी मे जमा कीया है यह आकडे आप ऑनलाईन भी देख सकते हो । आज परीस्थीती यह है की कोई भी देश भारत को सॅटेलाईट लॉन्चींग के लिये अपनी First Choice देता है और बीना Insurance या Blunder कीये भारत उसे पार्सल कर देता है ।
संकलन -- राहुल नानजी सावला