वक्त ने सब कुछ उल्टा कर दिया । इस बार की छठ, टपऔर छत पर।सब कुछ सूना है, नहर,नदी,तालाब।
पानी को पानी रहने दोनदी अकेले बहकर अनेको घाट बनाती थी। हर घाट निराला होता था।पनघट मे पानी भरी बाल्टी रस्सी से खीच कर औरत सुस्ताती थी।भर मटका कलस फुरसत मे सखी सहेलियों से बतियाती थी, बेटी बहू।चरवाहा बैठ पेड़ की छांव मे मन से गीत गुंगुनाता, गीले होठो से। जानवर तालाबो मे डुबकी लगाते तैरते इतराते ले प
तलब बरकरार रहनी चाहिए हासिल तक, थोड़ा सा अनुशासन गर पहुंचना है साहिल तक. बेहतरीन रवैया भी अपनाएं मरते दम तक, मंजिल न मिले तो भी डगर यही है काबिल तक. जैसे जब तलक प्यार सीमित है खुद तक, नहीं मिलता कभी किसी को वो भी जाहिर तक. बर्तन भी बनने से पहले जाता है आग तक, यूं ही न
मालवा के गाँवों से लौटकर मनीष वैद्यइंदौर, आपने शायद ही कभी सुना होगा कि बारिश के पानी को तिजोरी में रखा जाता हो, लेकिन मालवा के किसान अपने खेतों पर अब इसे चरितार्थ कर रहे हैं। उन्होंने इसके लिए बकायदा जमीन पर लाखों की पोलीथिन बिछाकर बार