तने दरख्तों के शाखों से ही झुकने लगे
पानी नहीं बचा कुँए सूखने लगे।
मौलवी के सताए हुए इंसान यहाँ
है ग़ौर कि अल्लाह पे ही थूकने लगे।
ये मुमक़िन न था कि आम आएंगे कभी
बोए गए थे कांटें सो उगने लगे।
वो गा रहा था बदहालियाँ किसानों की
अचानक ही मंत्रियों सर दुखने लगे।
बढ़ते हुए काफ़िलें मजहबों वाले
कभी मंदिर कभी मस्ज़िद पे ही रुकने लगे।
भेजा था पढ़के बनने को अफ़सर मगर
आकर शहर बच्चे गांजा फूकने लगे।
-:दीपेंद्र