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तेरे हिस्से का हिस्सा

16 सितम्बर 2022

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तुम तो-
मेरी,
कहानियों की,
कला!
कविताओं का,
सौन्दर्य!!
गीतों का,
लय!!! रही।
मेरी-
हर रचना की,
अभिन्न-
हिस्सा रही,
लेकिन-
मेरे जीवन के,
हिस्से में!!!!
होकर भी,
तेरे-
हिस्से का,
हिस्सा!!!!
मैं नहीं रहा।
© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर।article-image
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रचनाएँ
मन की गठरी
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मन की गठरी- ---------------- 'मन की गठरी'मेरी काव्य संग्रह की तीसरी कड़ी है।इस संग्रह में मन के कोने में पड़े विचारों को शब्दबद्ध कर उन्हें तर्कपूर्ण तथा संवेदनशील करके परोसने का प्रयास किया गया है।मन में विचार पैदा होते रहते हैं उनविचारों को लोगों के मन के अनुकूल बनाने का प्रयास मात्र है 'मन की गठरी'। यह संग्रह सही मायने में विचारों की गठरी ही है जिसे हर मानव अपने मन में रखे या उठाये फिरता रहता है। इसकेपहलेयोरकोट्सपर'शब्दकलश'तथाशब्दइन'काव्यवाटिका'और 'मन की कोठरी से'आन लाईन प्रकाशित हैं।मेरी कविताएं 'ब्लूपैड तथा प्रतिलिपि पर भी प्रकाशित हो रही हैं। लिखना मेरी आदत है।मेरी रचनाएं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। आकाशवाणी गोरखपुर से भी मेरी रचनाओं का प्रसारण अनेक बार हो चुका है। आशा है आपको मेरी रचनाएं रुचिकर लगें।आलोचनाएं एवं विचार रचना को परिष्कृत करते हैं।
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रिश्ते भी

15 सितम्बर 2022
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कभी-गौर किये हैं?ये- रिश्ते भी,बड़े-अजीब होते हैं।कभी-परवान चढ़ते हैं,बेनाम! होकर भी।तो, कभी-नाम के होकर,गले की-फाँस होते हैं।©ओंकार नाथ त्रिपाठी, अशोकनगर, बशारतपुर, गोरखपुर, उप्र।

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क्यों न?

15 सितम्बर 2022
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क्योंं न-सब कुछ,जानकर भी,यह-जाना जाय,कि-मैं कुछ भी,नहीं जानता,और-इस जमाने में,एक सुखी,तथा-सबका प्रिय,बना जाय।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

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पथिक

15 सितम्बर 2022
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अपनी-उदासियों को,आवाज दे-हे पथिक!सारी राह,कट न जाये,यूँ, खामोश!!सफर में।जो-सोच रखा है,कहने को-मंजिल आने पर।कहीं-ऐसा न हो कि-देख नजारा,तेरी, घिग्घी बँध जाये।-©ओंकार नाथ त्रिपाठी,बशारतपुर, गोरखपुर, उप्र

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किताब

15 सितम्बर 2022
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कटती हुई,जिंदगी!धीरे धीरे,किताब बन गयी।कहीं-कोई याद,तड़पायी;कोई सहारा बन गयी।जीवन में, खजाने!!जो हमने, कमाये!!!होकर पुराने,हो गये बेगाने।अब-क्या हँसना?रोना क्या?हमें तो-लमहों से दोस्ती भी,रास

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जज्बे

15 सितम्बर 2022
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बेशक!हमारे रिश्ते,कभी-बहुत ही गहरे थे।न जाने क्यों?अब-बिछड़ गये,हमसे।तिरोहित-हो गये, सबके सब-कसमें वादे!सपने भी,जो लगते थे,कभी-हमारे, अपने।क्या-समय था,जब, हम-साथ होते थे।अब, तो-हमारी!मुलाकात नहीं

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गुर्राहट

15 सितम्बर 2022
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तेरी-गुर्राहट!यह बता रही हैं,कि-मेरे द्वारा,प्रदत्त कराये गये,तेरे-आजीविका के साधनों कीउपलब्धता का,अहसास-तुम्हें!नहीं होने दिया गया।शायद!यही कारण है,इस-अहसास फरामोशी का।तभी तो-उस जानवर का कद,तुमसे-ऊंच

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जीने का सलीका

15 सितम्बर 2022
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तुम-चढ़ती गयी,अमर बेल सी,जिन-कंधों का,सहारा लेकर।वो-कभी भीउफ़!नहीं कहे।तेरी-ऊंचाई अब,मुझसे बड़ी हो गरी है,बिना-सहारे के,खड़ा रहने में,सक्षम हैं,अब-तेरे पांव।बदलते-मौसम में,जब-गुमसुम,हो जाओगी ,कभी-तब त

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रुह से बतियाना जाये

15 सितम्बर 2022
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आओ,चलें-साथ-साथ,सोने के बजाय,एक साथ-जागा जाय।शरीर के जगह,रुह! से बतियाया जाय।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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जलील

15 सितम्बर 2022
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एक- बात कहूं,सुनने में,कड़वी लगेगी,लेकिन-यह सच है।हम-सबसे ज्यादा, जलील!उसी से होते हैं,जिसे-अपना कहते हैं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर, गोरखपुर उप्र।

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वेंटिलेटर

15 सितम्बर 2022
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एक-मासुमियत,और-अपनापन लिये,भरोसा!तथा-विश्वास से,भरा हुआ,हमारा साथ,दिनों दिन-प्रगाढ़ता से,लबरेज;जीवनपथ पर-बढ़ता जा रहा था।अचानक!!एक दिन-समय के चौराहा पर,तुम-अनजाने ही,अनचाहे,मुड़ गयी,दबी,कुचली,इच्छाओं

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बात

15 सितम्बर 2022
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जरा-गौर करें,उस-बात पर,जो-बोल दी जायतब-रिश्ते मर जाय,और-मन में ,रख लिये जाय,तो दम घुट जाय।कहने को तो,बात !बात होती है,लेकिन-जब यह, घाव करती है,चुभन!!अन्दर तक होती है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर

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मैं जानता था

16 सितम्बर 2022
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मैं-जानता था,तुम-नाराज नहीं हो,सिर्फ-चली गयी,मुझसे-बिना बोले ही।गलती-यही रही मेरी,मैंने-पुकारा नहीं तुमको।और, तुम-करती रही,इंतजार!मेरी- आवाज का।©ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र,

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भू़ंख का संतुलन

15 सितम्बर 2022
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तमाशाई!मजमा जमाये,चारों ओर-घेरे हुए,तमाशा-देख रहे हैं।बांस के,अस्थाई -खंभों के सहारे,तनी रस्सी पर,मासुम-भोली-भाली,उम्र!यही कोई,10-12साल के,करीब होगी।हाथ में-लाठी लिये हुई,रस्सी पर- खड़ी होकर,लाठी

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आहटें

16 सितम्बर 2022
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आहटें-उद्वेलित करती रहीं,कंकड़ बन!मन तरंगों को,इंतजार के- झील में,पूनम की-सारी रात।©ओंकार नाथ त्रिपाठी,बशारतपुर, गोरखपुर।

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बदचलन

15 सितम्बर 2022
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कपड़े तो-तुमने भी उतारे;उसका-उतारने के बाद।फिर-यदि वह बदचलन;तब-तुम्हें क्या कहा जाय?-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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तेरे हिस्से का हिस्सा

16 सितम्बर 2022
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तुम तो-मेरी,कहानियों की,कला!कविताओं का,सौन्दर्य!!गीतों का,लय!!! रही।मेरी-हर रचना की,अभिन्न-हिस्सा रही,लेकिन-मेरे जीवन के,हिस्से में!!!!होकर भी,तेरे-हिस्से का,हिस्सा!!!!मैं नहीं रहा।© ओंकार नाथ त्रिपाठ

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हाहाकार

16 सितम्बर 2022
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जब-भावशून्य हो,डूब जाओगी,किसी-अवांक्षनीय,विचारों में।अनमनी सी,हो उठोगी,घर के-चहल-पहल में।अंधेरे, जब-प्रिय लगने लगें,भू़ंख!रूठकर,सिमट जाये,पेट के कोने में,तब-अनचाहे ही,अचानक!एकाएक-मेरी यादें जाग उठेंगी

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अपना समझा

20 सितम्बर 2022
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मैं-भागता रहा,तेरे-पीछे-पीछे,इस कदर,कि-खुद को ही,भूल गया।मुझे-पता है,तेरी-मुस्कान,घुंघराले-काले घने बाल,उन्नत-कुच द्वय,काया-कंचन कलश सम,खंजन-नयन युगल कजरारे,बलखाती-सर्पिल कटि,मतवाली-पायल की रुनझ

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एक दिन जब

21 सितम्बर 2022
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एक दिन,जब-पड़ जायेंगी,चेहरे पर-उम्र की झुर्रियां,ढ़ल जायेगा,मदमस्त!तेरे यौवन का,शबाब।उपमा जड़ित,तेरे-केश, भौंहें,होंठ,कपोल,कटि,वक्ष,नितम्ब और ललाट,बन जायेंगें-उपहास के आधार।श्वेत केश,ढ़ीली ढ़ाली देहयष

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शिकायत है खुद से

22 सितम्बर 2022
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तुम-जितना ही,दूर होती हो,मुझसे-मैं उतना ही,नजदीक पाता हूं तुम्हें।मुझे-कोई शिकवा नहीं,तुमसे,शिकायत है खुद से।जिनके लिये-खर्चता रहा जीवन,उनके पास-समय नहीं मेरे लिए।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर

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मौत

23 सितम्बर 2022
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मौत!देखने में,जितना-दुखदायी होता है,उतना-सुनने में नहीं।यह-जीवों या रिश्तों,दोनों के लिए-एक जैसा होता है। हरदम-सोचते तो रहे हम,लेकिन -महसूस नहीं किये,अक्सर-बेखबर रहे इससे।क्यों?घुट-घुट कर मरते रह

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सामर्थ्य

24 सितम्बर 2022
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मेरी-खुशीयों की,दवा तो तुम हो-जिसे-खरीदने की,सामर्थ्य! मेरे पास नहीं है।तुम-कहती हो कि-मैं!बदल गया हूं;अरे!साख से टूटे पत्ते,कहीं-रंग बदलते हैं क्या?-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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नजरअंदाज

24 सितम्बर 2022
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एक-बात कहूं,मैं-जितना तुम्हें,मानता हूं,शायद-किसी और को,उतना-न, मान सकूं,यह-तुम भी,भली भांति,जानती और-समझती हो।लेकिन -सच!यह है कि-तुमने-जितना मुझे,नजरअंदाज किया,उतना- कोई नहीं।-© ओंकार नाथ त्रिपा

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खुशीयों का उत्स

26 सितम्बर 2022
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मैंने-कभी भी,तेरी-इच्छाओं को, ना नहीं कहा।तभी तो-मेरी खुशियों का,उत्स!उनकी पूर्ति रही।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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यादों में

27 सितम्बर 2022
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तेरी-यादों में,समाये-समाये,सो जाना।जागते ही,फिर-यादों में,तेरी खो जाना।सांझ ढले-तुलसी के पास, तेरे-होने का,भ्रम होना।सूरज की-किरणों के संग,आंगन में- तेरा बसना।उठते-बैठते,सोते,जागते,हरपल!तुझम

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तुम और मैं

28 सितम्बर 2022
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लोग-पूछते रहे,हम- दोनों के रिश्ते?जिसे-टालते रहे,अब तक,आखिर-समय ने बता दिया,एक दिन-रिश्तों की जुबानी।अब-हम,हम न होकर,तुम-और, मैं हो गये।-©-ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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नि:स्वार्थ

30 सितम्बर 2022
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मेरा-तुमसे रिश्ता,भले ही-चुपचाप तथा शांत है।यह-शोर नहीं मचा रहा,लेकिन-बेशक रुहानी है।कभी भी- किसी के भी,चेहरा!पर-मत इतराना,समाज में-एक नकाब है चेहरा।तुमसे-अक्सर हारने वाला ही,तुम्हारा- असली

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मेरी बात

3 अक्टूबर 2022
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यह-जो शोर!उठ रहा है,मन के अंदर,इसे-व्यक्त करने के लिये,शब्द!!नहीं मिल रहे हैं।अनेक-आवाजें, आ जा रही हैं,और-प्रतिध्वनित होकर,गुम-हो जा रही हैं,यहीं-कहीं आस-पास।बात-मन की, रह जा रही है,मन में ही,अव

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जैसे जैसे

5 अक्टूबर 2022
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मैं-जैसे जैसे,बिखरता गया,वैसे-वैसे ही,दिन-प्रतिदिन-निखरता गया,और-एक-एक करके,सारी-उलझनें,धीरे-धीरे- सुलझती गयीं।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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कीमत

6 अक्टूबर 2022
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जैसे ही ,मैनें-उन्हें, अपनी-कीमत बतायी,वैसे ही-मेरी मौजुदगी,और- उनकी हदें,दोनों ही-दिखने लगी।जो-नजरअंदाज, करते रहे मुझे,अब तक।वो-मजबूर होगये,मुझे-मजबूत देखने को।-©-ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपु

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पेड़

7 अक्टूबर 2022
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एक दिन,मैंने!पेड़ से पूछा,क्यों?कल तक तो,तुम-खिले हुए,मचल रहे थे,आज-पतझड़ में,तुम-उदास नहीं,सिर्फ!शांत भर हो।पेड़ ने कहा-इंतजार!कर रहा हूं,बसंत का।वह-फिर आयेगा,मैं कल-पुनःमचलकर,झुमूंगा,गाऊंगा।आज-जो पत

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कल कल करती

8 अक्टूबर 2022
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तुम-कल-कल करती, बहती, नद हो,मैं -उथल पुथल,करता सागर।तुम-शीतल मन्द,समीर बनी,मैं-थका उमस का,पथिक रहा।तुम-धवल चांदनी की,हो पूनम,मैं-चकोर देखताराह रहा।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र

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उथल पुथल सी

10 अक्टूबर 2022
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अचानक,तेरा-मेरे भीतर,आ जाना,एक उथल पुथल,पैदा करती है।बेचैन सा तब,हो जाता हूं,मन में-हलचल सी होती है।तुम-शांत जहां पर,सोती हो,मैं अशांत रात भर,जागता हूं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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वादा

11 अक्टूबर 2022
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मैं-जानता हूं,तेरा वादा,झूठा है!फिर भी-न जाने,क्यों?तसल्ली,हो जाती है,तेरे-किये गये,वादे से।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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डर

12 अक्टूबर 2022
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एक डर!सताता रहा,बाहर से,लेकिन-अंदर से,हौसला!!बढ़ाता रहा,मुझे-उस, जीत की ओर,जो,डर के आगे है।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र

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परवाह

13 अक्टूबर 2022
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मैं-जलता रहा,जिनकी-परवाह में,वो ही-दूर खड़े,तमाशबीन बने,देखते रहे।©ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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त्याग

14 अक्टूबर 2022
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सोच रहा हूं,जो-मुझे त्यागने का,मन-बना चुके हैं,क्यों न-उनके पहले,मैं ही-उन्हें त्याग दूं।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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बारिश का पानी

15 अक्टूबर 2022
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जरा- देखो तो!जिन्हें-अपना समझकर,लुटाता रहा,नेह सारा,अब वही-मेरे- आंसुओं को,बारिश का-पानी समझे।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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अकेलापन

16 अक्टूबर 2022
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हमारा-साथ तो,एक दुसरे का,अकेलापन!दूर- करने का था।लेकिन -जैसे ही, तेरा अकेलापन,खत्म हुआ,मैं-अकेला रह गया।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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कदर

17 अक्टूबर 2022
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मैं तो-करता रहा,कदर उनकी,बेकदर होकर।बार बार-खाता रहा,धोखा!हर ऐतबार पर।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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नमक भर रहा

18 अक्टूबर 2022
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मैं-तेरे लिये,केवल- नमक भर रहा।जिसे-अपने,स्वादानुसार,प्रयोग किया,तुमने।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र

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बहाना

19 अक्टूबर 2022
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ऐसा नहीं,कि-तेरा मिलना,नहीं होता है।वह-होता तो हैं,लेकिन-मिलने जैसा,नहीं होता है।इसीलिए,मैंने-सरेआम,तुम्हें, पुकारने के लिये,तोता-पालने का,एक-बहाना ढूंढ़ लिया।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्

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पाजेब

20 अक्टूबर 2022
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तुम-वह पाजेब,आज-पहन लेना,जिसे-मैंने दिया था,तुम्हें-उस दिन।ताकि-जब तुम चलो,तब-तेरे हर कदम पर,मेरी-चाहतों की,आवाज़ गूंजे।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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एक बात कहूं

21 अक्टूबर 2022
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एक-बात कहूं,तुम-यह मानोगी?सच- कह रहा हूं,मैं-अपनी साख से,टूटकर-इतना दुखी,नहीं हुआ,जितना-तुमसे छूटकर।©~ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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व्रत

22 अक्टूबर 2022
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दिन भर का,भुखा प्यासा, चांद!रजनी से,पूछा-देखना जरा-वह!घर से निकलकर,छत पर,आ गयी हो, तब-उसका-दीदार करके, मैं-जल पी लूं।मैंने-करवा चौथ का,व्रत!रखा है, उसके लिये।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर

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आज फिर...

25 अक्टूबर 2022
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आज,फिर-जैसे ही,फोन की,घंटी बजी,मैं! उठाकर बोला,हैलो!तुम,कुछ न बोली,मैं भी चुप रहा,तेरे-बोलने के, इंतजार में।फिर भी-हम दोनों,फोन पर,मौजुद रहे।लेकिन-न मैं बोला,और-न तुम बोली,एक चुप्पी-पसरी रही

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धड़कन

24 अक्टूबर 2022
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दिल की,यही-धड़कन ही,मेरे-तड़पन की,जड़ है।कभी-तुम भी, तो-मजबूर रही,इसी-दिल के हाथ।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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बेशक

26 अक्टूबर 2022
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बे शक!ऐश्वर्य का साधन,नहीं- दें पाया मैं तुम्हें,और-न ही दे सका,तुम्हारी, इच्छाओं को,चकाचौंध का आकाश।लेकिन-तुम्हारी परवाह लिए,मैं मुस्तैद रहा,हरपल तेरे साथ।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उ

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दहलीज

27 अक्टूबर 2022
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एक बार,जब-हम लांघ जाते हैं,प्रेम की दहलीज,तब-प्रेम के अलावा,कोई भी अपना,नहीं लगता।दिवारें-चुगली करती,नजर आती हैं,और, इंतजार?इसकी तो-बात ही छोड़ो,यह भी-दूर खड़ा हो जाता है।हम-भटकते रहते हैं,एक-आकाशगंगा

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सुन लो....

28 अक्टूबर 2022
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अब-सुन लो तुम,तेरे!रोज रोज के,नखरों ने,तुम्हें-नवम्बर के गर्मी सी,बना दी है,जो,धीरे धीरे-प्रभावहीन,होने लगता है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र

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