एक दिन बातों-बातों में फूल और तितली झगड़ पड़े तमाशबीन भाँपने लगे माजरा खड़े-खड़े कोमल कुसुम की नैसर्गिक सुषमा में समाया माधुर्य नयनाभिराम रंग, ख़ुशबू , मकरन्द की ख़ातिर मधुमक्खी, तितली, भँवरे करते विश्राम फूल आत्ममुग्ध हुआ कहते-कहते तितली खिल्ली उड़ाने में हुई मशग़ूल यारी की मान-मर्यादा, लिहाज़ गयी भूल बोली