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तमन्ना

5 नवम्बर 2023

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 छोटी सी तमन्ना अपनी माँ का इंतज़ार कमरे मे करती रही ।पड़ ये इंतज़ार उसके जीवन से कभी ख़त्म हीं नहीं हुआ ।और उस दिन से मासूम तमन्ना के जीवन के मायने हीं बदल गये थे ।तमन्ना नाम का मतलब हीं बदल गया था ।एक माँ हीं तो थी जो तमन्ना की हर तमन्ना को पुरी किया करती थी ।पड़ जब से माँ उसके जीवन से चली गई थी ,तब से तमन्ना की हर तमन्ना मानो दम तोड़ती चली गई ।माँ की वर्षी ख़त्म होते हीं दादी ने पापा की दूसरी शादी करा दी थी नई माँ एक डॉक्टर थी और वो तलाशुदा थी ।उनकी भी एक बेटी थी ।जो तमन्ना से कुछ छोटी रही होगी ?तमन्ना को ये एहसास था की वो पापा को हमेशा से खटकती थी ।वो अपने आपको उनके प्यार के लिए हमेशा    तरसती         हुई पाती थी । वो तो माँ थी ,जो उसके और पापा के बीच की कड़ियों को जोड़ने मे लगी रहती थी ।माँ के जाने के बाद एक अजीब सी खालीपन आ गया था तमन्ना के जीवन मे ।वो स्वंम को बहुत अकेला पाती थी ।उसकी आँखों के आँशु भी उसकी इस अकेलेपन को भर नहीं पाती थी ।उसकी आँखों मे एक अजीब सा प्यासा पन था ।माँ को लेकर वो स्वीकार करने को तैयार नहीं थी ।की माँ को वो अब कभी देख नहीं पायेगी ? काश वो उस बक्त मान लेती की माँ उसे छोड़कर बहुत दूर जा चुकी है ।और जी भर कर उन्हे देख लेती तो ,शायद उस बक्त उसकी आँखे भींग कर उसके दिल को संभाल लेता ।पड़ उसने तो उस दिन अपनी आँखों को ये सपना सज़ाने के लिए कह दिया था ,की माँ तो स्वंम हीं उसे मानने आएगी ?वही सपने अबरेगिस्तान मे  वारीश् की एक बुंद को तरसती उस मरुस्थल् के समान हो गया था । जिसे सुरज की तपती गर्मी से वारिश की एक बुंद भी संजीवनी के समान लगाती थी ।वही हाल तो तमन्ना की आँखों का भी था ।वो भी तो बस एक बार फिर से माँ को देखना चाहती थी।क्यो माँ क्यो आप मुझे जैसे अधूरी। सी  छोड़  कर चली गई ,अगर जाना हीं था तो मुझे भी अपने  आँचल मे थोड़ी सी जगह दे देती ,तो  मेरी प्यास बुझ जाती माँ .......इस आह के साथ वो विचलित हो जाती । तमन्ना   के   ऊपर भगवान् की एक      कृपा  ,थी वो  अपनी माँ की हूबहू सक्ल की दिखती थी । इसी सहारे के साथ तो वो स्वंम को थोड़ा संभाल    पाई   थी ।वो समय के साथ बरी होने लगी थी । 

अक्सर जब कभी तमन्ना को माँ की याद आ जाती तो वो स्वंम को आईने मे देख लेती  ।वो अपनी माँ को पा तो  नहीं सकती थी ।पड़ वो उनकी हर आदत और नज़ाकत को अपने आप मे समेटने की कोशिश करती ।पता नहीं क्यों ?तमन्ना दुनियाँ वालो को समझ रही थी ,या दुनियाँ वाले हीं उसे नहीं समझ पा रहे थे ।सहिर्दयता तो उसमे कुट -कुट कर भरी थी ।लेकिन उसकी सहिर्दयता को कोई समझ हीं नहीं पाया था । हर बार तमन्ना के जीवन मे उसका पाला चीप और स्वार्थी लोगो से हीं पड़ा था  । वो तो मानो अब अपने अंदर कमी ढूंढ़ने के लिए मज़बूर हो गई थी ।इन सब चीजों से वावस्ता पड़ने के बाद वो स्वंम को इन दुनियाँ वालो से दूर हीं रखने लगी थी । फिर कभी अकेले मे वो अपने आप से हीं ये सवाल करने पड़ बेबस हो जाती थी ,की क्या वाकई मे वो गलत थी ?या ये दुनियाँ वाले हीं उसे गलत बनाने पड़ उतारु हो चुके थे ।क्या गलती रहती थी तमन्ना की ,की हर बार उसका झगड़ा लोगो के साथ भी होने लगा था  ।
 कभी -कभी उसे स्वंम। पड़ गुस्सा आने लगा था ।की वो कैसी बनती जा रही थी ।फिर वो दीवार पड़ लगी माँ की तस्वीर की तरफ देख कर वो एक लम्बी सांस लेकर ये सोंचती है ,की उसका बाकियो के मुकाबले जायदा लोगे के साथ झगड़ा होने का  कारण था ,उसका अकेलापन ।वो अपने अकेले पन से अंदर हीं -अंदर जुझती रहती थी । वो अपनी बातो को किसी से बांटना तो चाहती थी ।पड़ ऐसा कोई मिला हीं नहीं जिससे वो अपने मन की बातों को बांट सकती ।इसलिए उसने माँ की डायरी को अपना दोस्त बना लिया था ।
 समय बीतता गया छोटी माँ ने एक लड़के को जन्म दिया था ।इतीफाक से उस दिन माँ की वर्षी थी ।जिस दिन अथक का जन्म हुआ था ।जन्म दिन तो तमन्ना का भी था उसदिन और छोटी माँ की डिलेविरी को ले कर पापा बहुत व्यस्त थे ।उस दिन ।पड़ एक चीज अच्छी हुई उस  दिन उतनी व्यस्ता होने के बाद भी पापा माँ की वर्षी माननी नहीं भूले थे ।वो एक बार फिर से सोचने के लिये मज़बूर हो गई की पापा माँ को तो बहुत प्रेम करते थे ।पड़ उसी माँ की बेटी को वो क्यो नहीं अपना पाते थे ?इतना सोंचाने के बाद तमन्ना    अपने  पापा  के  प्यार और दिल दोनो को  जीतने की  कोशिश मे जुट जाती है ।उसने ये निश्चय किया था ,की चाहे जो हो जाए एक न  दिन वो अपने पापा  का प्यार और दिल दोनो को जीतकर हीं दम लेगी ?  समय अपनी रफ़्तार से चल रहा था । दादी को तो मानो अथक के जन्म के बाद चैन -   हीं चैन थी । अथक अभी छोटा था पड़ हम दोनो बहने एक हीं साथ पढ़ने जाया करते थे ।मै और तृप्ती साथ  पढ़ते ज़रूर थे ।पड़ हम दोनो की उतनी पक्की वाली यारियां नहीं थी ।एक दिन दादी जब नाश्ते की टेबल पड़ नास्ता करने नही आई तो सब लोग उनका हाल। जानने के लिए उनके कमरे मे गये तो ,दादी चल बसी थी ।सब लोग आश्रयाचकित थे की आखिर ये सब हुया कैसे हुआ था ?पड़ सब स्वीकार कर चुके थे की दादी की जीवन लीला समाप्त हो चुकी थी ।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने 👍🙏

19 नवम्बर 2023

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बहुत सुंदर लिखा है आपने 👌 मेरी कहानी पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏

6 नवम्बर 2023

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रचनाएँ
तमन्ना
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तमन्ना का नाम तमन्ना उसकी माँ ने प्यार से रखा होगा या फिर उन्हे ये लगता था ,की तमन्ना नाम रखने से उनकी बेटी की हर तमन्ना पुरी हो जायेगी ये सोंच कर ये नाम रखा था ।तमन्ना बहुत छोटी थी जब उसकी माँ का देहांत उनकी बीमारी की वजह से हो गई थी । तमन्ना उस बक्त बहुत छोटी थी ।जब उसकी माँ चल बसी थी ।इत्तीफाक से उस दिन उसका जन्मदिन था ।नन्ही और मासूम तमन्ना को कुछ भी समझ मे नही आ रहा था ,की माँ चुप -चाप ज़मीन पड़ खामोश क्यो पड़ी थी ? उनकी हांथ मे अपनी लाडली तमन्ना के लिए जन्मदिन के लिए लाई गई तमन्ना की जैसी हीं प्यारी और मासूम सी एक गुड़िया थी । मासूम तमन्ना य ेनही समझ पाई थी , माँ उसे छोड़ कर चली गई थी ।उसने सोंचा माँ उसके साथ उसे सताने के लिए सरारत कर रहीं है । बस फिर क्या था ?वो माँ की हांथो से गुड़िया उठा कर कमरे मे चली गई ।ताकि माँ उसे स्वंम मनाने आएगी ? पड़ उसका ये भ्रम उस बक्त टूटता है ।जब माँ पुरा दिन कमरे मे उसे मनाने आई हीं नहीं थी ।

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