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कहॉ हो तुम

4 मार्च 2016

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featured imageअंतिम पल शेष रहे हॅ,मेरे पीड़ित जीवन के, ओ प्रेम पथिक आ जाओं मुंदने से पहले पलकें। घायल है ह्रदय हमारा, अगणित विषाक्‍त तीरों से, तुम हॅस कर खेल रहीं हो, निजी घर में यूॅ हीरों से।। मेरी ये दोनों पलकें है, क्‍यों दृग जल से गीली, जब तुम इठलाती फिरती हो, आेढ चुनरिया नीली।। कॉटे ही थे जीवन में, मृदु कलियॉ कब खिलती थीं, पर जीता रहा निरन्‍तर, तुम स्‍वप्‍नों में मिलती थीं ।। आशाओं की जीवन में आईं बन कर बाराती, जी भर कर दिल से खेलीं फिर खाली कर दी छाती।। क्‍यों राेता रहा निरन्‍तर ये दुखित ह्रदय है मेंरा, जब अनजानों की खातिर, तुमने मुख मुझसे फेरा ।। अब नहीं फूटने कोपल, मेरी सूखी शखों से, कब ठूॅठ हरें होने हैं, बहते ऑसू ऑखों से ।। तुम बजा बजा कर हॅसती हो, शायद घर में ताली, हम रोते हैं छिन छिन में, छिन गया हमारा माली।। जब वर्षा में हल्‍की सी, ठंढी फुहार आती है, मेरे अभिशप्‍त ह्रदय में एक टीस उठा जाती है।। पर मेरे कटु जीवन से, तुमको क्‍या लेना देना, तुम तो प्रसन्‍न होती हो, मुट़ठी में लेकर सोना ।। तुमको न सुनायी देगी, मेरे क्रन्‍दन की वीणा, तुम कन्‍दुक समझ ह्रदय को करती रहतीं हो क्रीड़ा, आखिर क्‍यों मेरे मन की, रौदी तुमने फुलवारी, तुम पर मिटने की अपनी, पहले सी थी तैयारी ।। वो प्रेम नहीं सपना था फिर भी कुछ तो अपना था, ऑखें तुम पर टिकनीं थी, बस नाम तेरा रटना था ।। तुमको आखिर क्‍या सूझा, तोड़ा विश्‍वास हमारा, तुम छोड़ गईं हॉथों में, मेरे तपता अंगारा ।। आकाश धरा सागर का, ढूढा हर कोना कोना, तुम कहॉ छुपी बैठी हो, प्रिय अब तो बतला दो ना।। *******************************

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