कहॉ हो तुम
अंतिम पल शेष रहे हॅ,मेरे पीड़ित जीवन के,ओ प्रेम पथिक आ जाओं मुंदने से पहले पलकें।घायल है ह्रदय हमारा, अगणित विषाक्त तीरों से,तुम हॅस कर खेल रहीं हो, निजी घर में यूॅ हीरों से।।मेरी ये दोनों पलकें है, क्यों दृग जल से गीली,जब तुम इठलाती फिरती हो, आेढ चुनरिया नीली।।कॉटे ही थे जीवन में, मृदु कलियॉ कब ख