(यह रचना भारत में बसने वाले उन लोगों की हालत का साक्षात बयान करती है जो अपनी जिंदगी का विनाश अपनी आंखों के सामने होते हुए देखते है। इसके अलावा गांव के गंदे बच्चों की संगति जो उसे सदा के लिए बर्बाद करके उसकी जिंदगी की बाट लगाकर रख देती है। भारतीय समाज के कुछ पिछड़े हुए गांव और उनमें बसने वाली जातियां समाजिक कुरीतियों में इस तरह रम गई है कि ये आज इक्कीसवीं सदी के समय में भी समाज से मिटने का नाम नहीं ले रही है। ये कुरीतियां मानव को हर कदम पर दर्द देकर छोड़ देती है और समाज के उन बच्चों भविष्य को बर्बाद कर देती है।)
शहर से कुछ दूरी पर बसी इस बस्ती में अलग-अलग जातियों के लोग रहते थे। सभी जातियों के लोग पढ़ने में कम रूचि रखते थे क्योंकि कुछ लोगों ने अपने बेटे से इतना लाड प्यार होता था कि वे अपने बच्चों को नौकरियां करने से भी वे मना कर देते थे। उनका कहना होता था। कि
"मेरा बेटा इतनी दूर कहां जायेगा।उसने कभी घर से बाहर निकल कर नहीं देखा है। वह चाहे मेहनत करके अपना जीवनयापन कर लेगा। लेकिन हम उसे नौकरी करने के लिए बाहर नहीं भेजेंगे।"
इस बात के डर से कुछ लोग अपने बच्चों को नौकरियों पर नहीं भेजते थे। उस समय पढने-लिखने वाले चुनिंदा लोग ही होते थे।
हां उस समय की नौकरियों में मिलने वाला वेतन बहुत कम होता था।
सभी लोग खेतों में मेहनत करने से बिलकुल भी पीछे नहीं हटते थे। इस समय खेती का काम बहुत ही मेहनत के साथ होता था। खेती के सारे काम हाथ के औजारों से किये जाते थे। किसान लोग अपने खेतों को खून पसीने से सींचते थे।
मेहनत का काम करने की वजह से ही लोगों के शरीर में बीमारियां भी पैदा नहीं होती थी क्योंकि उस समय का खाना पीना बहुत मजबूत और देशी तकनीक से पैदा किया जाता था।
"उस समय के लोगों में आलस्य कम हुआ करता था सभी लोग मेहनत करने के आदी होते थे , ऐसे कम ही लोग होते थे जो काम से जी चुराते थे। इसलिए इनके शरीर में बीमारियां भी कम पनपती थी और इनका इम्यून सिस्टम बहुत मजबूत होता था। लोग तीन समय खाना खाकर भी आसानी से पचा लेते थे। उन्हें अपने शरीर का बिलकुल भी डर नहीं था कि कोई बीमारी उनकी तरफ झांक जाये। यदि खांसी जुकाम और बुखार जैसी बीमारी हो भी जाती थी तो ये लोग राबड़ी (दलिया) खाकर इतनी मेहनत करते जिससे कि शरीर में खूब पसीना आये और उनके शरीर की बीमारी पसीने के साथ ही बाहर आ जाती थी।"
हां! कुछ लोग बच्चों की नौकरियों के लिए बहुत महत्व देते थे। वे बच्चों को नौकरी के लिए खूब पढ़ाते लिखाते थे। लेकिन उस समय इन लोगों की संख्या बहुत कम थी।
यह वह समय होता था जब किसी गांव से एक बच्चा भी सरकारी नौकरी के लिए जाता था तो गांव के सभी लोग उसे विदा करने के लिए गांव की सीमा तक जाते थे। और उनसे दूर जाने के लिए लोगों की आंखों में आसूं आने से नहीं रूकते थे। कैसा समय रहा होगा वह जब लोगों में प्रेम, बंधुत्व, सद्भाव,सद्गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे। लोग एक दूसरे को इतना चाहते थे कि उन्हें किसी भी अपने के बिछड़ने का ग़म बहुत बुरी तरह सताता था।
"इसके अलावा अधिकतर लोग जिन्होंने पहले स्कूल का मूंह जाकर नहीं देखा था वे लोग कहते थे कि इस दुनिया में नौकरी कहां है जो बच्चों को पढ़ाया लिखाया जाये। "
इस सोच के व्यक्ति बचपन में ही अपने बच्चों के लिए काम धंधा सीखने के लिए किसी भी कुछ कारीगर या मिस्त्री के पास भेज देते थे। जो बच्चे अभी खेलने के लिए अपने जीवन को जीना चाहते थे वे बच्चे कमाने के लिए तैयार किये जाते थे।
इसके अलावा समाज में एक सामाजिक कुरीति बहुत ही बुरी तरह बसी हुई थी जो उस बच्चे की जिंदगी को बर्बाद करने के लिए कोई कसर नहीं छोडती थी। वह थी बच्चे की चौदह से पंद्रह साल की उम्र में शादी के लिए तैयार कर देना।
"जिस बच्चे ने अपनी मां का आंचल सही से छोड़ा ही नहीं उसके ऊपर घर और समाज की जिम्मेदारी सौंप दी जाती थी। यह कारण बच्चों की जिंदगी को बर्बाद करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कारण था और इसका परिणाम यह होता था कि बच्चे अपनी जिंदगी की उस राह पर चले जाते थे जहां पर उसे घोर अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देता था लेकिन उस समय का बड़ों का सम्मान और उनकी इज्जत उन्हें मना करने के लिए गवाह नहीं देती थी।"
उस समय हमारे बड़े लोगों की ख्वाहिशों में यही बड़ी ख्वाहिश होती थी कि मेरे बच्चे या पोते की शादी कर लो मैं जीते जी अपनी बहू को देखकर चली जाऊंगी या जाऊंगा। इस प्रबल इच्छा के सामने हर बच्चा नतमस्तक हो जाता था क्योंकि वह अपने बड़े लोगों की हमेशा इज्जत करता था वह कभी भी अपने सम्मानित लोगों का दिन दुखाने की सोच ही नहीं सकता था। इसलिए उस समय जो बच्चा पढ़ लिखकर कुछ करने की सोचता भी था उसके सपने पखेरू की तरह बिखर जाते थे। और जिस समय उसे पढ़ना लिखना और खेलना कूदना चाहिए वह उस समय सामाजिक जिम्मेदारी के तले इस तरह दब जाता था कि उसकी जिंदगी उस मंजिल के समान हो जाती थी जिस पर उसे रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं होता था।
घर-गृहस्थी के चक्कर में वह अपनी जिंदगी का मकसद भी भूल जाता था। बहुत से घरों में जब इन जिम्मेदारियों का वजन वहन नहीं कर पाता था तो उसमें घमासान युद्ध होने से कोई भी ताकत नहीं रोक सकता था। इसके बाद उसे साल दो साल में ही अपने खुद की जिम्मेदारी खुद ही वहन करने की जिम्मेदारी मिल जाती थी। यह उसकी जिंदगी का सत्यानाश करने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होती थी।
रोहन का सफर भी इसी तरह के वातावरण में शुरू हुआ था लेकिन रोहन बहुत ही जिद्दी और गुस्सैल स्वभाव का बालक बन गया था। वह बचपन से ही जिस बात के लिए जिद कर लेता था उसे पाकर ही रहता था। वह उस समय तक सारे घर को उठा के रख देता था जब तक कि उसे इच्छित वस्तु मिल नहीं जाती थी।
सुपर की यह आदत उसे आज भी बुरी तरह से प्रभावित कर रही थी आज वह पंद्रह साल का हो गया है। उसके माता पिता ने उसकी शादी उसके भाइयों के साथ बचपन में ही कर दी थी। जब वह शादी के शब्द को जानता ही नहीं था उसे उसकी शादी के उन पलों का आभास भी नहीं है जब उसे मण्डप के नीचे गोदी में उठाकर शादी में दुल्हा बनाकर ले जाया गया था।और गोदी में उठाकर ही उसके सात फेरे कराये गये थे। कैसी विडम्बना होती है उस बच्चे के लिए जिसकी जिंदगी का विनाश उसकी आंखों के सामने किया जा रहा हो।