सच्चा मित्रएक गाँव में एक व्यापारी अपनी पत्नी और बारह साल के बेटे, अनीश के साथ बहुत खुशी - खुशी रहता था। व्यापारी के कारोबार में दिन - रात तरक्की होती थी। अनीश इकलौती सन्तान होने के कारण लाड - दुलार म
सुख की खातिर मैं भटकी थी यहां-वहां पर हे शिव-शंकर सुख तो तेरे में साथ में जब भी नाम तुम्हारा जपती हूँ तो सुख सुनती हूँ अपनी ही आवाज़ में | सुकून की ख़ातिर भटकी थी
मोहब्बत का महीनामोहब्बत में जान क़ुर्बान कर गये !वो अपनी पूरी ज़िंदगी, देश के नाम कर गये !नहीं सोचा बच्चों का , पत्नी को बेसहारा छोड़ गये !कहते हैं मोहब्बत इसे, अंतिम साँस तक लड़ गये !ह
रंग बिखेरते फूलएक कस्बे में एक सामान्य परिवार निवास करता था। परिवार में पति हरि प्रसाद और पत्नी नारायणी और दो बेटे थे - बड़ा बेटा सुरेश और छोटा बेटा मनोज। दोनों की विद्यालय जाने की उम्र हो गयी थी। दोनो
माँ का आँचलएक छोटे से गाँव में लीला नाम की एक महिला अपने तीन बच्चों के साथ मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का पालन - पोषण कर रही थी। साथ ही अपने बच्चों को गाँव के स्कूल में पढ़ने को भेजती थी। उसके बच्चे
हे ईश्वर ! आपने जो मुझे दिया उसके लिए बहुत-बहुत शुक्रिया | आज ये कविता जो मैंने लिखी है मेरा लक्ष्य सिर्फ एक ही है | मेरे मन में छपे और इस पन्ने पर लिखे अक्षरों को आप पढ़
ना कोई ताला है ना कोई पिंजरा है तुम तो सिर्फ अपने मन में ही कैद हो ये जरूरी नहीं कि कि ऊंचे आकाश में पंख खोल उड़ जाओ पर कम से कम इतनी तो उन्मुक
मेरी चाह ऐसे जीवन की है जैसा जीवन मेरे आँगन के पेड़ की अथाह पत्तियों का है … हवाएं चाहें गर्म हों या हों सर्द मदमस्त झूमती रहती है कड़ाके की धुप हो या हो बेतहाशा बारिश
मैं लेखक वही लिखने को पन्ने भी वही पर मैंने अपने कलम की स्याही का रंग बदल दिया पहले जो कलम कोरे पन्नों पर कल्पनाएं सजाती थीं अब उन्हीं पन्नों पर यथार
सुबह गुज़र गई है दिन अभी ढला नहीं और शाम आई नहीं तजुर्बा हमें भी तो कोई कम नहीं पर बुजुर्गों वाली वो खास बात अभी आई नहीं बीते चुके दौर ने इतना दिखा दिया&nbs
धक्-धक् करती रेल हम जीवन अपनी पटरी है पटरी पर गाड़ी अपनी बस चलती रहती है कभी ये बाएं मुड़ती है कभी ये दाएं मुड़ती है पर गाड़ी तो पटरी पर बस चलती ही रहती है कभी लहर
प्रेम ( पति - पत्नी का ) एक साहूकार जी थे उनके घर में एक गरीब आदमी काम करता था । जिसका नाम था । मोहन लाल जैसे ही मोहन लाल के फ़ोन की घंटी बजी मोहन लाल डर गया । तब साहूकार जी ने पूछ लिया ?"मोहन लाल
एक लड़की मेरे इतने करीब आकर चली गयी, जैसे कि मुझको मुझसे ही चुराकर चली गयी, उसके बिना मैं खुद को अधूरा - सा समझता हूं, पतंग संग डोरी का रिश्ता निभाकर चली गयी, कुछ अपने थे खिलाफ तब
छलित एहसास मैं अक्सर ही रातों को चौक कर गहरी निंद्रा से जाग जाती हूंऔर मन में शुरू हो जाता है एक अंतर्द्वंद उस क्षण मैं सोचती हूं की आखिर क्यों मुझे अक्सर मध्य रात्रि गए ये कैसीअनु
उत्कृष्ट प्रेमजब प्रेमी, प्रेमिकाएं प्रेम में पड़ते है तो बहुत अद्भुत अनुभूति होती है। किंतु जब प्रेम में बिछड़ते है तो अत्यंत पीड़ा झेलनी पड़ती है क्या असल में प्रेम इतना उत्कृष्ट होता
विश्वास की पक्की डोर जिसे हम प्रेम समझने की भूल कर बैठे थे दरसल वो तो किसी और के लिए महज वक्त गुजारने का जरिया भर थाक्यों सही कहा ना ? वक्त ही तो गुजारना था ना तुम्हे और कमबख्
प्रेम का स्थान रिक्त रखूंगीना मांगूंगी कभी स्थान रुक्मणि का, ना हृदय में राधा बनकर रहूंगी,मै बनुगी तुम्हारे प्रेम में बस मीरा, सर्वदा तुम्हारे प्रेम की प्रतीक्षा करूंगी, अभिलाषा नहीं सद
फूल और तितलीएक तितली मायूस सी बैठी हुई थी । पास ही से एक और तितली उड़ती हुई आई । उसे उदास देखकर रुक गई और बोली - क्या हुआ ? उदास क्यों इतनी लग रही हो ?वह बोली - मैं एक फूल के पास रोज जाती थी । हमारी आ
दिनू की कहानीएक समय की बात है । खेड़ा नामक एक गांँव में एक अमीर साहूकार हेमा रहता था । वह बहुत ही धनवान था । गाँव के लोग उसका बहुत सम्मान करते थे । इस वजह से साहूकार घमण्डी और अहंकारी हो गया था ।
मोबाइल ( उपहार का डिब्बा ) एक समय की बात है । सुबह विद्यालय जाते समय टप्पू को एक उपहार का डिब्बा सड़क के किनारे पर लावारिस मिला था । उस उपहार के डिब्बे में एक नया मोबाइल रखा हुआ था । उस डिब्बे को