दु:ख वाचक चिन्ह
यूं तो हिंदी भाषा बेहद समृद्ध है तथा इसके शब्दों के तरकश में वो हर तरह के तीर हैं जिसे हम भावना के हर टारगेट पर दाग सकते हैं। लेकिन कुछ भाव व संशय ऐसे होते हैँ जिसे व्यक्त नहीं किया जा सकता, कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिसे पूछा नहीं जा सकता। फिर भी संशय व सवाल दोनों ही मन में पैदा तो होते हैं। इसे व्यक्त नहीं कर पाने या नहीं पूछ पाने से होने वाले दु:ख के लिए एक चिन्ह होना चाहिए जिसके बिना मैं समझता हूं कि हिंदी भाषा अधूरी है।
वो है ‘दु:ख वाचक चिन्ह’।
अब आप पूछेंगे ये क्या है और इसकी क्या जरूरत? बिना इसके हिंदी अधूरी क्यों?
मैं बताता हूं, वो इस तरह कि जैसे किसी आदमी की इमानदारी पर संदेह प्रकट करना हो पर खुल कर लिखने में डर भी लगता हो तो हम लिख देते हैं फलां की इमानदारी (?) की सर्वत्र चर्चा है। देखा ना..यहां प्रश्नवाचक चिन्ह बड़ा काम आया। मन भी हल्का कर दिया। ऐसे की दु:खवाचक चिन्ह होना चाहिए, दुख हल्का करने के लिए। दुख भी तरह-तरह के हो सकते हैं और होते भी हैं।
जैसे बेरोजगारों का अपना दु:ख है। उनसे नौकरी के लिए जो आवेदन मंगाया जाता है उसमें जैसे पूरी जनम कुंडली बांचनी पड़ जाती है। नाम व पता के अलावा पूछा जाता है …..
नाम : मूलचंद (दु:ख वाचक चिन्ह) दुख इस बात का कि हमारा नाम रणबीर, ऋतिक जैसा फैंसी व आकर्षक क्यों नहीं।
पिता का नाम : बनवारी लाल (डबल दु:ख वाचक चिन्ह) – दुख इस बात का कि हमारा बाप कोई अंबानी, टाटा, बिड़ला, मित्तल, कपूर क्यों नहीं हुआ।
जाति : सामान्य/ओबीसी/एससी/एसटी –एक पर टिक करें। हमने सामान्य पर टिक किया साथ ही (ट्रिपल दु:ख वाचक चिन्ह) दुख इस बात का कि हम किसी रिजर्व कैटेगरी में क्यों पैदा नहीं हुए।
आयु : 32 वर्ष (दु:ख वाचक चिन्ह) दुख इस बात कि इत्ते साल के होने के बाद कुछ क्यों नहीं उखाड़ पाए अब तक।
मेरिटल स्टेटस (विवाहित/अविवाहित) : अविवाहित (फाइव टाइम दु:ख वाचक चिन्ह) दुख इस बात का कि हमारे बाप की इतनी ख्याति तो है नहीं कि हमसे भी कोई मिस वर्ल्ड ब्याह कर लेती।
स्थायी पता : ग्राम लालपुर (दु:ख वाचक चिन्ह) दुख इस बात का कि मुंबई, दिल्ली, बेँगलुरू वाले पिता से मां ने ब्याह क्यों नहीं किया।
शिक्षा : एम. कॉम/एमएससी (दु:ख वाचक चिन्ह) – दुख इस बात का कि इतना खामखाह पढ़ लिया। बाप का पैसा बर्बाद करने का दुख।
शिक्षा प्रमाण पत्र : संलग्न (दु:ख वाचक चिन्ह) दुख इस बात का कि एक भी सिफारिशी पत्र संलग्न नहीं कर सके।
स्कूल/कालेज का नाम जहां से शिक्षा हासिल की : शासकीय हाईस्कूल/गवर्मेंट कालेज (दु:ख वाचक चिन्ह) गांव में डीपीएस/डीएवी/सेंट मेरी जैसे प्रायवेट व महंगे एजूकेशन सेंटर क्यों नहीं खोले जाते। खोल भी दिए जाते तो हमारी पढ़ने की औकात कहां होती।
अनुभव : ज़रा भी नहीं (फोर टाइम दु:ख वाचक चिन्ह) दुख इस बात का कि हमें किसी ने अब तक काम का अवसर नहीं दिया और दु:ख इस बात का भी कि अवसर मिलना भाग्य की बात नहीं होनी चाहिए। भले ही सफलता भाग्य की बात हो सकती है।
सेल्फ डिक्लेरेशन : मैं एतद् द्वारा घोषित करता हूं कि मेरे द्वारा दी गई उपरोक्त जानकारी सही है तथा किसी भी प्रकार की भूल अथवा गलती के लिए मैं स्वयं जिम्मेदार हाऊंगा। (दु:ख वाचक चिन्ह) दुख इस बात का कि मुझे रोजगार मिल ही जाएगा इस बात की जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं।
तो भाइयों मेरी भावना को समझ कर दु:ख वाचक चिन्ह को ढूंढने के लिए लग पड़ो, जुट जाओ क्योंकि बातचीत के जरिए इसका समाधान होने से रहा। वैसे भी बातचीत से किसी समस्या का समाधान अब तक हुआ क्या?