वेदास्तावत् यज्ञ कर्म प्रवृत्ताः,यज्ञाःप्रोक्तास्ते तु कालश्रयेण |
शास्त्रादस्मात् काल बोधो यतः स्यात् ,वेदान्गत्वं ज्योतिषं प्रोच्यतेSस्मात् ||
वेदों का निर्माण यज्ञादि शुभ कर्म करने के लिये हुआ है | और यज्ञादि शुभ कर्म शुभ मुहूर्त के विना संभव नही है | शुभ मुहूर्त का ज्ञान हमे ज्योतिष शास्त्र से प्राप्त होता है | इसलिये ज्योतिष शास्त्र को वेदाङ्ग कहा गया है |
वेद चक्षुः किलेदं स्मृतं ज्योतिषं ,श्रेष्ठता चाङ्गमध्येSथ तेनोच्यते |
संयुतोSपीतरैः कर्ण नाशादिभिः चक्षुषाङ्गेन हीनो न किञ्चित्करः ||
जिस प्रकार से मनुष्य के शरीर मे हाथ पैर नाक कान आदि होते हुए नेत्र के बिना मनुष्य अपने आप को असहाय महसूस करता है,उसी प्रकार से ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान के विना मनुष्य का जीवन अन्धकारमय होता है | वेदांगो में ज्योतिष शास्त्र को नेत्र की उपाधि प्राप्त है |