एक सोच एक पहल है मेरी समाज की नया दिशा देना है चाहे हमे अलग रहना पडे गलत संग या समाच की सोच बदलना है कभी कभी हम राह बताया जाता है वो सही या गलत है ,ये तो जाना नही जब लेकिन समय समतुल होगा पर्दे में रहे सारी सचाई या बुराई दर्पण की तरह दिखा जाता है न हमें कोई मित्र बनाना और नही कोई दुश्मन समय की चक्र जब चलेगा तो बदल जाता है सचाई के फुल हमेशा धमकता है , मगर गलत राही दर दर भटक जाता है सोचना है ,हमें किस ओर जाना है एक तरफ शिकवा शिकायत है दुसरी तरफ प्यार की जन्रत है क्रान्तिराज कहता समाज की उथान में ही जन्रत है ! कवि-क्रान्तिराज बिहारी ( पटना ,बिहार ) दिनांक- 25-12-2023