अपने स्वार्थ में अंधे हो गये राई का पर्वत बना दिया अपने नाम के खातीर सचाई को मार दिया हस्ती के नाम से जोड कर नाम चला दुनिया की नजरो में महान हो चला कब तक चलेगी तेरी झुठी कहानियाँ उमीद पर टिकी आज भी दुनिया मन का मैल इतना ना फेक हस्ती को भी मिटाने चला तेरी क्या हस्ती है ,दुनिया जानती घमंड का पर्दा उठा इंसानियत की कमी न दुनिया में तु इतना बडा कब से हो गया जो अकाश को छुने चला तेरे ऐसे ऐसे को ही लात मारती है,दुनिया मत समझ कमजोर किसी को क्योकि चींटि भी हाथी को नहीं छोडा हमलोग तो इंसान है कम से कम इंसान के तो कद्र करो इतिहास उठा कर देख लो कौरव और कंस को अपनो ने ही तोड दिया घमंड पुरे वंश को . समय के मार से बचों सब को एक दिन आयेगा समुद्र सी गहरा जल में भी हलचल सी मचायेगा . कवि-क्रान्तिराज दिनांक03-09-23.