मिलने की उमींद है ,तुमसे इंंतजार में हम बैठे है सब्र का बांध न टुटे प्यार की काश लगायें बैठे है जी न पाऊगा तेरे विना तन्हा न रह पाऊगा याद मुझे तेरी सताती है मै तुझ विन न जी पाऊगा टुटे न कसम मेरी तुझे भी याद रहे साथ साथ जीने की कसम खाए याद रहे तम्मना यही है जब तक सांस रहेगी तब तक साथ निभाऊगा बदल जाये जमाना मै न बदल पाऊगा जीऊ तो तेरे साथ मर जाऊ तो तेरे साथ गर्भ से मै कह पाऊगा हमसाथी से मिली जज्बात कवि -क्रान्तिराज दिनांक-4/10/23