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वृंदावन धाम भाग 2

28 जुलाई 2024

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मनोरमा प्रातः काल छः बजे स्नान ध्यान पूजा अर्चना कर अपनी अपनी बाई रामरती उम्र 30 वर्ष सरल सौम्य स्वभाव ,अपने पति गोपाल उम्र 32वर्ष के साथ शांतिकुंज में ही कोठी के पीछे बने सर्वेंट क्वार्टर में रहती थी , उससे कहा," जाओ  सुलोचना बहनजी से सत्संग में आने के लिए कह दो और बता देना अब शाम चार से छह के बजाय सुबह 11बजे से दोपहर 2बजे का होगा।" ये सुनकर वह चली गई।

मनोरमा की बाई रामरती सत्संग का नया समय सुनकर सुलोचना सोफे पर बैठते हुए बोली," ठीक है रामरती वृंदावन धाम जहां सत्संग होता है मैं समय पर पहुंच जाऊंगी और सभी सतसंग से जुड़ी सभी औरतों को खबर कर दूंगी।"  ये सुनकर आश्वस्त हो चली गई।

सुलोचना की पुत्रवधु मिताली ने सुबह स्नान ध्यान पूजा अर्चना कर पहले चाय बना कर अपनी सासु मां और पिताजी को दिया उसके उपरांत टिफिन में खाना बना कर दिया और अपने पतिदेव पीयूष से बड़े नम्र स्वर में बोली," ये लीजिए आपका और पिताजी का टिफिन तैयार है , पहले नाश्ता कर लीजिए।"

ठीक साढ़े नौ बजे पीयूष अपने SBI बैंक रोहतास नगर स्थित अपने पिताजी के साथ चले गए।

मिताली सारे कार्य पूर्ण करने के सासु मां और अपने बच्चों स्तुति और संकल्प के साथ नाश्ता कर बोली," आज से मां जी बच्चों की होली की हफ्ते भर की छुट्टी हो गई।"

सुलोचना बड़े प्यार से  मिताली से बोली," बहु अभी साढ़े दस बजे मुझे 11बजे सत्संग में जाना है जो दोपहर 2 बजे तक चलेगा।"

मिताली चिंतित हो बोली," मां जी दोपहर 2बजे तो बड़ी तेज धूप होती है और चोर उचक्के भी मौके की फिराक में रहते हैं चाहे जितनी सावधानी बरतें। आप ऐसा करो कि अपनी गले की सोने की चेन उतार कर अलमारी में रख दीजिए।"

सुलोचना हैरान होते हुए बोली," अरे कुछ भी नहीं मोहल्ले भर की  औरतें गीता, संध्या, विमला, निर्मला, कावेरी, गोदावरी, कृष्णा, सभी साथ में रहतीं हैं। यहां से लगभग दस मिनट की दूरी पर वृंदावन धाम स्थित है जहां पर सतसंग होता है।" ये कहकर अपने कमरे में चली गई।

सुलोचना अपने कमरे में जाकर मैरून और पीले रंग की प्रिंटेड सिल्क साड़ी बदली और कान में भी सोने के टॉप्स के पेंच ठीक किए, गले में दो तोले की सोने की चेन अन्दर छुपा लिया। साड़ी के पल्ले को घुमा कर कंधे पर डाल लिया और ठीक 10:50 पर चप्पल पहनकर कर सत्संग के लिए आस पड़ोस की औरतों को एकत्रित कर सवा 11 बजे वृंदावन धाम पहुंच गई।

वृंदावन धाम में मनोरमा 11 बजे ही पहुंच गई थीं। अपनी प्रिय सखी सुलोचना को सभी औरतों को साथ देखकर कुछ चिंतित हो गई। मुस्कराते हुए बोलीं," हमने बहनजी खबर भिजवा दी थी आप सभी 11 बजे तक पहुंच जाएं। आप सभी पंद्रह मिनट लेट हो गई जाने का समय निश्चित 2 बजे है। क्या हम आगे बढ़ा दें?"

मनोरमा की बात सुनते ही सुलोचना ने अपनी बहु मिताली से हुई बातचीत बता दी। खीझते हुए बोलीं,"आजकल की बहुएं सास को जेवर पहनने भी नहीं देती। सब इन्हीं को सौंप दो तो बड़ी खुश रहे। अरे चोर उचक्के के डर से क्या चेन पहनना बंद कर दे। सावधान रहो! गले से साड़ी लपेट लो।"

मनोरमा मुस्कराते हुए बोली," क्या बहनजी, आजकल की बहुएं अपने आगे सास को नहीं देख सकतीं। हमारी तो आए दिन शॉपिंग करती है। हफ्ते में एक दिन सहेलियों के साथ किटी पार्टी के लिए होटल आशिर्वाद बुक कर रखा है। क्या करें? अच्छा छोड़ो अब सत्संग में होली के फाग से शुरू करते हैं।

गीता दीवार के किनारे रखा ढोल मंजिरा लेकर फर्श पर बिछी दरी पर बैठ गई और कृष्णा को मंजिरा बजाने को दिया। ढोल मंजिरा देखकर सभी औरतें भी बैठ गई। सबने जमकर होली के गीत गाए और अंत में अबीर गुलाल लगाकर एक दूसरे को होली की बधाई दी।

घड़ी में 2 बजे देखते ही सुलोचना से बड़े चिंतित स्वर में बोलीं,"बहनजी समय पर घर न पहुंचो तो सब बड़ी बेसब्री से इंतजार करते रहते हैं क्योंकि दोपहर का लंच का समय होता है और हमारे बगैर कोई खाना नहीं खाता। इसलिए अब चलना चाहिए।"

मनोरमा आखें उचकाकर कर बोलीं," बड़ी किस्मत वाली हो बहनजी जो आपको इतना सब मान देते हैं। हमारे घर पर कोई ध्यान नहीं देता। हम रसोई में बाई रामरती के साथ न लगे तो खाने को न मिले।अच्छा बहनजी आपसे और सखी सहेलियों आपसे भी नम्र निवेदन है कि कल परसों दो दिन होली है सो होली के बाद होली का उत्सव आप सभी के साथ मनाने की सोच रहे हैं।"

सुलोचना उत्साहित होकर बोलीं," बहुत बढ़िया। क्या हम अपने परिवार को भी साथ ला सकते हैं?"

मनोरमा भी उत्साहित होकर बोलीं," हम सोच ही रहे थे कि आप सभी को परिवार के साथ आमंत्रित करें किंतु इसकी व्यवस्था हम अकेले कैसे करें?"

सुलोचना बड़े नम्र स्वर में बोली," क्यों न आप अपने पतिदेव यानी भाई साहब से सलाह लें और मैं भी इनसे सलाह मशवरा करूं। आप मेरा फोन नंबर सेव कर लीजिए या अपना नंबर मेरे फोन में सेंड कर दीजिए।" ये कहकर फोन नंबर अपना सेंड कर
दिया।

सुलोचना और मनोरमा ने अपने अपने फोन में नंबर सेव कर लिया। सुलोचना ने विदा लिया और सभी सखी सहेलियों के साथ पैदल ही घर की ओर रवाना हो गई।

धीरे धीरे सभी औरतें अपना घर सामने आते ही घर के अन्दर चली गई।

गली के मोड़ पर आते ही बड़ी तेज हवा चली। भरी दोपहरी धूप भी तेज़ और उस पर गर्म हवाएं चल रही थीं। सुलोचना पसीने से लथपथ हो गई। तेज हवा के चलते ही साड़ी का पल्ला कांधे से गिर गया। जिसे वह ठीक करने लगीं।

अचानक दो बाइक सवार ने उनके गले से चेन खींची और लेकर भाग गए।

सिर्फ दस कदम पर घर की दूरी थी। दोपहरी होने के कारण सभी के घर के दरवाजे बंद थे। अचानक से चेन छिन जाने के कारण सुलोचना जी स्तब्ध हो गई। रुआंसी हो कर घर के दरवाजे पर पहुंच कर डोर बेल बजाने लगीं।

क्रमश:


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वृंदावन धाम
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ये कहानी दो सहेलियों की है जो वृंदावन धाम जहां पर सत्संग होता है वहां से जुड़ती हैं और बाद में बहुएं का जुड़ाव, कुछ मध्यम और उच्च स्तर का अंतर और आखिर में दोनों के बच्चों की शादी।
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वृंदावन धाम भाग 1

28 जुलाई 2024
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यह कहानी बनारस शहर में स्थित गोविंदपुरी में रहने वाली सुलोचना और मनोरमा दो सहेलियों की जो कॉलेज में एक साथ पढ़ती थीं। सुलोचना उम्र 55 वर्ष कद काठी साधारण, रंग सांवला, तीखे नैन नक्श, मध्यम वर्गीय परिवा

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सुलोचना के डोर बेल बजाते ही उसकी बहु मिताली ने दरवाजा खोला तो उन्हें रूआंसा देखकर उनका हाथ पकड़ कर घर के अन्दर बुलाया और ड्राइंग रूम में सोफे पर बिठा कर पानी पिलाया। पानी पीने के बाद रुंधे गले से चेन

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