आज के भौतिकवादी युग में चहुँ ओर मैं और मेरा पैकेज, मैं और मेरे परिवार में उपभोक्तावाद एवं भोगवाद का बोलबाला है, जिससे नवयुवकों में सहीiगलत, सत्यiअसत्य, नैतिकताiअनैतिकता, सदाचारiदुराचार आदि को जानने व समझने की शक्ति घटती जा रही है। ✔✔ विविधताओं को भिन्नता यानी भेद बनाकर भड़काया जा रहा है। मानवीय संवेदनाएँ बिखर न जाएँ, इसकी चिंता खाए जा रही है। ऐसे में इस पुस्तक की विषयiवस्तु लेखक के अपने अनुभवों से योग्य मार्गदर्शन, कुशल व्यक्तित्वiनिर्माण के साथiसाथ स्वार्थ से निस्स्वार्थ यानी समाज व राष्ट्र की ओर बढ़ाने का सक्षम प्रयत्न है। ✔✔ विशेष रूप से लेखक ने युवा पीढ़ी को सामने रखकर लेखन किया है। युवा पीढ़ी का वर्तमान में जागत् होना, प्रेरित होना और सही दिशा में ऊर्जावान होना अत्यावश्यक है। ✔✔ खुशहाल व्यक्ति से ही खुशहाल समाज बनता है। स्वयं प्रसन्न रहो तथा दूसरों को प्रसन्नता दो, न कि स्वयं तनाव, हिंसा, शोषण में रहो तथा दूसरों को भी तनाव और हिंसा दो। ऐसे युवाओं से व्यक्तित्व बनता है, जो समृद्ध, समर्थ एवं आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाते हैं। ✔✔ कहते हैं कि अहमियत और हैसियत का शत्रु अहं है। आप अहं छोड़कर देखिए, हैसियत बनी रहेगी और अहमियत बढ़ती जाएगी। ✔✔ प्रस्तुत पुस्तक में स्वयं के जीवन में घटित घटनाओं से प्राप्त सबक को कुशलता से सँजोया है। कुछ छोड़ने से ही कुछ प्राप्त होता है। Read more