" अरे भोलेनाथ आप कांप क्यों रहे हैं ?
और खिन्न भी लग रहे हैं "
थोड़ी देर यूं ही मौन छाया रहा l
" कुछ कहिये ना भोलेनाथ
आप की अस्वस्थता का क्या कारण है ?
अरे नारद सुबह से इन पृथ्वीवासियों ने दूध, दही ,शहद से नहला नहलाकर मुझे अस्वस्थ कर दिया l
और प्रभु खिन्नता का राज ...
नारद जिस देश की जनसंख्या एक अरब से भी ज्यादा हो भला वहां कितने के मुंह निवाला जाता होगा l
सभी नारे लगा रहे हैं जल बचाओ और यह दूध ही जल में बहा रहे हैं l
क्षमा करें प्रभु हमारे देश के लोग दुनिया के रईसों में शामिल हैं फिर भला आप क्यों चिंता करते हैं... नारद जाकर देखो झुग्गी झोपड़ियों में उनसे मिलो ..
जो पेट के लिए तन बेच रही हैं, प्लास्टिक का बोरा लिए बच्चों से जो दिन भर इन रईसों के फेकें कूडे़ में रोटी तलाश रहे हैं
प्रभु क्या करें यह रीति है अब भला भोलेनाथ पर दूध नहीं चढांएगें तो क्या वर्तमान के साथ भविष्य भी बर्बाद करना है l नारद यह तुमसे किसने कह दिया हैl मैं खिन्न हूं और स्वस्थ हूं , हार्दिक तकलीफ में भी हूं क्योंकि मेरे बच्चे भूखे हैं और दूध जल में बहाया जा रहा हैl दूध तो अमृत तुल्य है l इसे सिर माथे पर लगाएं यदि इच्छा है तो मात्र स्पर्श कराकर इसे गरीबों में बांट देंl मेरा ही नहीं हजारों-हजार आशीष मिलेंगे l और बताओ क्या कोई दिन भर नहाता है जो भी आया दिन देखा ना रात दो लोटा चढ़ा दियाl इसीलिए मैं खिन्न हूं l
नारद मुस्कुरा उठे आप की लीला आप ही जाने प्रभु
नारायण नारायण!