वन निकले सजन, मेरा सूना अंगन, छोड़ चले गए हमारे सजना|
मुझे लगी लगन, मेरा सूना अंगन, न आये मिलने को हमारे सजना||
जब याद सजन की आये, मेरा अंग- अंग दहलाये|
ना खबर पिया आये, मिलाने को जिया घबराये||1||
भटके वन-वन, करें कठिन तपन, मोह माया को तजि गए हमारे सजना|
जब हमको बताके जाते, हम हसके उन्हें भिजवाते|
हम साथ पिया चलते, ना उनको कभी सताते ||2||
ना करते तंग, चलते संग-संग, वन में रहते संग सजना |
माता-पिता को छोड़ा, समाज से नाता तोडा|
महलों से मुख को मोड़ा, वैराग्य से रिश्ता जोड़ा||
न जाते वन, न चलती कलम, न एन. एस. लिखता सच्ची रचना|
कलमकार " नीतेश शाक्य अनजबी"
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