यूँ जो बूंदे बारिश की...
यूँ जो बूंदे बारिश की-
आसमाँ से बरसती है,
चली आओ छत पर कि-
ये तुम्हे छूने को तरसतीं हैं|
जो रूठ कर आती नहीं तुम-
ये बादल चीखते गरजते है,
आखिर तुम्हारी हसीं भीगी-
काली ज़ुल्फ़ों को,
वो भी देखने को तरसते है|
इक बहाना भर है-
बादल और बूंदों का,
इधर मेरा दिल -
बारिश में मचलता है,
कि तुम आओ छत पर-
लहरा के झूमो,
देखो गगन की बारिश -
उसकी बूंदों को लब से चूमों,
मैं देखता रहूं तुम्हे-
मदहोश होने की हद तक,
ठहरो अभी कुछ और घूमो|
जैसे मोती सी बूंदे-
तुम्हारे तन से फिसलती है,
इक नशा सा होता है-
सांसे मेरी मचलती है,
देखकर अधर लाल तेरे-
धड़कन यूँ क्यों बढ़ती है?
यूँ जो बूंदे बारिश की-
आसमाँ से बरसती हैं,
चली आओ छत पर-
कि तुम्हे छूने को ये तरसती है|
:अम्बरीष चन्द्र "भारत"