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यूँ जो बूंदे बारिश की..

7 अगस्त 2022

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यूँ जो बूंदे बारिश की...


यूँ जो बूंदे बारिश की-

आसमाँ से बरसती है,

चली आओ छत पर कि-

ये तुम्हे छूने को तरसतीं  हैं|


जो रूठ कर आती नहीं तुम-

ये बादल चीखते गरजते है,

आखिर तुम्हारी हसीं भीगी-

काली ज़ुल्फ़ों को,

वो भी देखने को तरसते है|


इक बहाना भर है-

बादल और बूंदों का,

इधर मेरा दिल -

बारिश में मचलता है,

कि तुम आओ छत पर-

लहरा के झूमो,

देखो गगन की बारिश -

उसकी बूंदों को लब से चूमों,

मैं देखता रहूं तुम्हे-

मदहोश होने की हद तक,

ठहरो अभी कुछ और घूमो|


जैसे मोती सी बूंदे-

तुम्हारे तन से फिसलती है,

इक नशा सा होता है-

सांसे मेरी मचलती है,

देखकर अधर लाल तेरे-

धड़कन यूँ क्यों  बढ़ती है?


यूँ जो बूंदे बारिश की-

आसमाँ से बरसती हैं,

चली आओ छत पर-

कि तुम्हे छूने को ये तरसती है|


      :अम्बरीष चन्द्र  "भारत"
 

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