मन में उमंगें बहुत हैं, मंजिल को पाने की,
पर ना जाने क्यूँ , इक फिकर है रस्में निभाने की.
सोचता हूं निकल जाऊँ होकर रूसवा इस जमाने से,
फिर ना जाने क्यूँ डरने लगता हूँ मैं खुद को आजमाने से. - अमितR. शर्मा
30 अक्टूबर 2015
मन में उमंगें बहुत हैं, मंजिल को पाने की,
पर ना जाने क्यूँ , इक फिकर है रस्में निभाने की.
सोचता हूं निकल जाऊँ होकर रूसवा इस जमाने से,
फिर ना जाने क्यूँ डरने लगता हूँ मैं खुद को आजमाने से. - अमितR. शर्मा
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मेरा नाम अमित कुमार शर्मा है, में मध्यप्रदेश के मोरेना ज़िले में रहता हूँ , हिंदी कवितायेँ और शायरी लिखना मेरा शौक है, इसके अलावा में गाता भी हूँ, मुझे संगीत और चित्रकला बहुत पसंद है.D
मन में उमंगें बहुत हैं, मंजिल को पाने की.............बहुत खूब, अमित जी !
30 अक्टूबर 2015