Love poems and shayari
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मन में उमंगें बहुत हैं, मंजिल को पाने की, पर ना जाने क्यूँ , इक फिकर है रस्में निभाने की. सोचता हूं निकल जाऊँ होकर रूसवा इस जमाने से, फिर ना जाने क्यूँ डरने लगता हूँ मैं खुद को आजमाने से. - अमितR. शर्मा