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मातृत्व और पितृत्व

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मातृत्व वह अनुभव है जो एक महिला तब अनुभव करती है जब वह माँ बनती है। इसका भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक पहलू व्यापक होता है। पितृत्व वह अनुभव है जो एक पुरुष तब अनुभव करता है जब वह पिता बनता है। पितृत्व में भी बच्चे के प्रति देखभाल, स्नेह और जिम्मेदारी शामिल होती है। हालाँकि, पारंपरिक रूप से पिता को परिवार का संरक्षक और मार्गदर्शक माना गया है, जो सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करता है।


मातृत्व और पितृत्व संसार के सबसे पवित्र, गहरे भावनात्मक और हृदयस्पर्शी अनुभवों में से एक हैं। यह रिश्ता केवल एक शारीरिक प्रक्रिया की जिम्मेदारियों तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन का एक ऐसा अध्याय है जिस

माता पिता के प्यार का कोई मूल्य नहीं होता,इनकी सेवा करने से बड़ा कोई तीर्थ स्थल नहीं होता,जिसके होने से मैं खुद को मुकम्मल मानती हूं,मेरा पहला दूसरा सारा प्यार मेरे माता पिता को ही मानती हूं।माता-पिता

माँ की ममता में बसी है प्यार की मिठास, निस्वार्थ, अनंत, जैसे सुबह की पहली उजास। गोद में उसकी मिलता सारा संसार, आँचल में छुपा लेती, हर दर्द और हर हार। पिता की बांहों में होता सुरक्षा का एहसास, दृढ़ता,

श्राद्ध मास आया अब, करते पूर्वजों को याद। दुआ बड़ो की रहे , करते सदा  हम  फरियाद। हम उनके वंशज हैं, तस्वीरों में उन्हें सजाते, देख तस्वीर पूर्वजों की, याद आए बुनियाद।। श्रद्धा सुमन अर्पित कर

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