"यादों के झरोखों से"समय आकर निकल जाता है और हम नए कलेवर में प्रतिदिन न जाने कितने रंगों मे खुद को रंगा हुआ पाते हैं। किसने रंगा कब रंगा और क्यों रंगा यह तो तब पता चलता है जब या तो आईना हमारे पास आता है या हम खुद आईने के पास जाते हैं। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ जीवन रथ मे