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“डोर पकड़े हाथ”

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“डोर पकड़े हाथ” अरमान बेईमान हम ठहरे नादान बांवरी भीड़ है नदी में नीर है घहरा गई बिहान छोड़ गई निशान जर्जरित नाव है खड़े सैकड़ों पाँव है दाँव दाँव घाव है उडी पतंग कटी पतंग डोर पकड़े हाथ है दिखे अपना गाँव है॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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