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“गीत” ऋतु बसंती रूठ कर जाने लगी

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छंद- आनंदवर्धक (मापनीयुक्त) मापनी- २१२२ २१२२ २१२“गीत”ऋतु बसंती रूठ कर जाने लगी कंठ कोयल राग बिखराने लगीदेख री किसका बुलावा आ गया छाँव भी तप आग बरसाने लगी मोह लेती थी छलक छवि छाँव की लुप्त होती जा रही प्रति गाँव कीगा रहे थे गीत गुंजन सावनी अब कहाँ रंगत दिवाली ठाँव की॥हो च

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