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“गीतिका” अजब आलसी हो जगाते कहाँ॥

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मापनी- १२२ १२२ १२२ १२, समांत-आते, पदांत- कहाँ“गीतिका”बजाते मुरलिया सुनाते कहाँ निभाते कहाँ हो बताते कहाँ सलोने मुरारी गज़ब रागिनी गिराते कहाँ हो उठाते कहाँ॥ कभी तो कन्हाई समा बांधते कहाँ सम लगाते बिठाते कहाँ॥ सुनो मत जगाओ पहर रात कोभरोषा सुबह की दिलाते कहाँ॥भरे नींद नयना न खुलने दिया अजब आलसी हो जगात

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