मापनी- १२२ १२२ १२२ १२, समांत-आते, पदांत- कहाँ
“गीतिका”
बजाते मुरलिया सुनाते कहाँ
निभाते कहाँ हो बताते कहाँ
सलोने मुरारी गज़ब रागिनी
गिराते कहाँ हो उठाते कहाँ॥
कभी तो कन्हाई समा बांधते
कहाँ सम लगाते बिठाते कहाँ॥
सुनो मत जगाओ पहर रात को
भरोषा सुबह की दिलाते कहाँ॥
भरे नींद नयना न खुलने दिया
अजब आलसी हो जगाते कहाँ॥
कहाँ तक गिनाऊँ गुनाहे गिला
क्षमा दो क्षमा को छुपाते कहाँ॥
तरसता है गौतम सुना दो तनिक
बजा दो मधुर राग जाते कहाँ॥
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी