“गीतिका”रात की यह कालिमा प्रहरी नहीं दिन उजाले में डगर ठहरी नहींआज वो भी छुप गए सुबहा हुई जो जगाते समय को पहरी नहीं॥ रोशनी है ले उड़ी इस रात को तब जगाती पकड़ दोपहरी नहीं॥चाहतें उठ कर बुलाती शाम कोगीत स्वर को समझना तहरी नहीं॥ताल जाती बहक बस इक भूल परज़ोर ठुमका कदम कद महरी नही