“मुक्तक”होता रहा उत्थान जगत का ऐसे वैसे। मानवता को राह मिली पग जैसे तैसे। देख जी रहा वक्त शख्त सुरताल लगाकर- सुनो भी अपने गीत मीत मन कैसे कैसे॥-१ अभ्युदय जिया मान खान पर पान मचलता। होगी लाल प्रभात मनुज सूरा तन तपता। इतराए दिन रात सिरात भोर मन मैना- मिला कदम की ताल