04 सन्तोष
चार एकम चार, सन्तोष जीवन का सार।
चार दूनी आठ, सुख की इकलौती गांठ ।।
चार तिया बारह, भूल जाएं दुःख सारा।
चार चौक सोलह, भरो पूण्य से झोला ।।
चार पंजे बीस, मत करो किसी से रीस।
चार छंग चौबीस, उठा रहेगा सदा यह शीश ।।
चार सत्ते अट्ठाईस, ज़रूरत पर हो फ़रमाइश ।
चार अट्ठे बत्तीस, मिट जाए ग़मों की टीस।।
चार नामे छत्तीस, ख़ुशियों की ये ही फ़ीस ।
चार दहाई चालीस, संतुष्ट हो जीवन, हे ईश।।