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मुक्ति

11 जुलाई 2017

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नेपथ्य से आवाज़े आ रही थी , "चुप चाप बैठी रही गुड़िया ग़ुम सुम सी अपने कानों को बन्द किये हुए डरी हुई , सहमी हुई सी बस यूँही ।" गुड़ियां चारो तरफ देख रही है , यह कौन है आस पास कितना शोर हो रहा है । और श्रोताओ की तरफ़ देख कहती है , " आप सब भी देख रहें हैं न , सुन रहे है न कितना शोर हो रहा है पापा कह रहे बैठकर पढ़ाई करो , माँ कह रही जब देखो पढ़ती रहती हो घर के काम में हाथ बंटाना तो मानो सीखा ही नहीं , अब किसकी बात मानूं आप ही बताएं । अभी तो लग रहा माँ की मदद करनी ही पड़ेगी पढ़ाई तो हो न पायेगी , देखिये न खिड़की के बाहर एक तरफ से जुलूस आ रहा , एक तरफ बारात का शोरगुल , और घर में दादी टी वी देख रही है वॉल्यूम बढ़ाकर । अब मैं छोटी सी जान , छोटे छोटे कान हैं मेरे कितनी आवाज़े ..... " नेपथ्य से आवाज़े , " गुड़िया बेचारी काम के बोज़ की मारी , किस और जाये , सोच रही पिता की राज दुलारी ।" गुड़ियां अब भी वैसे ही बैठी हुई है । नाटक देख रहे श्रोताओं की तऱफ देख फिर कहती है , " आप सब तो बड़े हो न समझदार हो न , बच्चे जब शोर करें तो हमे डाँट पड़ जाती है और चुप रहने को कहा जाता है , पर इस तरह से चारों और का शोर ....!" कान अब भी बन्द है ,शोर अब भी हो रहा है , गुड़ियां खुद को आवाज़ों से मुक्त होने के पल का इंतज़ार कर रही है ।

kalpana bhatt की अन्य किताबें

रेणु

रेणु

बहुत अच्छा लिखा आपने कल्पना जी --

12 जुलाई 2017

kalpana bhatt

kalpana bhatt

Dhanyawad Manoj ji

12 जुलाई 2017

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

बहुत ही रोचक लघु कथा , बहुत अच्छी

12 जुलाई 2017

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एहसास

13 अक्टूबर 2016
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उमड़ते घुमड़तेरहे एहसासउन लहरों की तरहआकाश से सागर तकफ़ासले तय करते गयेहर हवा के झोंकेने पत्तों की उड़ाया कभीटकराये पेड़ सेचट्टानों सेबहे झरने की तरह कभीतिनके की तरह तैरते रहेपानी में अपने अस्तित्वके लिए लड़ते रहेउन लहरों से ।कभी हवा से उड़ने लगेएक पतंग बनखुले नभ मेंअपने ख्वाबों कोउंचाईयों पर पहुँचाने के ल

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माटी की बन्नो

14 अक्टूबर 2016
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-" माटी की बन्नो""अम्मा, तुम बहुत गन्दी हो , रोज़ तड़के ही उठा देती हो फिर पढ़ने बिठा देती हो| घर के कार्यों में भी तुम मुझे लगा देती हो| पता है! मेरी संगिनियाँ कहतीं हैं उनकी माँ तो घर का सारा काम करतीं हैं और वह कुछ नहीं करतीं| बस एक तुम ही हो जो मुझे प्यार नहीं करतीं | पापा भी घर पर नहीं रहते, जब दे

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बागबानी

17 अक्टूबर 2016
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बागबानी माथुर साहब को बागबानी का बहुत शौक था । घर का आँगन बहुत बड़ा था सो उन्होंने विविध प्रकार के पेड़ पौधे लगाये थे।बच्चों की तरह वे उनकी देखभाल करते ।अपने बेटे से भी कई बार कहते ," बेटा ,बागबानी करना सीख लो आगे काम आएगा ।"पर बेटा उनका मज़ाक उड़ाता।बेटा एक कंपनी में नौकरी करता था पर परिवार की ज़िम्मेदा

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वृद्ध पत्ते

20 अक्टूबर 2016
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झड़े हुए पत्तो को देखकरबोले युगल प्रेमीदेखो कैसे उड़ रहे यह पत्ते ।सूख गयें यह इतने अब तोचुभ रहें पीले पड़ चुके यह पत्ते ।फड़ फड़ फड़ फड़हवा संग उड़ते यह पत्तेमुरझाये , यह अब कचरा हैं ।पास खड़ा एक वृद्ध बोलाहाँ यह पत्ते अब बेकार हो गएपर क्या तुम्हें पत्तो से प्यार हुआ कभी । गर्मी में शीतलता देते हरे हरे कोमल

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दर्द

20 अक्टूबर 2016
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दर्द को जानोउसको पहचानोदर्द एहसासदर्द है प्यार ।हँसकर जो झेलेपार हो जायेरोये कोई तो उसे खा जाये ।दर्द है सायादर्द ही मायाएहसास हो अगर तो बनती है कविता ।दर्द ही कली कांटे भी दर्द है दर्द न हो तो ज़िन्दगी बेदर्द है ।

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राजनीति

3 नवम्बर 2016
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नेता जरूरी नहींमंच जरूरी नही भीड़ जरुरी नही यह तो हर जगह है ।हर इंसान मेंहर मौके परहर महफ़िल मेंये हर जगह है ।श्रृंगार की तरहसाँसों में समां गयीहर शक्श की पहचानबनी राजनीति है

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नाराजगी

14 नवम्बर 2016
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नाराज़गीपिताजी माँ से काफी समय से नाराज़ थे । उन्हें लगता था उनकी पत्नी का चाल चलन सही न था । हाँ यूँ कह सकते है थोड़ा शक़ था उनपर । और माँ थी जो अपने मस्त अंदाज़ में जीवन बिताती थी। उन्होंने कुछ समय तक तो प्रयास किया की नाराज़गी दूर हो जाये पर जब कोई नतीजा नहीं निकला तो वे चुप हो गयीं । उनका क्रम फिर भी

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माला

14 नवम्बर 2016
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मालाछल, कपट ,धोखे के मोतियोंकी माला ही पहना दो ।इसे पहनकर एहसास ही कर लूँगी ।अपने दिल के करीब भी रख लूँगी ।सज जाऊँगी पूर्णतः ।दर्द शायद कम हो जाये तुम्हारा जीत का जश्न फिर तुम मना लेना ।आऊँगी संग तुम्हारेउसी माला को पहन रहूँगी साथ तब भी ।

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ख़ाली कनस्तर (लघुकथा)

29 नवम्बर 2016
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गंगा अपने घर के हालातों से परेशान थी । उसका पति मज़दूरी करता था। पहले कमाई अच्छी होती थी सो गंगा घर में ही रहती थी । पर अब हालात बदल गए थे । एक वक़्त की रोटी भी कई बार नसीब नहीं होती थी । गंगा ने अपने पति से कहा , " सुनो जी ऐसे तो कैसे चलेगा ? अपने साथ अपना मुन्ना भी भूखा रहता है । ""हां गंगा , क्या

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अधिकार

29 नवम्बर 2016
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रोज़ की तरह आज भी अलीशा ने सुबह की चाय बनाई । रोज़ ही तरह उसने खाना बनाया और राकेश ऑफिस चला गया । आज उसका मन नहीं लग रहा था ऑफिस में । घर में भी अलीशा से ज्यादा बात नहीं हुई थी । आज उनकी शादी की सालगिरह थी । हमेंशा अलीशा ठीक रात के बारह बजे बधाई देती थी । आज ऐसा कुछ नहीं हुआ , न ही उसने रात को बधाई दी

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शिक्षा प्रणाली

2 दिसम्बर 2016
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कल समाचार में जब यह सुना कि बहुत सारे प्रदेशों में शिक्षा स्तर बिगड़ा हुआ है कई जगह एक शिक्षक से स्कूल चल रहे तो कई जगह पर शिक्षक हैं हीं नहीं । ये सुनकर मुझे एक वाक्या याद आया आप सब से साझा कर रही हूँ ।मैं एक प्राइवेट स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाती थी । हमारा स्कूल जिस संकुल में आता था वहां जब शिक्षिकागण

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कविताओं का सफर ( अतीत के पन्नों से )

4 दिसम्बर 2016
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माँ बताती हैं मैंने अपनी पहली कविता एक प्लेन क्रेश पर लिखी थी । वो अंग्रेजी में थी ,सन् 1972 शायद था जब एक प्लैन क्रैश हुआ था , सारे यात्री मारे गए थे सिर्फ एक छोटा बच्चा जीवित रहा था । उसके बाद कॉपियों में ऐसे ही कुछ पंक्तियाँ लिखा करती थी । माँ को पसन्द तो था मेरा लिखना पर कभी कभी डाँट भी देती थी

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शक्ति पूजा

4 दिसम्बर 2016
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बाँझ घर की सारी ही महिलायें सजी धजी पूजन की तैयारी कर रही थीं । गीत गाये जा रहे थे । इंतज़ार हो रहा था पण्डितजी का ।बाबूजी ने अपने बड़े बेटे से कहा , " पण्डितजी को फ़ोन करके पूछो तो सही कितनी देर में आ रहे हैं ? "" जी बाबूजी ।" बेटे ने बाबूजी को उत्तर दिया ।माँ ने बड़ी बहू को सम्बोधित होते हुए कहा , " द

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एक सपना

6 दिसम्बर 2016
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सीमा उपन्यास पढ़ रही थी । उस उपन्यास की तारिका एक डॉक्टर थी , उसीके संघर्ष की कहानी थी । पढ़ते पढ़ते सीमा को ख्याल ही नहीं रहा वो कब अपने बचपन में खो गयी ।"माँ ,पासा (फीछे) फिरो । " "लो आ गयी मेरी डॉक्टर बिटिया । अब माँ का बुख़ार फुर्र हो जायेगा । "" माँ , सुई लगा दूं पहले । " " अरे नहीं , बिट्टू दर्द ह

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Words and Literature

19 दिसम्बर 2016
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Words and LiteratureWords - make literature Literature has wordsDifferent languagesIn vivid patternsMonotous literature Ever found !!Which language good ,better or the best Is comparision worth !Barriers are challenging Many a times essential for growth and development .Literature in one language Go

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स्वच्छ धरा

20 दिसम्बर 2016
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हैं हरे भरे पेड़हरियाली फिर भी नहींहैं लोग बहुत सारेपर इंसान .....!जोत रहा मानव पर्यावरणके लिये खड़ा हुआ है ।स्वछता लाने के लिए आतुर पर अंतर्मनक्या स्वच्छ .....तो क्या स्वच्छ हो पायेगी धरा कभी अस्वच्छ मन से......

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गधा चला व्यापार करने

22 दिसम्बर 2016
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गधा बेचारा सामान को ढोकरथककर बहुत , एक दिन बोलाइस हम्माली से मुक्त होना हैअब तो बस व्यापार करना है कही अपने दोस्त से मन की बातदोस्त बोला न यूँ हो उदास है एक पहचान का बन्दाजो है माहिर करता है धंधाचलेंगे कल हम करने बात उससेसीखेंगे व्यापार के ढंग उससे पहुंचे दोनों उनके पासदेखी उनमें जब सीखने की प्यासबो

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मैं की ट्रॉफी

24 दिसम्बर 2016
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मुन्ना स्कूल से अपने दोस्तों को घर ले गया । दरअसल वो अपने दोस्तों को कुछ दिखाना चाह रहा था । मुन्ना को विविध प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का बहुत शौख था । जहाँ में प्रतियोगिता होती झट से उसमें अपना नाम दर्ज करवा लेता । और स्कूल में अपने गुण गान करता । आज उसका मन था कि वह अपने दोस्तों को उसके जीते ह

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चहचहाती चिड़िया

13 जनवरी 2017
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आई है बेटी अपने घरकुछ दिनों की मेहमान बन कर ।जिस घर में हुई पैदापढ़ी लिखी बड़ी हुई चहचहाती रही है अपनी चिड़िया की बोली से कर गयी पराया अपना अँगना एक दिन ।ढेरों खुशियाँ मिले उसकी उड़ान को सही आसमान मिले ।बेजान घर को दे जाती हैसाँसे फिर से फ़िज़ाओं में खुश्बू फ़ैलाती हुईघर के हर कोने को कर देती है ज़िन्दाचिड़ि

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स्वतन्त्रता

19 जनवरी 2017
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स्वतंत्रता ! पढ़कर सबसे पहले अपने देश की स्वतंत्रता ज़हन में आई ।जो भी कुछ व्यक्त कर रहीं हूँ , ये मेरा निजी मत है कृपया अन्यथा न लीजियेगा ।स्वतंत्रता को मैं अलग अलग दृष्टिकोण से देखती हूँ1 व्यक्तिगत2 पारिवारिक3 सामाजिक4 देश5 सर्व व्यापीहम मानव सामाजिक प्राणी है । एक एक व्यक्ति समाज का अभिज्ञन अंग है

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बेटी के नाम ( एक पत्र)

25 जनवरी 2017
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प्रिय बिट्टूआज तुम्हें अपने घर गये हुए करीब छः महीने हो गये हैं , इस बिच एक पल भी ऐसा नहीं गुज़रा की जिसमें तुम्हारी याद न आयी हो । पर दुनिया का दस्तूर है न बेटी पराया धन होती है , सो तुमको तुम्हारे घर भेजना तो था ही । बिट्टू आज तुमने जब कहा , "माँ सब कहते कि आप ऑनलाइन रहती हो दिन भर तो बुरा लगता है

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मेरे भीतर की नदी

2 जुलाई 2017
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कल कल बहती है नदी मेरे भीतर भी कहीं सूर्य की तपिश में गर्म होती है ऊपरी सतहचाँदनी रातों में चमक जाती है श्वेत तारों को आग़ोश में लिए हुएसावन में हरित होती मिट्टी सिमट जाती हैं मुझमें कभी फिसलती रेत कभी जम जाती हैपर बहता है जल प्रवाह निरंतर कभी ऊचें पर्वतों से कभी निचली सतह पर अपनी गति से ज़मीन पर से द

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खेल खिलौने

3 जुलाई 2017
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रिश्तों की बिसात पर खेली जाती है शतरंज क्यों मन आया कह दिया अपना जब जी चाहा दूर किया क्यों खेल खिलौने बने हैं रिश्तेरिश्तों की नहीं होती अहमियत क्यों ढोल पिट रहे अपनेपन का खुद को महान समझते क्यों रिश्तों की आड़ में कितने घर परिवार है टूटते क्यों सत्य है प्रेम नहीं होता हैं कहीं भीप्रेम का नाटक करते ह

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टुटा दिल

3 जुलाई 2017
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टूटे दिल को तोडा है जो शुक्रिया हुज़ूर अच्छा ही कियाभ्रमित एहसासों को तोडा है जोशुक्रिया हुज़ूर अच्छा ही किया अपने पन से मारा है जो शुक्रिया हुज़ूर अच्छा ही किया समझा दिया न होता कोई अपना शुक्रिया हुज़ूर अच्छा ही किया ।

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कलम (हाइकू)

7 जुलाई 2017
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1उठी कलम आज़ादी की ख़ातिरतलवार सी ।2 पहचान हैकलम लेखक की लेखनी बोले ।3 तलवार थी कलम मानी जाती आज तो नहीं ।4 पैसा बोलताकलम की जगह ख़बर भले ।5लेखनी बोले लेखक जो सोचतादोनों अलग ।6 गवाह बनेलेखनी संस्कॄति सजग रहो 7 सो गयी है क्याआत्मा लेखकों की लेखनी पूछे ।8 कलम लिखेलेखक की लेखनी पढ़े पाठक ।9 लेखनी बोले पा

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मुक्ति

11 जुलाई 2017
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नेपथ्य से आवाज़े आ रही थी , "चुप चाप बैठी रही गुड़िया ग़ुम सुम सी अपने कानों को बन्द किये हुए डरी हुई , सहमी हुई सी बस यूँही ।"गुड़ियां चारो तरफ देख रही है , यह कौन है आस पास कितना शोर हो रहा है । और श्रोताओ की तरफ़ देख कहती है , " आप सब भी देख रहें हैं न , सुन रहे है न कितना शोर हो रहा है पापा कह रहे बै

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डॉ रेखा (कहानी)

14 जुलाई 2017
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"ये कहाँ जा रही हो अम्मी ?" पड़ोस वाली महिला ने पूछा "अरे वो अपनी मधु है न उसके घर से खबर आयी है , उसके पेट में दर्द हो रहा है , पेट से है न वो , पिछला जापा भी मैंने किया था , इस बार भी ......." बूढ़ी अम्मा ने हंस कर उत्तर दिया ।" हे भगवान किस युग में जीते है ये इस मधु के घर वाले , दुनिया भर के अस्पता

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Satisfied are you

17 जुलाई 2017
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So You say Satisfied are you Need nothing at allFrom your ones And from out .So say you Satisfied are you With all you have Or not you have So say you Satisfied are you Full are you with The love and its fragrance So then ..I walk away You say From the path you walk .

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My lady

18 जुलाई 2017
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"Look at this boy he wants to get married with a lady having two kids , How dare he wishes to do this ? What would people say ? Oh God ! " Somesh's mother nearly screamed saying this .Somesh's father who knew about his son's love looked at his wife and calmly said ," I am least bothered ." She was

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सोमेश्वर मन्दिर (संस्मरण)

24 जुलाई 2017
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सन १९८२ , बी वाय के कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स, शरणपुर रोड, नाशिक , यह उनदिनों की बात है जब मैं इस कॉलेज में पढ़ती थी |हमारी कॉलेज के पैरेलल दो सड़के जाती थी, एक त्रम्बकेश्वर रोड, और दूसरी गंगापुर रोड , और इन दोनों के बीच पड़ता है हमारा कॉलेज रोड| हमारे कॉलेज से एक रास्ता कट जाता है जो गंगापुर रोड की तरफ जाता है

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एकांकी जीवन

11 अगस्त 2017
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विमल अपने कमरे में इधर से उधर और उधर से इधर घूम रहा था । गर्मी ने तो जैसे मार ही दिया है मन ही मन बुदबुदाया । इस गर्मी ने तो कहीं का नहीं छोड़ा । कल ही तो ' गीतांजलि ' पढ़कर खत्म करी , सोचा था कल लाइब्रेरी जाकर कोई दूसरी किताब ले आऊंगा , पर ये गर्मी जाने कब का बेर ले रही है । और ऊपर से लाइट को भी अभी

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ग़ज़ल (2)

25 सितम्बर 2017
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आओगे जब भी तुम मेरे ख्वाबों में उन लम्हों को रख लूंगी मैं यादों में और नहीं कुछ चाहूँ तुमसे मेरी जां दम टूटे मेरा बस तेरी बाँहों में फूलों जैसा जीवन मेरा गुलशन में यह सच है घिरा हुआ है काँटों में तुमको मैं रूदाद सुनाऊँ क्या अपनी मेरा हर लम्हा बीता है आ

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खूबसूरत थी वह

24 दिसम्बर 2017
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खूबसूरत थी वह सर से पैर तक नहाई हुई थी दूध से ,उबटन से देखते रहते थे लोग आने जाने वाले कसकते थे पाने को उसको घूमते रहते थे आसपास यूँही ।खूबसूरत हसीन चेहरा ऊपर से कमसीन जवानी गहरी आँखे ,चाल मतवाली मीठी गोली सी बोली यका यक सूख गयी वहसूखी टहनी सी टूट गयी वहपिघल गयी थी वह प्यार में निगल लिया उसको समन्द

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काले बादलों से रौशनी

23 अप्रैल 2018
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सड़क पर बहुत भीड़ थी। बहुत सारी गाड़ियों से चर्र चर्र आवाज़े आ रही थी। लग रहा था कुछ अन्होनी हुई हो। पर क्या! जो हुआ था वो तो चक्रव्यू से घिरा हुआ था। एक लड़की सड़क पर बदहवास सी , फ़टे हुए कपड़ों में , लहूलुहान हालत में थी। उसकी हालत देखकर किसीने कहा ," देखो तो लग रहा है जैसे यह बालात्कार का शिकार हुई है।"

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खो गयी हूँ।

30 अप्रैल 2018
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आँखों में खोकर देखाख्यालों में खोकर देखाअम्बर में देखा धरा पर देखासूर्य में देखा चाँद में देखा समन्दर की गहराई न मिली कहीं ओर सिवाय उनकी गहरी आँखों में सो डूब गयी हूँ न अब तुम पुकारो मुझकोकि खो गई हूँ।खो गयी हूँअपने ही ख्यालों मेंउनकी बाँहों में उनके साथ बिताये पलों में क्यों पुकारते हो तुमयूँही अपन

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घमण्ड

25 मई 2018
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काली और सुनहरी कलम अपने डिब्बे से बाहर आ चुकी थी। पास की दवात की शीशी रही हुई थी। कलम ने शीशी को देखा और इठला कर बोली,"देखो मैं कितनी सुन्दर हूँ, मेरा आकार,मेरा रंग-रूप... और तुम... तुम्हारा न तो कोई ढंग का आकार है और न ही तुम मेरी जैसी खूबसूरत ही हो!"दवात ने मानो अनसुनी कर दिया था। वह कुछ न बोली।पर

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तूफ़ान

4 जुलाई 2018
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तुम्हारी लेहरो से करनी हैं बातेंसुनो न रुक जाओ कुछ देर यूँहीपर नहीं यह सही न होगाबहा ले जायेगी यह दुनिया सारीहो गहरे तुम समुद्र जो है जाने कितना कुछ समाये हुए है अंदर कुछ यहाँ भी दिल में पर तुम सी लहरें नही होती है करो न बातें जैसे मैं करती हूँ किनारे बैठी तुमको देखती हूँअनगिनित प्रश्नों के उत्तर मि

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Arms and waves

5 जुलाई 2018
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Churn them in your arms As the curd milk Butter, the extract Very healthy to sayThe relations need your strength Your force of churning May change the thoughts But not in excess you do so Tell me, is it that the relationsCome to you to know themselvesMerged in you And you with your full strength Cru

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लघुकथा में कालदोष और काल खण्ड में भेद

11 अक्टूबर 2018
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डॉ सतीशराज पुष्करणा जी ने अपने लघुकथा संग्रह 'बदलती हवा के साथ' अयन प्रकाशन , नयी दिल्ली में अपने पाठकों के लिए दो बातें में विस्तार से काल दोष और काल खण्ड की चर्चा की है। उनके लिखित को यहाँ साझा कर रही हूँ, "कुछ लोग लघुकथा में 'कालदोष' की चर्चा अक्सर घटना के माध्यम आये अंतराल को लेकर करते रहे हैं।

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लघुकथा की रचना प्रक्रीया

7 दिसम्बर 2018
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विषय आधारित लघुकथाएँ इनदिनों सोशल मीडिया में एक प्रचलन आम हो चला है, विविध ग्रुपस में विषय दिए जाते हैं, या कोई चित्र जिसपर एक निश्चित समय के भीतर एक लघुकथा लिखने को कहा जाता है, कई ग्रुप तो प्रत्येक माह के पहली तारीख को १० विषय दे देते हैं और एक माह के भीतर १० लघुकथाओं को लिखने के लिए प्रेरित किया

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