प्रिय बिट्टू
आज तुम्हें अपने घर गये हुए करीब छः महीने हो गये हैं , इस बिच एक पल भी ऐसा नहीं गुज़रा की जिसमें तुम्हारी याद न आयी हो । पर दुनिया का दस्तूर है न बेटी पराया धन होती है , सो तुमको तुम्हारे घर भेजना तो था ही । बिट्टू आज तुमने जब कहा , "माँ सब कहते कि आप ऑनलाइन रहती हो दिन भर तो बुरा लगता है । " हाँ बेटा सच में ये बुरा ही है । बेगानों में अपनों की ख़ोज शायद यही गलती है न मेरी । आज मेरे मन को ठेस पहुंची , मुझे लग रहा था कि कम से कम मेरे बच्चे मुझे समझेंगे , पर सच कहती है दुनिया जिसकी एक बार किस्मत बिगड़ी वो कभी नहीं फल पाता ।
बिट्टू तुमसे कुछ भी छुपा हुआ नहीं सब देखा है , सब जानती हो , फिर भी ये शिकायत ! खैर कोई बात नहीं इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं पर मैं कुछ पूछना चाहती हूँ जवाब दोगी ?
इतने सालों से घर और नौकरी और तुम्हारे नाना नानी के घर आना जाना , इसके अलावा कौनसी जिंदगी जी है ? तुम्हारे पापा को मेरा किसी से दोस्ती करना भी गंवारा न था , क्या मैं इंसान नहीं ? क्या मेरा कोई मन नहीं , तुम बच्चों को कभी नहीं रोका मैंने क्योकी तुम्हारी उम्र थी हंसने खेलने की । जितना भी बन सका किया । पर बेटा तुम्हारे मन में कभी ये आया कि तुम्हारी माँ कितना अकेलापन मेहसूस करती है । शायद कभी ध्यान भी नही गया होगा । शायद नहीं यह सच ही है किसीने नहीं समझा ।
मुझे लग रहा था कि तुम समझदार हो ,समझोगी पर अफ़सोस ऐसा नहीं हुआ ।
ईश्वर तुम्हे सदा खुश रखे मेरी बच्ची ।
तुम्हारी माँ