आज के ही दिन रात के बारह बजे थे । अचानक से दिल्ली ,मुम्बई नागपुर में फोन की टर्न टर्न की घण्टी बज उठी और सुनने वाले के मुह से शब्द ही नही निकल रहे थे । सब कुछ मौन था , राजभवन , संसद भवन, राष्ट्रपति भवन सब कुछ मौन हो गया । सब कसमकश में थे ऐसा लग रहा था कि शायद कोई बड़ा हादसा हुआ था।
यह हादसा कोई आपदा से कम नही था । कोई हमें छोड़कर चला गया था । करोड़ो आँखों में आँसुओ का सैलाब उमड़ पड़ा । किसी को यकीन ही नही हो रहा था कि आज हमसे हमारा विधाता बिछड़ गया । मुम्बई की सड़कों पर भीड़ का सैलाब उमड़ पड़ा । पैर रखने की भी जगह नहीं बची थी । क्योंकि पार्थिव शरीर मुम्बई लाया गया था और मुम्बई में ही अंतिम संस्कार किया जाना था । देशभर से लोग मुंबई पहुंचे उस महान संत की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए । कहते है कि उस दिन मुम्बई जाने वाली हर ट्रैन लोगो से भर गई थी । अरब सागर वाली मुम्बई आज जन सागर से भर गई ।
कौन था यह शख्स जिसके अंतिम दर्शन की लालसा लिए जन सैलाब रोते बिलखते मुम्बई पहुँच रहा था । बुजुर्ग महिलाएं बच्चों की तरह छाती पीटकर रो रहे थे ।
अरब सागर के किनारे पर जब चन्दन की चिता जलने लगी तो हर व्यक्ति की आँख छलक पड़ी । सागर की लहर उठती और किनारे तक आकर लौट जाती शायद वो भी आज हार चुकी थी ।
कौन था वो शख्स जिसके लिए करोड़ो दिल रो रहें थे, कौन था वो जिसने मैले हाथों में थमा दी थी कलम नया इतिहास लिखने के लिए , होंठो पर सजा दिए थे तराने । सीखा दिया था आत्म सम्मान, स्वाभिमान । गुलामी की जंजीरे तोड़ने का दिया मन्त्र ।
कौनसी आग थी जो वो लगा कर चला गया था , भूखे नंगे बदनो को ढकने के संघर्ष की आग , असमानता से समानता के पथ पर चलने के आग , मनु स्मृति के धू धुं कर जलने की आग । जिन्होंने हाथ में कलम थमाई, जीने का महत्व समझाया , राष्ट्र प्रेम का भाव दिया , किसान, खेतिहर, मजदूरों का मसीहा, आधुनिक भारत का निर्माता जिसने लोकतंत्र का बीजारोपण किया था, जिसने हर नागरिक को समानता और न्याय का हक़ दिया था , वोट देने का अधिकार देकर देश का मालिक बन दिया था । भारतीय संस्कृति में तुच्छ कही जाने वाली नारी जिसके लिए हिन्दू कोड बिल का सहारा देने चाहा , संविधान में हक़ आरक्षित किए वो आज लाखों की तादात में श्मशान भूमि में थी । सड़ी गली परम्पराओं में महिलाओं को अंतिम संस्कार में जाने से मना था, आज लाखो बेटियां अंतिम दर्शन के लिए श्मशान में जमा थी । 22 प्रतिज्ञाएँ अभी तो आसमान में गूँज रही थी। महान अर्थशास्त्री , युग पुरुष ,पत्रकार, भारत के संविधान निर्माता ,प्रज्ञा सूर्य, कल्प पुरुष चला गया था । ऐसा लग रहा था मानों सब कुछ सुना हो गया था जिस प्रकार बेटी के विदा होने के बाद बाप का घर सुना हो जाता है । भारतीय इतिहास ने नई करवट ली थी ।
उस युग पुरुष की प्रतिज्ञा से रौशन होगा हमारा देश, हमारा समाज और हम । हम आगे बढ़ेंगे हाथों में हाथ लेकर मानवता को साथ लेकर जहाँ कभी सूर्य अस्त नही होता । ।।
संविधान निर्माता, भारत रत्न , बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि ।।